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प्राचार्य श्री तुलसी __प्रवचनकार आचार्यश्री की जीवन-भूमिका आध्यात्मिक है । इसलिए आपको वाणीमे उसीकी एकरसता है । अध्यात्मम व्यवहारकी बात नहीं रहती, यह नहीं है । व्यवहारका शोवन अध्यात्मसे ही होता है। जो लोग धर्मसे दूर भागकर जीवन चलानेकी बात करते है, उनको लक्ष्य कर आपने एक प्रवचनमे कहा__ "धर्म' से कुछ लोग चिढते है, किन्तु वे भूल पर है। धर्मके नाम पर फेलो हुई बुराइयों को मिटाना आवश्यक है, न कि धर्मको। धम जन-कल्याणका एकमात्र साधन है।" ___ आप यह मानते है कि आज धर्मसे विकार घुस आये है। आपका दृष्टि बिन्दु यह है कि धर्ममे घुसे हुए विकारों को निकाल फेको, धर्म फेंकने जैसी वस्तु है ही नहीं । आपके शब्दोमे वह हमारे जीवनमे उतना ही आवश्यक है, जितना कि रोटी-पानी । आपने एक , वचनमे बताया :___“जो लोग धर्म त्याग देनेकी बात कहते है, वे अनुचित करते है। एक आदमो गन्दा विषैला पानीसे बीमार हो गया । अब वह प्रचार करने लगा कि पानी मत पीओ, पानी पीनेसे बीमारी होती है। क्या यह उचित है ? उचित यह होता कि वह अपनी भूलको पकड लेता और गन्दा पानो न पीनेको कहता। धर्मका त्याग करनेकी बात कहनेवालोंको चाहिए कि वे जनताको धमके नामपर फैले हुए विकारोंको छोड़ना सिखाएं, धर्म छोडनेकी सीख न । १-१५ अगस्त १९४९ के प्रवचनसे २-'५ जून, १९४७ के प्रवचनसे