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कागल वक्ता आपका मृदु-मन्द्र स्वर, गम्भीर घोप सुदर तक पहुंचनेवाली आवाज श्रीनाको आश्चर्यचकित किये बिना नहीं रहती। ध्वनिविस्तार कका नारा लिये बिना ही आप व्याख्यान करते है। फिर भी दश-पन्द्रह हजार व्यक्ति तो बड़ी मुविधाके साथ उले सुन सकते है। यह शक्ति बहुत विरले व्यक्तियांको ही सुलभ होती। राजस्थानमें आपके व्याख्यानकी भापा राजस्थानी जोती। हिन्दी भाषी प्रान्तीम आप हिन्दी बोलते हैं। गुजराती लोगांम गुजगनी और आवश्यकताने पर कभी कभी मतम भी व्यायान होता। आप देश-कालकी मर्यादाओको अच्छी नरा नमन। जाप, सार्वजनिक वक्तव्यांक अवसर पर जारो लोग बी उत्सुकतासे जाते है ।
आपको पाणीसम्बन्धी जो पातिक विशंपताच प्राम, उनने मानसिक सिरना पर पान नहीं है। सापकोर समय पर R AL -"मेरे पाख्यान लोगायो पर मिले. व उद जीवनर' में चार-चान अगर लोप-रंजन लिए नीमने चामा "