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मघका नेतृत्व
भाद्र कृष्णा अमावस्याकी बात है, श्रीकालुगणीने आपको एकान्त मे आमन्त्रित किया । आप उस बार करीव १|| घण्टा तक गुरुदेवकी सेवामे रहे । गुरुदेवने शासनसम्बन्धी रहस्य कुछ लिखाये, कुछ मौखिक बताये। अपने उत्तराधिकारी के रूपमे उनका आपसे मन्त्रणा करनेका यह पहला अवसर था । कालुगणी ऐसा करना नहीं चाहते थे । उनकी हार्दिक इच्छा कुछ और थी । वे अपनी तपोमूर्ति संसारपक्षीय माता श्री छोगाजी के समक्ष बीदासर आपको युवाचार्य पद देना चाहते थे । किन्तु ऐसा हो नहीं सका। उनके जीवनका यही एक ऐसा मनोभाव है, जो
अधूरा रहा।
मध्यभारतकी सफल यात्रा से लौटते समय चित्तौडमे उनके चाएँ की तर्जनीम एक छोटा-सा व्रण निकला। वह पीमेधीमे चलते-चलते भीषण बनगया । बहुत उपचार हुए । फल नहीं निकला। अखिर उन्हें अपनी अन्तिम स्थितिका निश्चय ही गया। तब उन्हे अपनी पुरानी धारणा बदलनी पड़ी। इसीका परिणाम अमावस्या दिन सके सामने आया ।
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भादवा सुदी २ के दिननक गुरुदेवकी प्रॉट कलनाओसे आप लाभान्वित होते थे । साधु-साध्वियों को शिक्षाफे अवसर पर गुरदेव द्वारा साधारण संपेत मिलते रहे। जसे- "समय पर आचार्य अवस्थामे छोटे हो बड़े हो, फिर भी सबको समान रूप सेमरहना चाहिए। गुरु जी कुछ पर है. यह शान हिसोबो यान ही करते है।