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श्राचार्य श्री तुलमी
साधियाँ नीतिवान् है । रीति-मर्यादा के अनुसार चलने पर सदा आनन्द है । किसीको कोई विचार करने की जरूरत नहीं । श्रद्धेय गुरुदेवने मुझे शासनका कार्यभार सौंपा है। मेरे नन्हे कन्धो पर उन्होंने अगाध विश्वास किया, इसके लिए में उनका अत्यन्त कृतज्ञ हू । मेरे साधु-साध्वियां बड़े विनीत, अनुशासित और इको समझनेवाले है । इसलिए मुझे इस गुरुतर भारको वहन करनेमे तनिक भी संकोच नहीं हुआ और न हो रहा है
मैं पुनः वही बात याद दिलाता है कि सब साधु-साध्वियाँ अपने शासनकी नियमावलीका हृदय से पालन करें। मैं पूर्वाचार्य श्री की तरह सबकी अधिक से अधिक सहायता करता रहूगा, ऐसा मेरा दृढ संकल्प है । जो मर्यादाकी उपेक्षा करेंगे, उन्हें में सहन नहीं करूंगा । इसलिए मैं सबको सावधान किये देता है |
सत्र भिक्षु-शासनमे फले-फूले रहे । यह सबका शासन है । सत्र सयम पर दृढ रहे। इसीमे सबका कल्याण है, शासनकी उन्नति है । मैं आशा करता हूं, यह मेरा पहला वक्तव्य साधुसाध्वियों के अन्स. करणमे रमता रहेगा ।"
इसका साधु-संघ पर जादूका सा असर हुआ । अवस्था और योग्यता में गठबन्धन नहीं है इसकी सचाईमे कोई सन्देह नहीं रहा ।
आपके पट्टासीन होने पर साधु-समाजको कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ। कारण कि उसके लिए यह अज्ञात विपय नहीं था जो भावना मनतक थी, वह बाहर आगई, बस सिर्फ इतना सा हुआ ।