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आचार्य श्री तुलसी
उसका स्वभाव हे और हिसा विभाव। जब उसकी हिंसा उम्र वन जाती है, दूसरोंके लिए असह्य हो जाती है, तब वह अहिसा की ओर देखता है । गत दो महायुद्धोंने ऐसी स्थिति पैदा की है । उससे क्लान्त हो बहुत सारे कट्टर हिंसावादी अहिंसामे विश्वास करने लग गये ।
अहिसक समाज के लिए आजका युग स्वर्ण युग है। आज भूमि तैयार है । उसमें अहिंसाका वीज सुलभतासे बोया जा सकता है । यदि समयका उपयोग नहीं किया गया तो फिर जो होता है, वही होगा ।