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व्यक्तिगत स्थिति
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पढ़ीं, उसमे कुछ विपादकी रेखायें भी है। हर्णने विपाद पर विजय पा ली, यह दूसरी बात है, फिर भी इनका द्वन्द्व कम नहीं हुआ, प्रवल था।
संस्मरणकी कुछ पंक्तिया पढिए :
"मुझे बचपनमें गुस्सा बहुत आया करता था। जव में गुस्सेसे हो जाता, फिर सबका आग्रह होने पर भी एक-एक दोदो दिन भोजन तक नहीं करता।"
"मैं प्रकृतिका सीधा-सादा था, दाव-पेचोंको नहीं जानता था। मेरे एक कौटुम्बिकने मुझसे कहा-'ओरण' मे रामदेवजी
र का मन्दिर हे (जहाँ तेरापन्थके अधिष्ठाता भिक्षु नारियलकी चोरी काम
स्वामी विराजे थे ), वहा देवता बोलता है। पर उसको नारियल भेंट करना पड़ता है, अगर तुम तुम्हारे घरसे ला सको तो। मैं एक नारियल चोरी दावे ले आया। हम मंदिर मे गये। कोई व्यक्ति अन्दर छिपा हुआ था, वह बोला। हमने बाहरसे सुना और सोचा-देव बोल रहा है। क्या वोला, पूरा याद नहीं। इसी जालसाजीसे बादमे कई नारियल चुराये और औरोंको खिलाये।"
प्रसादकी अपेक्षा विषादकी मात्रा कम है। बहु-मात्रा अल्प मात्राको आत्मसात् कर लेती है, यही हुआ। देवी-सम्पदाओके सामने आसुरी संघर्ष चल नहीं सका। गुस्सेका स्थान अनुशासन
१ देवाश्रित भूमि