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जीवनका दूसरा दौर
दूसरा अध्याय शुरू होते होते आप द्विजन्मा वन जाते हैं । गृहस्थ जीवनकी समाप्ति और मुनि जीवनकी दीक्षा, दोनों एक साथ होते है । हजारों लोगोंके देखते देखते आप अपनी बहिन को साथ लिए वैरागी की पोशाक में दीक्षा - मण्डपमें आये, कालुगणीको वन्दना की, पासके कमरे में गये । वेषभूषा बदली | साधु का पुण्य वेष धारण किया । वापिस आये। दोनों हाथ जोड़ गुरुदेव के सामने खड़े हो गये । दीक्षा देनेकी प्रार्थनाकी । मोहनलालजी अपने बन्धुओं के साथ आगे आये । माता वदनाजी आई । गुरुदेवसे 'श्री तुलसी' को 'लाडा' को दीक्षित करनेकी प्रार्थना की।
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गुरुदेवने उनकी स्वीकृति पा दीक्षाका मन्त्र पढ़ा | आजीवन