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आचार्य श्री तुलमो चेष्टा नहीं करता। तब आप कहते-दूसरे कौन ? यह अपना ही काम है। आपकी उदारतासे प्रभावित हो थोड़े वर्पोम आपके लगभग १६ स्थायी विद्यार्थी बन गये।
प्रसंगवश कुछ अपनी बात कहदं। उन विद्यार्थियोमे एक मैं भी था। यह हमारा निजी अनुभव है, हमपर जितना अनुशासन आपकी भौहोका था, उतना आपकी वाणीका नहीं था। आप हमे कमसेकम उलाहना देते थे। आपकी संयत प्रवृत्तिया
ही हमे संयत रखने के लिए काफी थीं। आपमे शिक्षाके प्रति __ अनुराग पैदा करनेकी अपूर्व क्षमता थी। आप कभी-कभी हमे
बड़ो मृदु बातें कहते -- ___“अगर तुम ठीकसे नहीं पढोगे तो तुम्हारा जीवन कसे बनेगा, मुझे इसकी बडी चिन्ता है। तुम्हारा यह समय बातोका नहीं है। अभी तुम ध्यानसे पढो, फिर आगे चल खूब बात करना। यह थोड़े समयकी परतन्त्रता तुम्हे आजीवन स्वतन्त्र बना देगी। आज अगर तुम स्वतन्त्र रहना चाहोगे तो सही अथ मे जीवन भर स्वतन्त्र नहीं बनोगे। मेग कहनेका फर्ज है, फिर जंसो तुम्हारी इच्छा" " । इसमे जबर्दस्तोका काम है नहीं, आदि आदि ।”
विद्यार्थियोंमे उत्साह भरना आपके लिए सहज था। हमने नाममाला कण्ठस्थ करनी शुरू की। बड़ी मुश्किलसे दो श्लोक कण्ठस्थ करपाते । नीरस पदोंमे जी नहीं लगता। हमारा उत्साह बढानेके लिए आप आधा-आधा घण्टा तक हमारे साथ उसके