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विकासको दिशामें
कालुगणीके अन्तिम तीन वर्ष जीवनके यशस्वी वपोंमेसे थे । उनमें आचार्यवरने क्रमश मारवाड. मेवाड और मध्यभारतकी यात्रा की। उससे आपको भी अनुभव वढानेका अच्छा मौका मिला। इससे पूर्व आपकी दीक्षाके वाद आचार्यवर सिर्फ बीकानेर स्टेटमे हो रहे। वहाँ भी आप जन-सम्पर्कमे बहुत कम आये। केवल अध्ययन-अध्यापनमे रहे। यात्राकालमे आपने कुछ समय जन-सम्पकमे लगाना शुरू किया । रातके समय बहुलतया व्याख्यान भी आप देने लगे। ये तीन वर्प आपके लिए व्यावहारिक शिक्षाके थे। कालुगणीने आपको कुछ बनाने का निश्चय किया। उसके पीछे बड़े बलवान् यत्न रहे। आपके