________________
आर
__४८
आचार्य श्री तुलसी ' विचार और व्यवहारमे चलनेकी नीति बरतनेवाले मंगमे
योग्यताके साथ अनुशासन बनाये रखना बडी दक्षताका काम __ है। सैकड़ों साधु-साध्वियो और लाखों श्रावक-श्राविकाओका __ एकाधिकार पूर्ण सफल नेतृत्व करना एक उल्लेखनीय बात है। हमे आचार्यश्री भिक्षुकी सूझ पर, उनके कर्तृत्व पर सात्विक अभिमान है। उनके हाथोसे बना हुआ संगठन एकताका प्रतीक है, वेजोड़ है। जहा संघ होता है, वहा शासन भी होता है । शासनका अर्थ है-सारणा और वारणा, प्रोत्साहन और निषेध उलाहना और प्रशंमा। इन दोनो प्रकारकी स्थितियोमे उनकी मनोभावनाओको समानस्तरीय रखना, यही संघपतिके कार्यकी सफलता है।
दूसरी विशेषता है आचार-कौशल । विचारकी अपेक्षा आचार का अधिक महत्त्व है । आचारहीन व्यक्तिके विचार अधिक मूल्य नहीं रखते। श्रीमद् जयाचार्यने लिखा है कि एक नौलीमे सौ रुपये होते है, उनमे हह रुपयोके वरावर आचार है और ज्ञान एक रुपयेके समान है। हमारी परम्परामे आचारकुशलका कितना महत्त्व है, यह निम्नलिखित एक धारणासे स्पष्ट हो जाता है।
मानो, एक आचायके सामने दो शिष्य है --एक अधिक आचारवान् और दूसरा अधिक पण्डित । आचार्यको अपना पद किसे सौंपना चाहिए ? हमारी परम्परा वताती है, पहलेकोआचार कुशल को । आचाय शब्दकी उत्पत्ति भी आचार-कुशलता से हुई है-"आचारे साधुः आचार्यः” ।