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स्व- शिक्षा
आपने मुनि जीवन के ११ वर्षोमे लगभग २० हजार श्लोक कण्ठस्थ कर पौराणिक कण्ठस्थ परम्परामे नई चेतना ला दी । वह एक युग था जबकि जैनके आचार्य और साधु-सन्त विशाल ज्ञान - राशिको कण्ठात् कण्ठ सभ्चारित करते थे । किन्तु इस वदले वातावरणमे २० हजार श्लोक याद करना आश्चर्यपूर्ण बात है । आपके कण्ठस्थ ग्रन्थोंमे मुख्य ग्रन्थ व्याकरण, साहित्य, दर्शन और आगमविषयक थे। आपने मातृ-भाषा के अतिरिक्त संस्कृतप्राकृतका अधिकारपूर्ण अध्ययन किया ।
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आपकी शिक्षा के प्रवर्तक स्वयं आचार्य श्री कालुगणी रहे । उनके अतिरिक्त आयुर्वेदाचार्य आशुकविरत्न पं. रघुनन्दनजीका भी सुन्दर सहयोग रहा। इनके जीवनका बहुल भाग पूर्वाचार्य