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व्यक्तिगत स्थिति
बन गई । श्रावकोने, साधुओंने, मन्त्री मुनिश्री मगनलालजी स्वामीने भी मोहनलालजीको समझाया । मोहकी बात है, दिल नहीं माना । वे स्वीकृति देने को तैयार नहीं हुए। आपने देखा यह बात यों बननेकी नहीं ।
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लाडनूकी विशाल परिपद्में श्रीकालुगणी व्याख्यान कर रहे थे। आप वहा गये । व्याख्यान के बीच ही खड़े होकर बोलेगुरुदेव । मुझे आजीवन व्यापारार्थ परदेश जाने और विवाह करनेका त्याग करवा दीजिए। लोगोंने देखा - यह क्या । परम श्रद्धेय गुरुदेवने देखा - बालकका कैसा साहस है । मोहनलालजी ने देखा - वह मेरा भय और संकोच कहा ! विभिन्न प्रतिक्रियाएं हुई | गुरुदेवने कहा – तू अभी बालक है। त्याग करना बहुत बड़ी बात है । आपने देखा - गुरुदेव अब मौन किये हुए है । सभा की दृष्टि आप पर टकटकी लगाये हुए है । आश्चर्य और प्रश्नकी धीमी आवाजें उठ रही है । साहसके बिना काम होगा नहीं । जो निश्चय कर लिया, वह कर लिया । डरकी क्या बात है । उत्तम कार्य है । मुझे अब अपने आत्मबलका परिचय देना है । यह सोच आप बोले- गुरुदेव । आपने मुझे त्याग नहीं करवाये किन्तु मैं आपकी साक्षीसे आजीवन व्यापाराथे परदेश जाने और विवाह करनेका त्याग करता हूं ।
गुरुदेवने सुना, लोगोंने सुना, मोहनलालजीने भी सुना । बहुतों ने मोहनलालजीको समझाया था, नहीं समझे । आपने थोड़े में समस्या सुलझा दी। वे आपकी दीक्षाके लिए राजी हो