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जिज्ञासाका स्रोत-व्यक्तिका व्यक्तित्व
कोई व्यक्ति कब और कहाँ जन्म लेता है, कसे उसका लालन-पालन होता है, इसमे अपनेआप जिज्ञासा पैदा नहीं होती। व्यक्तिका अपना व्यक्तित्व ही उसमे जिज्ञासा भरता है। व्यक्ति जब व्यप्टिकी सीमा तोड़कर समष्टिमय वन जाता t, तब उसके प्रत्येक कार्यकी जानकारी अभिप्रेत हो जाती है। आचार्य भी के पट्टोत्सवका अभिनन्दन करते मने एक बार लिखा था
'' बतक तुम इस 'तुम' के भीतर, बँधे हुए थे बानी । तबतर तुम 'तुम' में पटते थे, घे अपने तनके स्वामी ।।१।। कौन तुम्हारी लार्चा करने, पच पहा पा लाया। सिने न तोमर चरणों में, पानपना गोग नवाचा ॥२॥ १६ तुमने नदाधि लाभ घर, 'तुम' की मर्यादा तोड़ी। TA रमानन से, माता-नमान काही ।।