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विषय-प्रवेश
अध्यात्मवादको दृष्टि यह है-रोटी मुश्किल नहीं अगर तुम उसके पीछे न पड जाओ । वह तुम्हारे श्रमका परिणाम है, तुम्हें. न मिले यह कैसे हो ? भीतसे परे भी कुछ है, इसे मत भुलाओ । जीवनकी लम्बी शृङ्खला एकदम टूट जायेगी, क्या यह संभव है ? शोषण और विषमता जो बढ़े, उसका कारण हिंसा है। हिंसा से हिंसा मिटाने की जो सूझ आ रही है, वह गलत है ।
अहिंसा पूर्ण समतावाद है । उसके भाव आवें तो न शोषण रह सकता है और न वैपम्य । व्यष्टिका ममत्व और संग्रह समष्टिमे चला जाये, इससे मूलभूत समस्याका समाधान नहीं हो
सकता ।
हिंसा और अहिंसा के द्वन्द्वकी चर्चा करते हुए एक बार आपने कहा
"हिंसाकी भाति अहिंसा सफल नहीं हो सकती, कई लोगो की ऐसी धारणा है । परन्तु यह उनका मानसिक भ्रम है । आज तक मानव-जातिने एक स्वरसे जेसा हिंसाका प्रचार किया, वैसा यदि अहिंसाका करती तो स्वर्ग धरती पर उतर आता। ऐसा किया नहीं गया, फिर अहिंसाकी सफलतामे सन्देह क्यो ?"
यह सच है, भलाई भलाईसे मिलना नहीं जानती, बुराईको बुराईसे मिलनेके रहस्य का ज्ञान है । अगर दुनियाकी सब अहिंसक शक्तियां मिलजुलकर कार्य करें, सहयोग-भाव रखें तो आज भी अहिसा हिंसाको चुनौती दे सकती है । मानव मूलतः अहिंसाका असण्ड पिण्ट है । वह विकारी बन हिंसक बनता है | अहिंसा