Book Title: Narmada Sundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Gootuoteofootootoolboartootootoskoolootwotoofootointos alonloalsol@ole पंडित श्री मोहन विजय विरचित नर्मदा सुंदरीनोरास. satssssss safe shoots tootsotatooteestorests ate ote ofestaterfastest शील रक्षण माटे कुलीन स्त्रीना पवित्र पतिव्र ता पणानो आबेहुब चितार रसिक नीति ज्ञान धर्म व्यवहार संसारिक सुख दुःखमां सद्बोध सद्वत्ति राखवा माटे । सुदृढ शिक्षा रूप. सरस रसिक चमत्कृति युक्त सुशील कुली न स्त्रीपुरुषोने हितोपदेशमय बेत्रण प्रतिथी शुरू करी, शा० नीमसिंह माणकें. मुंबईमध्ये निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा छापी प्रसिद्ध कर्यो. संवत् १९५४ असाड शुद ९ मंगलवार.. totk Solofoolooseksolvolcolofoolwelcoloo®OORIGOLGQROOGON ootagoodootoote ote ote ote ote ote ote ote of fofotofookiaolnelodlaodgoa Jo a sakeele ote ote ofo stooto ope ote ote ote ote ote ote ote ote ote to googayas s Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः॥ अथ पंमित श्रीमोहनविजयविरचित नर्मदा सुंदरीनो रास प्रारंनः॥ प्रजु चरणांबुजरज तणी, वनीने होय ढोक ॥ मायो वली जग जेहनो, बिहु अदरने श्लोक ॥१॥ धारक अतिशय एहवा, जिन सुरगिरि परें धीर ॥ हुं प्रणमुं ते वीरने, गौतम जास वजीर ॥२॥ कवि सुरतरु शोजाववा परनृत तनया पूत ॥ ज्ञान चंजने चंडिका, कृपा करी अति नूत ॥३॥ जड तालय मुसा जणी, जनु रूपा स्वयमेव ॥ शब्दोदधि तारण तरी, सा जारति प्रणमेव ॥४॥ गुरु गुण मणि हारावली, धरिये हृदय तटेण ॥ कीधो तजी पिपीलिका, मत्त मतंग जलेण ॥५॥ जिन गुणहर जारति सुगुरु, प्रणमी चरण रसेण ॥ धर्मोद्यम कीजे सदा, सवि सुख लहिये जेण ॥६॥ चार नेद ते धर्मना, दान शील तप नाव ॥ तेहमां शील विशेष डे, कष्ट रत्नागर नाव ॥ ७॥ चतुश्रवण शीलें करी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थयो कुसुमनी माल ॥ पावक पण पाणी थयो, शीलें सिंह शीयाल ॥ ७ ॥ शीलरूप सन्नाहथी, मन्मथ नृपनां बाण ॥ वेधी न शके वदने, रे मन मृषा म जाण ॥ ए॥शीलतणे अधिकार अथ, नमया सुंदरि चरित्र ॥ रचीश शास्त्र अनुसारथी, वर्णव करी विचित्र ॥ १०॥ सांजलजो श्रोता नरो, मित्र पुत्र स्थिर लाय ॥ पण पीतां करतां रखे, महिषी किन्नर न्याय ॥११॥ ॥ ढाल पहेली॥ देशी चोपानी॥ जंबूहीप जोयण एक लाख, साधक त्रिगुणी परि धिनी लाख ॥ क्षेत्र सात तिहां अति विस्तार, ना म मात्र कहुं तास विचार ॥१॥जरह औरवय पांच से बबीश, बकला तास उवरी सुजगीश ॥ हेम ऐरण्य डे सहसग गसत्त, पण जोश्रण पण कला पमत्त ॥॥श्राप सहस चउसय एकवीश, एक कला हरि रम्यक जगीश ॥ तित्तिस सहस बसय चूल ने ह, चार कला ए मान विदेह ॥३॥ कुल गिरि ए हीप मकार, तास तणो हवे कहिश विचार ॥ जो यण एक सहस बावन्न, बार कला हिमशिखरी मन्न ॥४॥ महा हेमवंत रूपी चार हजार, उसय दश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) जोय दश कला विस्तार ॥ निषध नीघ्र सोसहस इगसत्त, दोय कला ए गिरि पमत्त ॥ ५ ॥ सत्त पित्त पट कुल गिरि दाख, मेलंतां होय जोयण एक लाख ॥ जिनवर वचनें करी यें प्रमाण, तेहथी को नहिं अधि को जाए ॥ ६ ॥ दवे जर हैजन पद वैदर्ज, मनुज लो क शोजानो गर्न ॥ वन उपवनने गहन विशेष, तर णि किरण करी न शके प्रवेश ॥ ७ ॥ अति उत्तंग शिखर गिरि तणां, खडदडें वदेतां रह रविता || करे तसमांनुं निकरणां जलेख, मानुं गंगाधर प्रक ट्यो अनेक ॥ ८ ॥ अवनी वनिता जाल समान, रति रमणीयक देश प्रधान ॥ नगरी वर्धमाना द्युतिदरी, अलकानी शोजा रहि परी ॥ ए ॥ शंकाये लंका बा पडी, मूकी सुरनगरी त्रापडी ॥ सासय नगरीयें वं दिका, नू जामिनी कुंकुम बिंदिका ॥ १० ॥ मंदिर सुंदर गढ मढ पोल, सोहे विजय ती तिहां जैल ॥ वर्णदार वसे गुणवंत, निज निज धर्म सदा निष हंत ॥ ११ ॥ श्रति हि कृपण महिसुर तिस्या, बिल्लर तो क्षीरोदधि जिस्यां ॥ कडू वाणी साकर जिसी, ते हनी उपमा दीजे कीसी ॥ १२ ॥ एहवा मूढ रहे गह गही, अवगुण को शीख्या नहीं | हृदय कठोर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) जेहवु नवनीत, हरिचंड नृप सरसी अप्रतीत ॥१३॥ उनाइंसुकिरण सारिखा, निर्धन धनद जिस्या पार ख्या ॥वांका कमलनालिके तीर, निःस्नेही जिम ज ल ने खीर ॥ १४ ॥ निरुपकार जेम रंजाखंज, अनि य तो जेम देवी नंन ॥ दुःखीयां जेम दो गुंदक दे व, विरुयां कामदेव अनिनेव ॥ १५ ॥ व्यवहारी व्यापारी वसे, धर्म कारजें सवि धस मसे ॥ परउप कारी परम प्रवीण, जिनवर वचन थकी लयलीन ॥१६॥पजणी प्रथम ढाल रस मणी, नर्मदा सुंदरी सुचरित्र तणी ॥ आगल वात रसाल विशेष, कहे हवे मोहन तिहां नरेश ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥प्रतिपाले पुरजन जणी, संप्रति नामें जूप ॥ रह्यो दर्प तजी काम नृप, देखी सुंदर रूप ॥॥हरवा उर्जनमहिघटा, अतुलीबल शार्दूल ॥ परिजन हंस रमाडवा, अभिनव गंगाकूल ॥२॥ अरियण सहिं ता नूप बल, सेवे गिरिदरी नूप ॥ जेम जल बिह तो ग्रीष्मथी, वसे रहे जई कूप ॥३॥ ख्याग त्याग वाचा अचल, न्यायें निपुण नरिंद ॥ धवलीकृत दि ग दश जिणे, करी उदय जस चंद ॥४॥ रति रू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) पा पट्टरागिणी, रतिसुंदरी नामेण ॥ कीधो मुख आजासथी, कांखो उम्पति जेण ॥ ५॥ एक पद उज्ज्वल करे, ननचर चंद्र प्रसिद्ध ॥ राणीमुख को ई अपर शशी, बिहु पद उज्ज्वल कीध ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ प्रवहण तिहांथी पूरीयुरे लाल ॥ ए देशी ॥ नगरनूषण सरिखो तिहां रे लाल, वृषनसेन सा र्थेश ॥ गुणवंता रे॥रयणायर सरिखो धने रे ला ल, जलदधि दाता विशेष ॥ गु० ॥ १॥ सांजल जो श्रोता जना रे लाल ॥ शीलतणो संबंध ॥गु०॥ सरस वचन रचना तिसी रे लाल, जेम सोनुने सु गंध ॥ गु० ॥ सांग ॥ जलवट थलवटना करे रे लाल, अव्य बलें व्यवसाय ॥ गु० ॥ महिपति पण माने घणुं रे लाल, धने वश कोण न थाय ॥ गुण ॥सांग ॥३॥ सोनुं रु' सामटुं रे लाल, मणि मा णिकना पुंज ॥ गु० ॥ कर धरे मोती दासीयो रे लाल, परिहरि जाणी गुंज ॥ गु०॥ सांग ॥४॥वी रमती तस गेहिनी रे लाल, लाजें नृतलोचन्न ॥ गुण ॥ शील धर्मनी जाणीये रे लाल, अनिनव नू मि जतन्न ॥ गु० ॥ सांग ॥ ५॥ पतिजक्ति चंञान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नी रे लाल, कोपनो नहिं संसर्ग ॥ गु० ॥ गुणमणि खाणी गोरडी रे लाल, रूपकला अपवर्ग ॥गु०॥ सांग ॥६॥ विलसे विविध ते दंपती रे लाल, सां सारिक सुखनोग ॥ गु० ॥ रामा राम नीरोगता रे लाल, लहीयें पुण्य संयोग ॥ गुण ॥ सांग ॥ ७॥ बे अंगज नेतेहने रे लाल, वीरसेन सहदेव ॥ गु०॥ दिनकर हिमकर सारिखा रे लाल, जोडे परम गुण मेव ॥ गु० ॥ सां० ॥७॥ज्ञषिदत्ता बेटी सहजयी रे लाल, किन्नरी सुंदरी अणुहार ॥ गु० ॥ बालपणे सघली कला रे लाल, शीखी पूर्वसंस्कार ॥ गु० ॥ सांग ॥ ए॥ ऋषिदत्ता बिहु सहजथीरे लाल, हसेय रमेय अतिप्रेम ॥ गु०॥ सोहे बे मोती वच्चे रे लाल, राती चूनी जेम ॥ गु० ॥ सांग ॥ १० ॥ वीरमती निजपुत्रीने रेलाल, बेसाडे उत्संग ॥ गु० ॥ नित्य श्रानूषण नव नवा रे लाल, स्थापे नेहें अंग ॥ गुण ॥सांग ॥ ११॥ बाबुडां जस थांगणे रे लाल, धूल धूसर न रमंत ॥ गु०॥ कारागार आगार ते रे लाल, जाणीयें अहो पुण्यवंत ॥ गु० ॥ सांग ॥ १५ ॥ हवे अनुक्रमे वधती थई रे लाल, बाला मायारूप ॥ गुण टाले नहिं निज देहथी रे लाल, लजादौम अनूप॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 3 ) 譯 गु० ॥ सां० ॥ १३ ॥ जनकें जणवा पाठवीरे लाल, सा अध्यापक गेह ॥ गु० ॥ जैनधर्म जलो अन्यसे रे लाल, लघुश्रमी धरी नेह ॥ ० ॥ सां० ॥ १४ ॥ कीले हिंसा तटिनी तटे रे लाल, लीधो विनय कज गंध ॥ गु० ॥ चाखी समकित सूखी रे लाल, जाण्यो जैनप्रबंध | गु० ॥ सां० ॥ १५ निष्ठा एक जि नधर्मनी रे लाल, मिथ्यात्वथी प्रतिकूल ॥ गु० ॥ वि कथा सर्व विरमी रही रे लाल, जेम दल गलित तांबूल ॥ ० ॥ ० ॥ १६ ॥ पुत्री काही पेखीने रे लाल, हरखे तात अतीव ॥ गु०॥ तात प्रभृति स दु को करे रे लाल, धर्मकथा ते सदैव ॥ गु० ॥ सां० ॥ १७ ॥ जेहवी संगति कीजीए रे लाल, तेह वा गुणनी केल ॥ गु० ॥ कुसुमनी संगतिथी तेलें रे लाल, पाम्युं नाम फूलेल ॥ गु० ॥ सां० ॥ १८ ॥ पामी वीरमती सुतारे लाल, यौवनवय सुकुमाल ॥ गु० ॥ मोहन विजयें वर्णवीरे लाल || बीजी ढाल र साल ॥ ० ॥ सां० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ सा पुत्री नवयौवना, देखी चिंते तात ॥ पुरमें को 5 महेभ्यसुत, जोइ करूं जामात ॥ १ ॥ पुर सघलुं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर कारणे, जोयुं करी तलास ॥ पण वर पुत्री सारि खो, न मल्यो को तास ॥२॥मिथ्यादृष्टि नयरमें, अडे घणा धनवंत ॥ तस घर तनुजा आपतां, मन नवि धारे संत ॥ ३ ॥ केम दे श्रावक बालिका, मिथ्यात्वीने गेदना केम दीजे चंभालने, वृंदा तरु ससनेह ॥॥ मणि न जडे को लोहमें, म्हेली कुंदन पत्र ॥ वृषनसेन एम मनमें, आलोचे एकत्र ॥५॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ . हारे माहरे जोबनीयानो लटको दहाडा चार जो ॥ ए देशी ॥ हारे हवे आव्यो ए हवे रूपचं पुरहुत यो ॥ वारु रे रुजदत्त नामा वाणीयोरे लो॥ हारे कांच करवा वाणिज्य वर्षमान पुरमांहि जो, सेइने करिया' लोकें प्रमाणीयोरे लो॥१॥ हारे तेणे वेची साटी सयण वसाणानी कोडि जो, कीधा रे तेणे गांठे दाम सोहामणा रे लो॥ होरे जस पु एय सखाइ डे तेहने शी खोड जो, एके के पगले रे पुंज मणितणा रे लो॥॥हारे तेणे पहेरी अंबर सखरां चहूटामांहि जो,हिंडे ते मोडामोडे बेलशुरे लो ॥ हारे परदेशीनी परगाममें एहिज रीति जो, फोगटीयो थर फूले धोबी बेलशुरे लो ॥३॥ हारे तेणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जमतां जमतां पुरमां कीधो मित्र जो, कुबेरदत्त नामा एक व्यवहारीयोरे लो ॥ हारे तस मांहोमांहे बाजी पूरण प्रीति जो, ससनेही नेहीनी वात जारीयोरे लो॥४॥ हारे एम नांख्युं कुबेरे अहो अहो मित्र रुदत्त जो, बंधाणी तुमसेंती माया श्राकरीरे लो॥ हारे तुम्हे परदेशीडा कामणगारां लीक जो,पंखीनी पेरे जा न मिलो फरीफरीरे लो ॥५॥ हारे मेंतो मित्रजी माहरा कहींयें था पुरमांहि जो, नेहडलो नवि कीधोरे कोश्थी एवडोरे लो ॥ हारे मारी विन ति मांनो श्रावो मंदिर मुफ जो, कांश जो पोताना करीने त्रेवडोरे लो॥६॥ हारे हुं तो जाणीश की धी मुऊने करुणा जोर जो, प्राहणला तुम जेहवा किहांथी श्रांगणेरे लो॥ हारे तुम जेहवा नरथी क्यांहथी एक घडी गोठ जो, जेह तेहथी वातडली करतां नवी बने रे लो ॥ ७ ॥ हारे तुम्हे यहां तो रहेता हशो कोश्कने गेह जो, तेहथी शुं घर जूहुं कहोजी थापणुंरे लो॥ हारे तुमे रहेशो तेता दिन करशुं गुजराण जो, फेरीने शुं कहीयें तुह्मने घj घणुंरे लो ॥७॥ हारे कोइ वातनो अंतर त्रेवडो माहरा राज जो, करशुं जे काश् थाशे अमथी चा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) करीरे लो ॥ हारे अमें लेसो सो लोटणां तुम्ह हजूर जो, कहिये के पयललीया साहिब अनुसरी रे लो ॥ ए॥ हारे तव बोल्यो ततक्षिण रुजदत्त हित लाय जो, नाइजी तुम्हें लांख्यु ते अमें शिर धमु रे लो ॥ हारे कांश तुम श्रम मेलो हू पूरव लेख जो, दैवे ऐ मनगमतुं काम नबुं कलुं रे लो। ॥१०॥हारे जो तमचों हेतले श्रम उपर परिपूर्ण जो, अलगा रहीयाथी तोश्य द्वंकडा रे लो ॥ हारे जूठ गयण घनाघन उमहे नूतल मोरजो, मंके रे ते तांडव रसवशे रूपडारे लो ॥ ११॥हारे जुकिहां दिनकरने किहां कैरववन्न जो, तोहीपण विकसे ते साचा नेहथी रे लो ॥ हारे कांश क्यारे कोथी टाल्यो पण न टलंत जो, मानेतो मनमे सो होय जेहथी रे लो॥१२॥हारे तुमें राजी जो बो मुफथी आवे गेह जो, तो तुमने किमए 5 हवू कहो थोडे गजेरे लो॥ हारे एम कहीने रुज दत्त श्राव्यो मित्रने गेह जो, लाखेणी मनुहारो ते सखरी सजेरे लो॥१३॥हारे रहियो ते परदेशी मित्रना मंदिर मांहि जो, पोताना कुटुंबनी परे सह थर रह्यां रे लो ॥ हारे ते खाये पीये नित्य नवला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) आहार जो, किहि परे पर करीने नवी लह्यो रे लो ॥ १४ ॥ हांरे ते बेठो रुद्रदत्त एक दिन गोखम कार जो, जूए पुरकेरी शोजा नयणथी रे लो ॥ एतो मोहन विजयें जांखी त्रीजी ढाल जो, स्नेहाली हितकारी मीठी वाणियेंरे लो ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ।। ॥ दोहा ॥ दीवी रुत्तदत्तें एहवे, ऋषिदत्ता सोत्साह || स खीयां संगें परवरे, घालिने गले बांहि ॥ १ ॥ बाला सघली विविदपरें, हसती रमती त्यांहि ॥ एक एकने ताली दीये, चाले चढूटा मांहि ॥ २ ॥ जाणे शा वक हंसना मानसरोवर पंति ॥ खेले मुख करी के सरा, तिम बाला शोनंति ॥ ३ ॥ सा देखी परदेशी यो, चिंते चित्तथी एम ॥ खेचरपुत्री नगरमां रमवा आवी केम ॥ ४ ॥ के शुं प्रगटी पन्नगी, पुहवीतल थी एह ॥ एतो कौतुक सारिखुं, दीसे वे ससनेह ॥ ॥ ५ ॥ एट्वे तिहिज अवसरे, मूर्छागत थयो तेह || धडहडीने धरणी ढल्यो, जिम गिरिवर शि खरेह ॥ ६ ॥ मूति देख्यो मित्रने, श्राव्यो कुबेर वरवीरं ॥ कीध सचेतन ततखिऐं ढोली मंद समीर ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) ॥ ढाल चोथी ॥ रंग रहो रे रस रहो रे फूल गुलाबरो ए देशी ॥ बांधव कहो ए शुं हतुं, मूर्छा पाम्या एमहो रसीया रे मित्र जीरे जांखो मया करो ॥ ए की ॥ ते कारण मूजने कहो, जायुं जाये जेम हे ॥ २० ॥ १ ॥ वगर कहे केम जाणीयें, पारका मननी वात है ॥ र० ॥ खोली मन साधुं कहो, जेम जाएं परमार्थ हे ॥ र० मी० ॥ २ ॥ जे कांइ मूजथी सीऊशे, ते तो करीश हुं काम हे ॥ र० ॥ वचन कुबेरदत्तनां सु णी, बोल्यो रुद्रदत्त ताम दे ॥ २० ॥ मी० ॥ ३ ॥ श्र हो हो सन माहरा, अकथ कथा वे एह ॥ २० ॥ तो तुम यागलें जाखीयें, जो तुमयी होये तेह दे ॥ २० ॥ मी० ॥ ४ ॥ नहिं तो कुण नांखे कहो, जल मे कंचन काल दे ॥ २०॥ दुःख ते आगल दाखीये, जे टाले तत्काल दें ॥ र० ॥ मी० ॥५॥ ते तो कोइ नहिं जगतमें, जे जाणे परपीर हे ॥ २० ॥ गोष्टि न ली तेहथी कही, मनमेलू जे वीर हे ॥२०॥ मी ॥६॥ रोग होवे तो वैद्यने, दाखीयें करी उपाय हे ॥ २० ॥ पण ए अंतर गत तणी, कोइ थकी न कलाय ॥ २० ॥ मी० ॥ ७ ॥ ते माटे तुमने किसुं, कहीयें कहो म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) हाराज हे ॥ र०॥ मन ए जाणे माहरूं, वात सवे शिरताज हे ॥ र ॥ मी० ॥ ॥ बोल्यो कुबेरदत्त फरी, कहो कहो मनमें हूंस हे॥र ॥ जो न कहो मुफ पागलें, तो वे तमने सूंस हे र ॥मीगाए। वचन सुणी एम मित्रनां, नांखे रुजदत्त नांख हे॥ र० ॥ हमणां हां बेगे हतो, हुं श्रापणे गोख हे ॥र ॥ मी०॥ १०॥ तेहवे में दीठी बालिका, कि नरी सरखी एक दे॥ र ॥ विस्मय हुं पामी रह्यो देखी रूपविवेक हे ॥ र॥मी० ॥ ११॥ विधाता ए केम घडी शक्यो, एहवे रूपे एहरे ॥ र ॥ एक ज वत्र विलोकतां, नवलो कीधो नेह रे ॥र ॥ मी० ॥ १५ ॥ बाला ए प्रेमनी सांकली, सांकली ग ततखेव रे ॥ र ॥ काम शिलीमुख देश् गर, किणही न जाण्यो नेद हे ॥ र ॥ मी० ॥ १३ ॥ साले बे नट सालसी, क्षण क्षण हियडा मांहिहे ॥ र ॥ वसती नगरीमा गइ, चित्त चोरीने हि हे ॥र० ॥ मी० ॥ १४ ॥ए पुत्री ने केहनी, मित्र कहो मुजतेह हे ॥रण ॥ जिम ते बाला जोयवा, पोहचूं तेहने गेह हे ॥ र ॥ मी ॥ १५ ॥ विण दीठे ते बालिका, कांश एह न सूहाय हे ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) जलथी ते मीन वियोगीउ, तेहनी शी गति थाय हे ॥ र ॥ मी० ॥ १६ ॥ कुबेरदत्त हवे बोलशे, वाणी श्रतिहिं रसाल हे ॥र॥ मोहनविजये सोहा मणी, जांखी चोथी ढालरे ॥ र ॥ मी० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा. ॥ दोहा॥ कुबेरदत्त हवे मित्रने, जाखे वचन सुरंग ॥ रे जाई ए शो कस्यो, खोटो चित्त उमंग ॥१॥ वृषनसे ननी पुत्रिका, ए ऋषिदत्ता नाम, आज लगण पर णी नथी, सुकलीणी गुणधाम ॥२॥ जैनधर्म सम कित धरो, कन्यानो तात ॥ तेणें करी करतो न थी, मिथ्यात्वी जामात ॥३॥ समकितधारी एह वो, जो वर मलशे कोय ॥ तो ए तस परणावशे, दुधे पयतल धोय ॥४॥ तुमने अमने त्रेवडे, मि थ्यात्वीनुं रूप ॥ तो तस पुत्री उपरे, खोटी न करो चूंप ॥५॥ काम ए मुजथी नवि होये, रे सूरिजन महाराज ॥ लालच खोटी नहि दी, लाजें विणसे काज ॥६॥ ॥ ढाल पांचमी॥ नदी यमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) शी ॥ रुजदत्तनी सुणी वाणी, तदा बानो रह्यो ॥पा बो श्रदर एक, फरीने नवि कह्यो । बालोचे मन मांहि, उपाय को करूं ॥ कपटे पण सार्थेश तणी पुत्री वरं ॥१॥ जो इण अवसर माहरी, बुद्धि न केखq ॥ तो पड़े श्रावशे काम, कहे बल खेलतुं ॥ मित्र थकी तो एह, कारज नवी उघडे ॥ तो निः खारथ कोण, पूठ एहना पडे ॥५॥हु हवं माह रीमेले, प्रपंच करुं वही ॥ पण ऋषिदत्ता एह, वरेवी में सही ॥ निर्गत जे गजदंत, फरी पेसे नहीं ॥ के की पी सुरंग,मटे नही लोकहिं ॥३॥ उद्यम वि ण ए काम, किसी परें सीऊशे ॥ नारी होशे कंब ल, जेम जलें जीजशे॥रण धण कण गुणमाट, विलंब न कीजीये ॥ लासर नाखी वात, तेणे न पतीजीयें ॥४॥ ए जिनधर्म श्रावक, केरी बालिका ॥ एह ना जिननी वाणी, तणी प्रतिपालिका ॥ हूं तो श्राव क धर्मनो, मर्म जाणुं नहीं ॥ मन तो वरवा काज, रघु ने उम्मही ॥५॥ तेमाटे हवे साधु, समी जाश्ने॥ शीखू गृहस्थ श्राचार, के उद्यम लाग्ने ॥ पडे शषिदत्ता तात, तणे संगें रखें ॥ जोगवी कन्या तास, वरी वांडित लहुँ ॥६॥ उठ्यो करी आलोच, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) रुपदत्त एहवे ॥ पहेरी वस्त्रने नूषण,जे अंगें फवे॥ पहोतो पूबत पूबत, तेह उपासरे॥वंदी बेगे ताम, के साधु उपाश रे ॥७॥ गुरु पूढे महानुनाव, क हो कीहां रहो ॥ दीसो बो गृहस्थ विवेकी, जलो विनय वहो ॥ सांजलो तो कांश धर्म, कथा संजला वियें ॥ एके श्रदर सांजलीये, जो इहां आवीयें ॥ तव बोल्यो रुजदत्त, हसी कपटें करी ॥ जी स्वामी उपदेश, दीयो मुफहित धरी॥ धर्म कथाने काज, श्राव्यो बुं तुम कन्दे ॥ सीके जेहथी काज, आदे शो ते मुने ॥ ए॥ आरंज्यो उपदेश, गुरु तस श्रा गले ॥ ते पण कपटी नीचे, नयणे सांजले ॥ गुरु क हे सघली वस्तु, अथिर करी जाणीयें ॥ स्वार्थचूत संबंध, करीने प्रमाणीयें ॥ १० ॥ ए संसार असार मां, को कोनुं नहीं ॥ साचो एक श्री जिनधर्म, सखाई जे सही ॥ जीव करेले पाप, कुटुंबने पोष वा ॥पण नोगवतां पाप, न आवे संतोषवा ॥१९॥ तरला तोय तरंग, तिस्यो धनगारवो ॥ बाजीगरना खेल,समो नव धारवो॥ए धन घरणी धाम, न को लश् गयो । जिहां जश् उपन्यो त्यां हिं, तिहां तेह नो थयो ॥ १५॥ मृगतृष्णाने काज, फिरे मृग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) रीवडो ॥ तेम धन तृष्णा माटे, अटे ए जीवडो ॥ जेणे जिमणे हाथे, करी धन वापसुं॥ तेणे सुरगति द्वार, सहि करी आचमु॥ १३ ॥ दान थकीज गृ हस्थ, करे शुचि आतमा ॥ पुष्कर तप तपि शुभ, इये महातमा ॥ समकित रत्न अमूल, तणो खप कीजीयें ॥ वली उपशमरस स्वाद, करीने पीजीये ॥ १४ ॥ एम निसुणी उपदेश, कहे रुरुदत्त हसी॥ अहो गुरु समकितवात, हवे चित्तमां वसी॥ पांच मी ढाल रसाल,आनंद उपजावती ॥ मोहन विजयें रंग, कही मन नावती ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा॥ __ रुदत्त कर जोडीने, नांखे गुरुने हेव ॥ सूधो श्रावक मुजकरो, दीन दयालु देव ॥१॥ दिन एता जूलो जम्यो, पाम्यो हवे जिनधर्म ॥ शीखवो श्राव कनी क्रिया, दया करी गुरु हर्म ॥२॥ मूक्युं हवे मिथ्यात्वने, दीन पिता महाराज ॥ उदय थयो समकिततणो, अंतरंग दिनराज ॥३॥ सुगुरुये जाण्यु ए सुगुण,दिसे मानव कोयलाल वरं श्रावक करी, जेम लहुँ कर्मी होय ॥ ४ ॥ श्रावकधर्म तणी क्रिया, सयल शीखावी ताम ॥ रुदत्त हरख्यो हि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) ये, सफल हशे हवे काम ॥ ५ ॥ जेम करिवरें पी धी सुरा, जेम पाखस्यो मृगराज ॥ तेम कपटी बार्के चढ्यो, वरवाने ससमाज ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बडी ॥ राजा जो मिले ॥ ए देशी ॥ रुद्रदत्त विषये थ यो लीन, मांस पेशीथी जेवोज मीन ॥ धिक् धिक् कामने ॥ जेणे धूत्यो अखिल संसार, धिक् धिक् का मने ॥ एांकणी ॥ नर सुर असुर अपर पण जाए, कामें तास मनावी आण ॥ध॥ १ ॥ कौशिक दिन कर वायस चंद, देखी न शके कहे कविवृंद ॥ धि० ॥ पण कामी जन रजनी दीस पेखे नहि नहिं ए जग दीश ॥ धि० ॥ २ ॥ पंचानन करिवर हि थोक, जीते जबली बहु लोक ॥ धि० ॥ जे जरा जीरु जीते घरी टेक, नर कोडीमां कोइक एक ॥ध॥३॥ परशस्त्र बेदे सूर सपराण, पण बेदे कोइ मनमथ बा ॥० ॥ कामे कुण कुण न कय काम, कामे न गंज्या तास प्रणाम ॥ धि० ॥ ४ ॥ हवे रुद्रदत्त कृषिसंग निवारि, हू कपट श्रावक तेणी वार ॥ धि० ॥ श्रव्यो वृषनसेन तो गेह, मिलियो कपटी आणी नेह ॥ धि० ॥ ५ ॥ नीपट घणी कीधी मनुहार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए) दीवू श्रासन सार्थेशे तिवार॥धि॥ किहांथी श्राव्या जाशो किहां मित्र, नाम कहो तुम कवण पवित्र ॥ धिम् ॥६॥ण मंदिर करुणा करी केम, नांखो जेहथी जाणुं जेम ॥ धि० ॥ बोल्यो कपटी श्रावक तेय, अंबर बेहडो मुहडे देय ॥ धि० ॥७॥ नयर अमाझं ए संसार, लाख चोराशी योनि श्रागार ॥ धि ॥ जीव संसारी ते मूऊ, तुम्ह ते शुं राखी यें गुद्य ॥ धिम् ॥ ॥ अनुक्रमें जैन नगर में दीउ, चारित्रधर्म नृप नेटो ईच ॥ धि० ॥ सद्बोधनामा तास प्रधान, दी, मुजने छादश व्रत दान ॥ धिo ॥ ए॥परणाववा मांडी दश बाल, पण में मन न कर्यु ततकाल ॥ धिम् ॥ कीधो श्रावक मुऊने तेण, 'जिननक्तियुत परम गुणेण ॥ धि० ॥ १० ॥ श्म नीसुणी चिंते सार्थेश, पूरण से श्रावक सुविशेष धि० ॥ अहो अहो जिनधर्मी वडनाग, परणीते परण्यो ने कहेवो वैराग ॥ धिम् ॥ ११ ॥ धन धन एहने सवि सुख होय, नव्य प्राणी दीसे ने कोय धि० ॥ पुनरपि पू सार्थ एवाच,अहो धार्मिक तमें बोल्या साच ॥ धिम् ॥ १२ ॥ ए पुर घर नृप मंत्री जात, ए तो तमे कही ज्ञाननी वात ॥ धि० ॥ पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) अव्यथी कहो नगरी नाम, सांजलिये श्रवणे गुण धाम ॥धि॥१३॥ आग्रह सार्थेशकेरो जाणि, बोल्यो धूरत निगुण श्रयाण ॥वसिये रूपचंजपुर गाम,श्रावक रुजदत्त माहरूं नाम ॥ धि॥ १४ ॥ इहां हुं श्राव्यो बुं वाणिज्य काज, तुमने श्रावक सुण्या महाराज ॥ धि॥ साधर्मीनी सगा जाणि, आव्यो बुं मलवा इहां सुविहाण ॥ धि० ॥ १५॥ अमने मिथ्यात्वी नो न रुचे संग, जेम हंसने गमे न काककुरंग ॥धि॥ हरख्यो वृशनसेन ततकाल, पण नवि जाणे माया जाल ॥ धि० ॥ १६ ॥ धोढुं ते जेतुं दी दूध, धूर्तनी नक्ति विशेष प्रतिबुद्ध ॥ धि॥ पनणी रूडी बही ढाल, मोहन विजयें थर उजमाल ॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ ॥दोहा॥ रुदत्त सार्थेशथी, करे धर्मनी वात ॥ कोइ जाणे जाणे नहीं, कपट रामात्र ॥१॥ वृषनसेन सार्थेश करे, व्रत पोसह पञ्चकाण ॥ सामायिक खोटे मनें, ते धूरत महिराण ॥२॥साथे थइ सा र्थेशने, ते आवे गुरु पास ॥ शिर धूणे ने सुणे कथा, जेम अहि नाद विलास ॥३॥ जिम प्रजुजी स्वामी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) तहत्त, धन साधू उचरंत ॥ मुख मीगे धीगे हिये, रुजदत्त कपट वहंत ॥४॥पूढे वली वखाणमां, वारु गहन विचार ॥ माह्यो थई बेसे वचें, जोजो कपट प्राचार ॥ ५॥ दंनी मुख बोले दूरसुं, हिये हलाहल होय ॥ पूबसहित फणिनृत प्रत्ये, शिखी गलंतो जोय ॥६॥ रुदत्त हवे अनुक्रमें, कहे सार्थपने ताम, हवे देजो मुझ आगना, तो पोहो चुं निज गाम ॥७॥ ॥ ढाल सातमी॥ गढ बुंदीरा हाडा वहाला, चलण न देशुं ॥ ए देशी ॥ निसुणी सार्थेश रुजदत्त मुख वाणी, चा लशे सयण सयाणो हो ॥ रूपचंजपुरवासी हो मि वजी माहरा, चलण न देशं ॥ ए आंकणी ॥ एह वो सनेही वाहलो किहांथकी मलशे, धर्मी सुनग सपराणो हो ॥ रू० ॥१॥ एतो सनेही प्यारो मु ऊघरे श्राव्यो, जेम आलसुघर गंगा हो ॥ रू० ॥ बीजा घणाए मल निगुण नहेजा, कुटिल उलंक अनंगा हो ॥ रू० ॥२॥ मिथ्यामतने एणे सुहणे न दीगे, केवली वयणे रातो हो ॥ रू० ॥ एहवो विचारी जगमांहि न कोई, केणे मिषे रहे ए जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) तो हो ॥ रू० ॥ ३॥ पुत्री जो माहरी एने परणा बु, जोईए तेहवो जमाई हो ॥ रू० ॥ नाव नदी जो गें ए वर मलियो, पुत्रीनी पूर्ण कमाई हो ॥ रू० ॥ ४॥ एहने मूकीने बीजा केहने परणावं, तो सरे काज प्रमाणे हो ॥ रू० ॥ ए शषिदत्ता वखतें आ कष्यो, श्राव्यो वर इण टाणें हो ॥ रू॥ ५॥ पूर्बु एहने जश् गोद बिहाई, जो मुफ विनति माने हो ॥ रू० ॥ एहबुं बालोची रुजदत्त नणी पूजे, सार्थप जश्ने बांने हो ॥ रू०॥ ५॥ पुत्री अमारी साजन तमें हवे परणो, ए बे अरज अम केरी हो ॥5॥ सेवा करूं साजन अमथी जे थाशे, ना न कहेजो फेरी हो ॥ रू० ॥७॥ अमचा हियामां साजन तु म गुण वसिया, तेणे करी कहीये मे ताणी हो॥ रू० ॥ पुत्री श्रमारी साजन के दृढधर्मी, जोडी ए सरस समाणी हो ॥ रू० ॥ ७॥ एम सूणीने साज न रुजदत्त हरख्यो, श्रापणा मनथी विचारे हो ॥ रू० ॥ जिण उद्देसे साजन कपट करुं बुं, कीबूं पा धरूं ते करतारें हो ॥ रू० ॥ ए॥ आज अमीरसें जलधर वूट्यो, मुंह माग्यो पड्यो पासो हो ॥रू०॥ काकतालीनो साजन न्याय थयो ए, हू कोश्क तमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) सो हो ॥ रू० ॥ १० ॥ दणएक विलंबी साजन रु अदत्त बोल्यो, शाहजी अमें परदेशी हो ॥ रू० ॥ जाण्या विहूणा साजन पुत्री केम देशो, जू हृदय गवेषी हो ॥ रू० ॥ ११ ॥ सार्थपति नांखे साजन तुमने पिगण्या, डो साधर्मिक मोरा हो ॥ रू० ॥ रूप गुणे करी साजन जातिज जाणी, तेणेकरी क रीये लिए निहोरा हो ॥ रू० ॥ १२ ॥ कन्या वस्या विण तुमें किहां जाशो, नूलामणी नवि कीजे हो ॥ रू० ॥ कपटी पयंपें साजन वारु वरेशुं, केम तुम ने पुहवीजे हो ॥रूप॥ १३॥ हरख्यो सुणीने सार्थ प निज घरे श्राव्यो, कीधी सखर सजाई हो ॥ रू० ॥ लग्न बेवाये साजन चोरी बनाई, बहें, वीच वधाई हो ॥ रू० ॥१४॥ धवल मंगल साजन सखर सोहाये, सोहेलां सखरां गवाये हो ॥ रू०॥ गय वरघोडे साजन लीध जमा, तोरण मोतीडे वधा ई हो ॥रू॥ १५ ॥ होम हवन साजन तव निरमा २, हिजमुख वेद पढाई हो ॥ रू० ॥ चार मंगल साजन तिहां वरताई, अनिगत फेरा फराई हो ॥ रू० ॥ १६ ॥ कपट श्रावक साजन साहस हेजे, कृषिदत्ता परणाई हो ॥ रू० ॥ ढाल सुरंगी साजन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) सातमी जांखी मोहन वचन सवाई हो || रू०॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ परणी कपटी श्रावकें, ऋषिदत्ता तेणीवार ॥ उ त्सव महोत्सव करी घणा, वरत्या जयजयकार ॥ ॥ १ ॥ धन बहु दीधुं दायजे, कापड भूषण कोडि ॥ रुद्रदत्त दंनी तणा, पहोंता सघला कोम ॥ २ ॥ दंजी सा कन्या वरी, गयो कुबेरदत्त पास ॥ वात कही सघली तिसे, आणी मन उल्लास ॥ ३ ॥ केद वि परणी कपटें करी श्रावक पुत्री आज ॥ बे मुजरो तुम मित्रने, अहो मित्र महाराज ॥ ४ ॥ कुबेर दत्त समरथ थर, दस्यो करतल प्रास्फाल ॥ कहे धन्य धन्य तु बुद्धिने, कपट सरोवर पाल ॥ ५ ॥ दिन केते कपटी हवे, हाथ करी निजदाम ॥ शीख हे ससराकने, विनय करीने ताम ॥ ६ ॥ ॥ ढाल आमी ॥ मारे गणेहो राज, बेला मारु वावडीजी ॥ ए देशी ॥ जो जो कपटी हो राज, कहे करजोडीने जी ॥ निज ससराने इसी तेह, गुणवंता जी ॥ मूज दीजें हो राज, सदन जणी शीखडी जी ॥ ए यांक णी ॥ इहां श्राव्यां हो राज, दिवस केइ थइ गया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) जी ॥ तुम साथै यो बहु नेह ॥ गु ॥ मू० ॥ १ ॥ माहरे मंदिर हो राज, जोतां दशे जे वाटडी जी ॥ वली श्रावशुं इण पुरमांदे ॥ गु० ॥ दिशि खाट्या बुं हो राज, इहां तुम शुं मलीजी ॥ घणुं जाणजो थोडा मांहि ॥ ० ॥ ॥ २॥ श्रम लायक हो राज, होय कारिज जि कोजी ॥ लखी मोकलजो तुम्हे ते ॥ ० ॥ श्रमयी अंतरहो राज, तुमे मत रा खजो जी, थें तो नवल निवाहो नेह ॥ गु० ॥ मू० ॥ ॥ ३ ॥ तिहां रह्या पण हो राज, में बुं तमारडा जी, तुमे कीधा महोटा श्रम्म ॥ गु० ॥ माहरे नयरे हो राज, किवारे पधारशो जी, जो न श्रावो तो तुमने सम्म ॥ गु० ॥ मू० ॥ ४ ॥ एणी पुरमांहे हो राज, श्रम सुखीया थया जी, रखे मूको कदीरे वी सार ॥ गु० ॥ तुम जहेवा हो राज, धर्म सनेही नवि मीले जी, कुंण मलशे श्रमयी एवार ॥ गु० ॥ मू० ॥ ५ ॥ जिनयात्रा हो राज, समयें संजारशुं जी ॥ तुमे साह जी सुगुण विश्राम ॥ गु० ॥ एम कपटी हो राज, करे लटपट घणीजी ॥ सुणी बो व्यो वृषनसेन ताम ॥ गु० ॥ मू० ॥ ६ ॥ किहां चा लशो हो राज, करी प्रीत एवडी जी ॥ मूखे कहो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) बो जी जाशुं हवे ॥ गु० ॥ अम उपरें हो राज, थर जाउँ सुखें जी ॥ पण चलण न देशुं देव ॥ गु०॥ मू० ॥ ७॥ फरी गोठडी हो राज, किहांथी तुमार डीजी ॥ ए तो बनतां बनी गश् गोठ ॥ गु०॥ अमे कोथी हो राज, नहीं तो करां प्रीतडी जी, जे पव ने न पडे कोठ ॥ गु० ॥ मू० ॥ ॥ तुमे खामी हो राज,अौं अमीरस बोलता जी॥तेणें माहीं हेलव्यु हीर ॥ गु० ॥ नहिं तो कोश्ने हो राज, धीरे केम बांहडी जी ॥ अमें श्रावक धर्मी धीर ॥गुणामूगाए॥ अमें तमने हो राज, दीधी एक पुत्रिका जी, कि स्यो पडदो राख्यो नांहि ॥गुण॥ एम निःस्नेही हो राज, तुमे पर देशीया जी॥ द्योडो हली मली बेद दूसाह्य ॥ गु० ॥ मू॥१०॥ नली जाणी हो राज, तुमारी प्रीतडी जी, हवे चालो जो माया लाय ॥ गु० ॥ सुंदर मंदिर हो राज सवि, जे तुमारडां जी तूमें रहो रहो महाराय ॥ गु० ॥ मू० ॥ ११॥ तव रुदत्त हो राज, बोल्यो हसी शाहशुं जी॥ह केलं नहीं ले काम ॥ गुं० ॥ अमें लागर हो राज, वेपारी वाणीया जी ॥ अडे कारज बदलां धाम ॥ गुण ॥ मू०॥ १२॥ वली मिलशुं हो राज, जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) में खरो नेहलो जी ॥ पण हवणां तो दीजें शीख ॥ गु० ॥ सत साखें हो राज पसरजो साहिबाजी, तुमें जीवजो कोडि वरीस ॥ गुण ॥ मू ॥ १३ ॥ बेसी तव सार्थ हो राज, सोंपी निज पुत्रिका जी॥ तस शीखडी दीधी ताम ॥ गु० ॥ शुन शुकने हो राज, तदा संप्रेडिया जी, सहु साजन करे गुणग्राम ॥ गुण ॥ मू ॥ १४ ॥ बेसी रथमें हो राज, रुरुदत्त निजपुर चालियाजी ॥ कही आठमी दो राज, स खूणी सोहामणी जी ॥ ए तो मोहन विजयें ढाल ॥ गु० ॥ मू०॥ १५॥ ॥दोहा॥ ज्ञषिदत्ता रुदत्त बिहु, पंथे वहे सोत्साहि ॥ नुक्रमें पहोतां हेज नरी, रूपचंद्रपुरमांहि ॥ १॥ कुटुंब सयल हर्षित थयुं, रुजदत्त श्राव्यो जेण ॥ साथें शषिदत्ता निरखी,हरख्यो अतिहिं तेण ॥२॥ सासूने पाये पडी, सासू सुकुक्षिणी ताम ॥ वडां वडेरां श्रादिदें, सहुने कीध प्रणाम ॥ ३ ॥ बेठी मंदिर हेज नरी,कीधां नोजन सार॥रुदत्त पण कपटगृह, जम्यो हस्यो तेणीवार ॥४॥ अतिप्रीतें पति प - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) मिनी, जोगवे जोगप्रकाश ॥ दो गुंदक सुरनी परें, विलसे लमि विलास ॥५॥ ॥ ढाल नवमी॥ गढडामांहे फूले सही हाथणी ॥ ए देशी ॥ आचार घरना सा तव देखीने, मनडामांशोचे वारं वार ॥ माहरे प्रीतमीए नेसहि तो कैतव केलव्यु, हूंतो श्रावक केरी बालिका, एहोनो तो महेश्वर श्रा चार ॥ मा० ॥१॥ सहितो ए कपटी श्रावक हो यने परणीवाहीने एणे कूड ॥ मा० ॥ नली हूं रे नुलवाणं। दासु एहथी, धुरथी में नाव जाण्यं कूड ॥ मा० ॥२॥धूतारे नाखी मुजने फंदमां, तेहनो हुँ केहो करीश उपाय ॥ मा०॥ माहरुने पिदर रडं वेगवं, पुःखमु ए जा केहने कहाय ॥ मा० ॥३॥ सुरतरु जाणी में बाथ जरी हती, थई नि वड्यो नाह बबुल्ल ॥ मा० ॥ दीसे ने बाहेर फररा फूटरा, जीतर सुरपति मदिरा मूल ॥ मा० ॥४॥ कर तो में होंशे करी घाख्यो हुतो, जाणीने लीली नागरवेल ॥ मा० ॥ पण तो ए निवडीयों कौअच वेलडी, खलढुंती यावी मलीयो खेल ॥ मा॥५॥ न मिटे क्यारे विधिना अकरा, पडयुं पार्नु कपटी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( হए) हाथ || महारो धर्म हुं के परे करूं, अहो हो श्री जिनवर जगनाथ ॥ मा० ॥ ६ ॥ केम करी रा खी शकीयें जालवी, एकण म्यानमें बे करवाल ॥ मा० ॥ प्रीतम हवे अवसर श्रावियो, नीरखी स चिंते ते सुकुमाल ॥ मा० ॥ केम तमें वनिता श्रा मण दूमणां, वो बो माहरे नयरों आज || मा० ॥ कीजी निहेजें तुमने दूहव्यां, मुफ जणी तुमे दा खो तेह समाज || मा० ॥ ८ ॥ श्रापणे खामी बे कहो केहनी, पहेरीने भूषण नव नव रंग ॥ मा० ॥ कपूरकेरा तूमें करो कोगला, खेलो साहेली केरे सं ग ॥ मा० ॥ ए ॥ हिडो मेलोरी पीहरतणो, म त तुमें श्राणो यतमराम ॥ मा० ॥ निवहो आपण लें करे लेइने, आपणा मंदिर केरुं काम ॥ मा० ॥ १० ॥ यौवनलटको दहाडा चारनो, अवसर केहो धर्मनो आज ॥ मा० ॥ श्रागलें सुख दुःख केणें दी डुं, केणे वली दीठो धर्मसमाज ॥ मा० ॥ ११ ॥ के मकरी कीजे दोहिलो श्रतमा, पामीने मानवनो अवतार ॥ मा० ॥ मूरख जे कोई कांई लेहेता नथी, ते नव लेवे सरस आहार ॥ मा० ॥ १२ ॥ एहवा सांजलीने पीयुना बोलडा, हारीने बेठी धर्म रतन्न ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) ततक्षण लागे संगति नीचनी, जो करी रहीयें को डी यतन्न ॥ मा० ॥ १३ ॥ सवृक्षपुष्पसौरज्य, दान दानैकतत्परः ॥ शबेन मिलितो वायुदौर्गंध्यं किमु ना श्रुते ॥ हुइ मिथ्यातणी पियुना प्रसंगथी, मानव जो जो कर्मनां काम ॥ मा० ॥ पीयूष केरुं गरल थई गयुं, ऐ ऐ मोह महाबलधाम ॥ मा० ॥ १४ ॥ आग ल होशे सवि वातो जली, दर्षशुं निसुणो बाल गो पाल || मा० ॥ मोहन विजयें जांखी हेजशुं, अनि नव जांखी नवमी ढाल ॥ मा० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ . सुख जोगवतां विविहपरें रूषिदत्ताने एक पुत्र रत्न हूर्ज जलो, सुंदररूपविवेक ॥ १ ॥ कीधा उ त्सव नवनवा, दीघां जाचक दान ॥ नात संतोषी आपणी, वर्हेच्या फोफल पान ॥ २ ॥ नाम ठव्युं वरमुहूरतें, तास महेश्वरदत्त ॥ रूपवंत विद्यानिलो निरुपम गुणसंसत्त ॥ ३ ॥ दुर्ज तेह अनुक्रमें, यौवनवय उन्मत्त ॥ सहू वखाणे नयरमें, धन्य महे श्वरदत्त ॥ ४ ॥ नमया सुंदरीनो हवे, सांजलजो अधिकार ॥ श्रति रसीली बे कथा, शीलोपरि सु विचार ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) ॥ ढाल दशमी ॥ नानो नाहलोरे ॥ ए देशी ॥ पीयर ऋषिदत्ता तणे रे जाइ बे सहदेव, साजन सांजलो रे ॥ ए यांकणी ॥ तस दयिता बे सुंदरी रे, जेहवी सिंधुसुता स्वयमेव ॥१॥ अनुक्रमें गर्भ धरयो तिणे रे, सूचित सुपनाहार ॥ सा० ॥ जेम जेम गर्न वधे जलो रे तेम तेम हर्ष - पार ॥ सा० ॥ २ ॥ यति न इसे प्रति नवि सुवे रे, अति चपल न चाले चाल ॥ सा० ॥ श्रति बरकी बोले नहीं रे, प्रति घणुं न करे ख्याल ॥ सा० ॥ ३ ॥ वात जो मुंजे गर्जिणीरे सुत होय कुब्ज के अंध ॥ ॥ सा० ॥ कफवत जोजने पांकुरोरे, पीतवंत पांशु प्र बंध ॥ सा० ॥ ४ ॥ श्रति लवणें प्रगवल हरे रे, अति शीतलें होय वाय ॥ सा० अति ऊनुं हरे वीर्यने रे, अतिकामें गर्ज हाय ॥ सा० ॥ ५ ॥ दिवसे जो सूवे गर्जिणीरे, निद्रालु होय जात ॥ सा० ॥ नयनांजन श्री ची पडो रे, रुदने गलित गवात ॥ सा० ॥ ३ ॥ . स्नान लेपन दुःशीलियोरे, कुष्टि तेलायाम ॥ सा० ॥ इसवार्थी रसना तालकुं रे, दंतोष्ठादिक श्याम ॥ सा० ॥ ७ ॥ चपलगतें चंचल हुवेरे, शुष्काहारें मूढ ॥ सा० ॥ होवे प्रलापें अतिबके रे, अति निसुये नि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) गूढ ॥ सा० ॥ ८ ॥ इति सुश्रुत शारीरमें रे, नांख्यो गर्ज विचार ॥ सा० ॥ अनुमानें ते ग्रंथनें रे, पाले गर्न सा नार ॥ सा० ॥ ए ॥ जेहने उदरें अपुत्रीयो, उपन्यो होय जो जात ॥ सा० ॥ गाल माटी ठीकरा रे, आहारे तेहनी मात ॥ सा० ॥ १० ॥ पुण्यवंत गर्ने उपन्यो रे, करे शुजकरणी मात ॥ सा० ॥ रुडा ज दोहला उपजे रे, शास्त्र में एम कही वात ॥ सा० ॥ ११ ॥ अनुक्रमें सुंदरी नारीने रे, दोहद उपन्यो श्रहीन सा० ॥ सप्रिय रमुं गयंवर चढीरे, नर्मदा तटिनी पुलीन ॥ सा० ॥ १२ ॥ दीनने दान दिउँ जोतुरे, पूरुं एह उमाह ॥ सा० ॥ दोहद ए मुज चित्तना रे, जश्ने विनवुं नाह ॥ सा० ॥ १३ ॥ सतणी गतें चालतीरे, पहोती प्रीतम पास ॥ सा० ॥ स्वस्थ थई दोहद का रे, करिकरिवचन विलास ॥ सा० ॥ १४ ॥ पियु रंज्यो दोहद सुणी रे, दयिताने दीध दिलास ॥ सा० ॥ ए तुम इछा पूरशुं रे, क रशुं एह तमास ॥ सा० ॥ १५ ॥ जो कशी होंश होये वली रे, मुऊने दाखो तेह ॥ सा० ॥ ढाल कही दशमी जली रे, मोहन विजयें तेह ॥ सा० ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥दोहा॥ सहदेवें श्राण्यो तुरत, देती शुमादंग ॥ हिमगि रिबांधव जाणीयें, के धराधरपिंड ॥१॥सोहे रदन रयणे जड्या, अति विस्तार अदीप ॥ मानुं गज दाढा उपरे, बप्पन्न अंतरछीप ॥२॥ ऊच्च कपोल थकी करे, वहे मदधारा नूर ॥ ऊलटयो पद्मजह थकी, सिंधू गंगापूर ॥३॥ करीकरी इंदीवरें, चि त्रित तनु उत्संग ॥ मार्नु लता विद्युम तणी, तरे प योधितरंग ॥ ४ ॥ गजने गले घंटावली, कीलती नीली फूल ॥ सरवर तट हरीयां वचें, दईर डहके अमूल ॥ ५॥ वीरसेन सा सुंदरी, बेठी गयंवर पी ॥ पाम्यो तंट ते नर्मदा, अति रमणीय ३ ॥६॥ ॥ढाल अग्यारमी॥ अमदावादना खेड्या रे, वालम वहेला आवजो रे॥ हारे मारी मीठडा बोली नार, काजल थोडे रो हो सार ॥ ए देशी ॥ नर्मदा नदीने तीरे रे, गयंवर वीफस्यो रे ॥ उंडा घनशुंगज गललो कस्यो रे॥ तेणे गजे धूएयुं धडहड अंग, करतो धूसर हो उतरंग ॥ अंकुशीयानी जीके रे, ते वश श्राणीयो रे॥१॥ अरहो परहो फेख्यो रे, गज तेहने तटें Jain Educationa wernational For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) रे॥ तूंढे ग्रहीने महीरुह आबंटे रे ॥ तव तिहां बीहती सुंदरी नारी, पीयुने करती बहु मनुहार, सुंदर तरुनी बायें रे, तुमें छीप राखजो रे ॥२॥ गजने पीयुडे आण्यो रे ते तरु हेठले रे ॥ लांबी सांकल रे, नूतल खलनले रे ॥ मदकर राख्यो ति हां कीजीकार, जामिनी नासे हो जरतार, करिव रियाने बांगो रे, जश् जल जीलीएं रे ॥३॥ प्रम दा पीयुडो बेहु रे, गजथकी उतस्यां रे ॥ नमया त टनी साहमां संचयां रे॥जिहां करे हंस मयर ट कोर, जाणीयें रण कण रणके जोर, नूपुरियां अति रुडां रे वहे तेह वजाडती रे॥४॥ जलना पूरमां होवे रे बहुल पंपोटडा रे, सूर्यना दीधिति रे, फल हले रुबडा रे, एतो मानुं तटिनी कंठें हार, तेहनां दीपे हो नंग सार ॥ हरि हरियाली उढी रे, जा णीयें उढणी रे ॥ ५ ॥ मत्स्यना पुत्थी उडे रे, ज लना बिंवा रे ॥जीणा कीणा श्रेणे जूजुया रे, ए तो मार्नु सास्यां केशे केश, उज्ज्वल दधिसुत हो सुविशेष, सारसीयाला पाले रे सारसुडा चूगे रे ॥६॥ नीरना पुरमें मार्नु रे अंबुज उफण्यां रे, गुणथी लीना मधुकर रणजण्या रे ॥ एहवी सा न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) दी सुंदरी देखि, पामी मनमां हर्ष विशेष ॥धसमसी ने ते पेठी रे, कीलवा कारणे रे ॥ ७॥ सजनी सा हेली संगें रे किन्नरी यांटती रे, मांहोमांह जल निर्मल बांटती रे ॥ के ग्रहे करथी कैरव कोष मु ख, द्युतिये देती हो इंछने दोष॥काजलीयाली नेणे रे, नर्मदा हारथी रे ॥७॥ तरती आवडती पडती रे केश्क उठती रे, जाणीए पन्नगी जल अंगूठथी रे ॥ एम तिहां रमती रसनरी नारि ॥ त्रट त्रट बेटे मोतीहार, मोतीयडांने लोग्ने रे सफरी तरव रे रे ॥ ए ॥ रमत रमतां थाकीरे सघली सुंदरी रे, कांठे उनी जेहवी पुरंदरी रे ॥ सुंदरी नीचोवें ति हां वेण, फणिपति जीत्यो जाणीए जेण, रेसमीया ली पहेरी रे बीजी पटोलियो रे ॥१॥ उमके वमके चाली रे प्रणमे नाहने रे, खामी पूख्यो तमे ए उ त्साहने रे ॥ पण वली होंश डे मुफने एक, पूरो तो कहिये हो सुविवेक ॥ तमने जो नवि नाखु रे तो केहने कहुं रे ॥ ११॥ माहरो जोरो चाले रे पीयु तुम पागलें रे, जेणी रीते वा तेम तेमही व ले रे॥ एम कही सुंदरी करी मनोहार ॥ तव तिहां बोल्यो हो जरतार, हियडलानी वातो रे, नारी मुफ Hein Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) ने कहो रे ॥ १२॥ पैसो खरचे थाशे रे तो होश पू रशुं रे, बीजुं गुणवंती बल नहिं दूरशुं रे ॥ तेणे एम निसूणी पीयुनी वाणी, बोली सुंदरी हो जोडि पा णि ॥ नाहलीया एणे तीरे रे एक पूर वासीये रे ॥ १३ ॥ जंचा ऊंचा रूडा रे महोल बनावीये रे, र मवा अहोनिशि श्ण तटें श्रावीये रे ॥ एवी श्छा मु ऊ मनमांहि,पूरो पीयुडा हो सोत्साहि ॥ प्रीतमीए तिण वेला रे, आरंत पादस्योरे॥१४॥ केटला दिनमा तेणे रे नयर वसावीयु रे, रुडा रुडा लोकने वास वसावीयु रे ॥ एतो कही सरस अग्यारमी ढा ल, मोहनविजयें हो सुविशाल ॥ सरसाली अति मीठडी रे, आगल वातडी रे ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ __ वस्युं नर्मदापुर नढुं, नर्मदा तटने तीर ॥ उ ज्ज्वल जिनमंदिर कस्यां, जिम कीरा ब्धि दंभीर ॥ २॥ जिन मूर्तिनी स्थापना, कीधी लाज निमित्त ॥ नाव सहित दंपती करे, नवली पूजा नित्त ॥२॥ काशमीरज चंदन कुसुम, धूप दीप उपचार ॥ न क्ति विशेषे खारथ करे, ए श्रावक आचार ॥३॥ एम दोहद पूरण कस्या, नारीना नव रंग ॥ सहदेवें सू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) परें किया, अधिकाधिक उबरंग ॥४॥ एहवे र हेतां अनुक्रमें, गर्नतिथि थ जाम ॥ सुंदर नारी एं प्रवर, पुत्री प्रसवी ताम ॥५॥ ॥ ढाल बारमी॥ मोतीयारां हे कुमख मखां ॥ए देशी ॥ अथ वा घरे श्रावोजी आंबो मोरीयो ॥ ए देशी ॥ सह देवने दीधी वधामणी, घरें प्रसवीजी पुत्री रतन्न ॥ सही हूवां ए रंग वधामणां, तव हरख्योजी शाह शिरोमणि, अति पुलकित ह तन्न ॥ स० ॥१॥ मणि सोनुं रु' सामटुं, तस दासीने कीध पसाय ॥ स॥ कस्यां उरण जाचक लोकने,जेम श्रातम शक तें देवाय ॥ स ॥२॥ कस्यो उत्सव पुत्रीनो अनि नवो, जेम अंगज आवे कराय ॥ स० ॥ वली घर घर गुडी उबले, घर बांगणे गीत गवाय ॥ स ॥ ३॥ पुर्वानां तोरण बांधीयां, वीच सुरतरुदल लहकंत्र ॥ स ॥ कुंकुमना करतल दिधला, जला फूल फगर मदकंत ॥स॥॥ मणि मोतीनां हो टोमें फूंबखां, गोखें चंदन जरीयां माट ॥ स ॥ नेरी चुंगल तव हडहडे, पुडी गुंजाला गुंजे थाट ॥ स० ॥ ॥५॥ जन्ममहोत्सव पुत्रीतणो, सहदेवें कीधो वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) शेष ॥ स० ॥ जिन साजन सवि संतोषियां, दिन उचित उचित सुलेष ॥ स० ॥ ६ ॥ सहदेव कुटुं व जण कहे, तमें सांनलो माहरी वात ॥ स० ॥ ज्यारे सुता एहनी मातने, हूंती गर्ने विमल विख्या त ॥ ० ॥ ७ ॥ त्यारें एहवो डोहलो उपन्यो, ए हेनी जननीने श्रहो वीर ॥ स० ॥ गयंवरने खंधें चढी करी, जइ खेलुं हो नर्मदा तीर ॥ स० ॥ ८ ॥ वली तेणें तटें नगर वसा विएं, तिरुडं नर्मदा नाम ॥ स० ॥ जो मनमां आवे सहु तथा, जो दोहद गुण अभिराम ॥ स० ॥ ए ॥ दवे कहो तो ए पुत्री नुं दीजीयें, वर नर्मदासुंदरी नाम ॥ स० ॥ दोहद सघला में पूरिया, घरे प्रसवी पुत्री ताम ॥ स० ॥ १० ॥ कहे कुटुंब सयल हर्षे करी, एहनुं एहिज उ तम नाम ॥ स० ॥ नाम नर्मदासुंदरी स्थापिने, सहू पहोता निज निज धाम ॥ स० ॥ ११ ॥ सा सुंदरी पुत्री जणी, लेइ गोद रमाडेसुगेल ॥ स० ॥ सिंचे पय पाणी पानथी, जिम श्रमीए सुरतरु वेल ॥ स० ॥ १२ ॥ आभूषण दिव्य अंगें वव्यां, फ रके टोपी ऊरकशी शीष ॥ स० ॥ बेड पाये घूघरी घमघमे, देखी जननी पामे हीस ॥ स० ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) घर आंगणे दोडे धुंटणे, कण रोवे क्षण हसे तेह ॥ स० ॥ कहे मुखथी खमां खमां, मावडी करि क टि तटे आणी नेह ॥स॥१४॥ वली निर्मल नीरें न वरावती, बुचकारती माय जे मयाल ॥सम्॥ मोहन विजयें वर्णवी, ए कही बारमी ढाल ॥ स० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा॥ वाधे नमया सुंदरी, रुपरंग गुण प्रेम ॥ ए रज नीपति बीजनो, दिन दिन वाधे जेम ॥ १॥ जे णें बालपणाथकी, जोया ग्रंथ अनेक ॥ लक्षण शा स्त्र तणी थई, वरदायी सुविवेक ॥२॥ निर्विकार जस नयन युग, रसना सुधा सरीस॥हियडे विषय नी वांबना, सुपने नहिं सुजगीश ॥३॥ यौवन फल क्युं देह उपरें, उप्यु सुंदर रूप ॥ मुखपर निवसी श्र रुणता, उबित पयद अनूप ॥४॥ हांसू अधरें वीश मे, लजा लंगर पाय ॥ सा नमया यौवन जणी, मि ली नुजयुग सुविजाय ॥५॥ हवे श्रोताजन सांजलो, 'नावी कथा विचार ॥ मन माने ते कीजीए, पण हो य ते होवणहार ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ॥ ढाल तेरमी॥ सनेही वाला लागो नेह न तोडो॥ ए देशी ॥ हवे ते कृषिदत्तानारी, सुणी ते नमया सुंदरी सारी रे॥ सनेही क्यारें मलशे मुज जिनधर्मी ॥ करे या लोच एम गुण वरमी रे॥सा में एहवं एम शुं कीg, जे जैनधर्म तजी दी● रे ॥ स ॥१॥ निज कुलमार गथी ए चूकी, जिननक्ति में करवी मूकी रे॥ स॥ वली नाहने वचने नूली, तजी कल्पमंजरी ग्रही मली रे ॥ सम्॥२॥ वर समकित रतन में खोयु, जुट मिथ्या काच वलोऊं रे ॥ स ॥ तजी अमीय महामद पीवू, वड बेदी श्रोहीपण कीबूं रे ॥ स॥ ॥३॥ उन्मूली सूरतरु ओप्यो, तिण स्थानक विष तरु रोप्यो रे ॥ स ॥ शुनकुंनि कुंजस्थल बेसी, थश् चरणचारी हवे एसी रे ॥ स० ॥ ४ ॥ तजी संगति हंस सुरंग।कस्यो काक कुटिल प्रसंग रे ॥ स० ॥ जयुं मानसरोवर बांकी। जल निबर क्रीडा मांमी रे ॥ स० ॥५॥जलो मोतीनो हार निवारी, गले गुंजमाला दिलधारी रे ॥ स० ॥ सहि मृगमद पुंज विपोही, हवे अविकर निकरें मोही रे ॥ स० ॥ ॥६॥ वर श्रावक कुलमें श्रावी, तो एसी कुबुद्धि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) कमावी रे ॥ स ॥ घणुं धर्मथी चाली थाडी, निज कुलने लाज लगाडी रे ॥ स० ॥ ७॥ घर समकित रत्न में आएयु, पण स्थिर राखी नवि जाए रे ॥ ॥ स ॥ एक मिथ्यात्वी समकितधारी, ए बेहु में डे अंतर जारी रे ॥ स ॥ ॥ कीहां मंदर सरषव दाणो, कीहां जलनिधिकूप श्रयाणो रे ॥स॥ किहां नृपप्रमदाने दासी, किहां ग्रामीण किहां पुरवासीरे ॥ स ॥ ए॥ किहां अलसिक ने अहि राजा, किहां ढक्का ने घन गाजा रे ॥ स० ॥ किहां मृगपतिने किहां शृगाल, कहां बावल सुरतरु डाल रे॥ स० ॥ १० ॥ किहां वायस ने किहां केकी, किहां अविवेकी ने विवेकी रे ॥ स ॥ किहां दिन करने किहां खजुर्ज, किहां श्रादर ने किहां दूर्ल रे॥ ॥ ११॥ किहां कृपण ने किहां धनदाता, किहां कष्ट अने किहां सुखशाता रे ॥ स ॥ किहां रंक ने किहां पुरराव, किहां शोचना शुद्ध खन्नाव रे ॥ सम् ॥ १२ ॥ किहां रजनी ने किहां दीस, किहां प्रेत ने किहां जगदीश रे ॥ स ॥ किहां मणिरत्न ने किहां लघु चीडी, किहां कुंजर ने किहां कीडी रे ॥ स० ॥ १३ ॥ तिम जगमें समकित सरिखो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) को बीजो पदारथ न नीरख्यो रे ॥ स ॥ में श्र तिहीं कस्यो अविचास्यो, जे जैनधर्मने निवास्यो रे ॥ स० ॥ १४ ॥ मुक माता पिता जो ए लहेशे, तो कांगें कांश कहेशे रे ॥ स० ॥ नहीं रही होय वात ते बानी, थर गइ होशे कांना कानी रे ॥ स०॥ १५ ॥ सही नाखशे पितर ते बाढी, मूने पत्र सटितपरि काढीरे ॥ स० ॥ में रे कर्म कस्यां शां पहेला रे, थ धर्मथकी अलगी वहेला ॥ स ॥ ॥ १६ ॥ गुणहीन कुटिल अटारी, मुफ सरिखी नहिं को नारी रे ॥ स ॥ ए तेरमी ढाल सवार, कहे मोहन विजय बना रे॥ स० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ ऋषिदत्ता करकमल पर, स्थापी वर मुखचं ॥ नीर टबके नेणथी, जे पुराणे संज॥१॥ रुरुदत्त दीठी एहवे, श्राव्यो नारी नजीक ॥ लांखे किम तुम नामिनी, नूतल वली हो लीक ॥२॥ उंचुं जूठे अंगना, निरखो नीबूं केम ॥ दीसे वे मुख दा हडे, शशीकर उदयो जेम ॥ ३ ॥ तव बोली तरुणी तिसे, रे रे पियु प्राणेश ॥ अंगज सुंदर आपणो, पाम्यो यौवन वेश ॥४॥ मुफ बांधवने बालिका, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) नमयासुंदरी नाम ॥ तेपण थ नवयौवना, अप्सरा जेम अनिराम ॥ ५ ॥ आपण श्रावक होत तो, तो ते नमया बाल ॥ परणावत पीयु आपणा, पुत्र जणी ततकाल ॥६॥ ॥ ढाल चौदमी॥ ___ गाढा मारुजीहो जनक उडे लाठी चगें, श्रम ली पीवे कलाल रे। गाढामारु अति उन्मादी माह रो साहिबो॥ ए देशी॥ मोरा पियुजी आपण मि थ्यात्वी वाणीया, ए सावय लोक रे॥ मो० ॥ लेख लख्यो ते लाजीयें, एहमां न को संदेह रे॥ मो०॥ ले ॥ मोरा ॥ पुत्रने ते पुत्रीनणी वरवानो नहिं योग रे ॥ मो० ॥१॥ ते नमया आपण घरे, श्रावे तो पूरण नाग्य रे ॥ मो०॥ हुँ पण जाई नवि शकुं, लाधतो कोइ नयी लाग रे॥ मो०॥ ले०॥ मो॥ २॥ तुमने तिहां जो मोकलुं, तो पण सरे नहिं का म रे ॥ मो॥ते तुमने धारे नहीं, जाणो बो गु णधाम रे ॥ मो० ॥ ले० ॥ मो० ॥३॥ तुमें बो मा णस मोटिका, तुमची केही वात रे॥ मो० ॥ तुम गुण जाणी बालिका, किम नवि परणे जात रे॥मो० ॥ ले० ॥ मो० ॥४॥ तुम जेहवा धूरत तणो नाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) केम विश्वास रे ॥ मो० ॥ शेकीने जे वावियें, लहि जें केम कण तास रे॥मो० ॥ ले० ॥ मो० ॥५॥ कीधा तस तुमें दोहिला, तेहनी हवे शीश्राशरे, दा ज्यो जे पय पीवतां, ते फूंकी पीवे डास रे ॥ मो० ॥ ले॥ मो॥६॥ वचन सुणी वनिता तणां, बोल्यो रुदत्त नाम रे॥ मो० ॥ जे होणी ते हो गइ, तेह - हवे शुं नाम रे ॥ मो॥ ले ॥ मो॥७॥ जे तिथि गश्ते ब्राह्मणा, वांचे नहीं नियमेव रे ॥ मो० ॥ की, ते नवि शोचीए, खरं ते होशे ते हेव रे॥ मो० ॥ ले०॥ मो० ॥ ॥ होशे नमया बाल नो, आपणा सुतथी सबंध रे ॥ मो॥ तो अणचिं त्यु हो थशे, पाणिग्रहण ससंध रे ॥ मो० ॥ ले०॥ मो॥ ए॥माणस हाथे न वातडी, हाथे विधाता नाथ रे॥ मो॥ जावीथी डाह्यो नहि को, न मटे लेख लख्या जेह रे ॥ मो॥ ॥ मो० ॥ १० ॥ जो ते नमया सुंदरी, जो नहीं परणे जात रे॥ मो॥ तो शुं रहेशे कुंवारडो, एशी गली वात रे ॥ मो० ॥ ले। मो० ॥११॥ कहे ऋषिदत्ता नाथने, ए स हि साची वाच रे ॥ मो० ॥ दंत दे ते चाववा, दे डे ते साची वात रे ॥ मो० ॥ ले॥ मो॥१९॥ एतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) प्रत्यक्ष पार, नावीनो संसार रे॥ मो॥ तमे मि थ्यात्वी हुं श्राविका, केम थयां स्त्री जरतार रे ॥ मो०॥ ले ॥ मो० ॥ १३ ॥ जे लख्या विधियें श्र दरा, ते कुण टाले जत्ति रे ॥ मो० ॥ एहवे रमतो श्रावीयो, पुत्र महेश्वर दत्त रे ॥ मो॥ ॥ मोक ॥ १४ ॥ कर जोडी कहे तातने, करो बो केहो वि चार रे ॥ मो० ॥ केम सचिंती मुक मावडी, कहो मुझने एणी वार रे॥ मो॥ ले० ॥ मो० ॥ १५ ॥ केणे पुहवी एवडी, के केणे दीधी गाल रे॥मो॥ हठ करी मांड्युं पूबवा, जननी उमनी नीहाल रे ॥ मो॥ ॥ मो० ॥ १६ ॥ नाखशे रुजदत्त बोल डा, सांजव्य सुत सुकुमाल रे॥ मो० ॥ नांखी मनो हर चौदमी, मोहन विजयें ढाल रे ॥ मो॥ ले० ॥मो० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ - रे वत्स मामो ताहरो, नाम जलो सहदेव ॥ तस घर पुत्री नर्मदा, अ सयल गुण मेव ॥१॥ काने निसूणी नर्मदा, तव माताए आज ॥ तेहने तुफ प रणाववा, वां वे माताज ॥२॥ हुँ तिहां नवि जा ई शकुं, में तिहां कैतव कीध ॥ थश् श्रावक तुक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) मायने, परणी जग प्रसिक ॥३॥ ते तो पुत्री तुक जणी, कहो सुत सोंपे केम ॥ तुज जननी ते शोकमें, चिंतातुर जे एम ॥४॥ पुत्र कहे हुँ तिहां जश, प रणीश करी प्रपंच ॥श्रम कुल एहिज रीत बे, तेह मांशी खलखंच ॥५॥शकट नरी बहु वस्तुथी, तुरत महेश्वरदत्त ॥ चाख्यो श्राव्यो अनुक्रमे, वर्षमान पुर ऊत्त ॥६॥मामाने दीधी खबर, जे श्राव्यो जा णेज ॥ ते निसुणी घर तेडियो, ईषत थाणी हेज॥७॥ ॥ ढाल पन्नरमी॥ श्राव्य धूतारा नंदनारे, तें धूत्युंगोकुल गाम ॥ ए देशी ॥ हिये थालिंगीने मल्या जी, मामो ने नाणे ज॥ केम कृपा करी पत्तन एणे, जी जांखो आंणी हेज ॥१॥आव्य धूतारा रुजना रे, तुं कुशल कहे वात ॥ एक वेला ताहरे तातें, देखाड्या पराक्रम ॥ तुमें पण जे गेहे पधास्या, शुंजी करशो तेम ॥२॥ अमे एकज वार धूताणा, हवे धूताशुं केम ॥ जाण्यो ग्रह पीडे नहिं क्यारे, उखाणो एम ॥३॥ ॥ पावक उपरे काठनी हांडी, चढे एकज वार, तारक बिंबे हंस लोलाणो, मोती न चूगे फेर ॥ आ॥४॥ हमणां तो आपणे बे सगाई, मया करो महाराज ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only __ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) एक सदन शाकिनी पण बोडे, श्राणी संबंधनी ला ज ॥श्रा०॥५॥ चक्री पण तेम चक्र न मूके, बांध बताने जेम ॥ पोतार्नु वली पारकुं प्री, पशुउँ पण ए तेम ॥श्रा ॥ ६ ॥ तुमें जे पुरमांहि वसो हो साचुं कहो ससनेह, डे सघलां ए लोक धूतारां, के तुमारूं गेह ॥श्रा०॥ तुमा प्राप्ति अन्य व्यापि रे, शुं कांश नवि थाय ॥ जे एम मूसे लोक पराया, केम ए आवे दाय ॥आ॥॥॥ नीचे पानने सांजली बोल्यो, मामाजी महाराज ॥ ए जवेखो कांश श्रलेखे, श्रांगण श्राव्या श्राज ॥था ॥ ॥ए॥ एक जूंडे शुं सघलां जूंडां, जाणो बो देव दयाल ॥ आंगुलि पांचे होवे न सरखी, कोश् मोटी को बाल ॥ श्रा० ॥ तात सरीखो जात न जाणो, केश धनी के रंक ॥ रावण मंदिर पुंजतो वायु, हनुए लीधी लंक ॥ आ॥ ११॥ वसुदेवने कंस नरेशे, राख्यो कारागार ॥ काढ्यो तिहाथी पुत्र मुकुंदे, मातुल दीध प्रहार ॥श्रा ॥ १२॥ न होवे पुत्र में ताततणा गुण, मानी त्यो निर्धार ॥ दो जीहो विषयी जन पीडे, कीधो मणि उपकार॥श्राप ॥ १३॥ खारो पयोनिधि मानव जाणे, पुत्र शशी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) सुधाकंद ॥ जो सघलाए होवे सरखा, तो उगे केम दिद ॥ ० ॥ १४ ॥ मामा तुमची माहरे तातें, खाट्ठ्या दीसे दोष ॥ पण तुमने या घटे जारी, थाणीजे नहिं रोष ॥ ० ॥ १५ ॥ जंघ उघा डतां पोता केरी, पोताने यावे लाज ॥ हूइ ते हूइ पण दवे मोसुं, माफ करो महाराज ॥ ० ॥ १६ ॥ तात श्रमारो ढुंतो मिथ्यात्वी, पण तुम बेहेन प्रसं ग ॥ बीजा धंधा मूकीने हवे, जैन धरमयीरंग ॥ १७ ॥ हरख्यो मामो ते निसुणीने, जलस्यो अंगो अंग ॥ मातुल मलीयो जाणेजथी त्यारे, कोमल दीयुं आलिंग ॥ श्र० ॥ १८ ॥ वस्तु वखारे आणी उ तारी, सुंदर जोजन कीध ॥ वेंची साठी तेह वसा एं, दाम सवाया लीध ॥ ० ॥ १७ ॥ मामाथी म यो एकंगो, जाणेजो धूतधमाल ॥ मोहन विजयें रु डी नांखी, पन्नरमी ए ढाल ॥ प्रा० ॥ २०॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ • रंज्यो तस गुण देखिने, मातुल चित्त अनंत ॥ पूबे निज जाणेजने, तेडीने एकंत ॥ १ ॥ रे वत्स तुमने जे रुचे, मागी ले तुं तेह | संकोचाश्श मा सुजग, ए बे ताहरु गेह ॥ २ ॥ इम निसुणी बोले For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४ए) तुरत, हसी महेश्वरदत्त ॥ स्वामी तुम्म पसायथी, सघली डे संपत्त ॥३॥ जो करुणा पूरण करो, शनि त जो द्यो मूऊ ॥ तो ए नमया सुंदरी, परणावो कई गूज ॥४॥ एहज अर्थ हुं शहां, आव्योढुं महारा ज ॥ हवे जेम जाणो तेम करो, बांहि ग्रह्यानी लाज ॥५॥ ॥ ढाल सोलमी॥ __ गश्ती पीयरीएने आविती रीसा ॥ ए देशी॥ वाणी सुणीने बोल्यो तिहां सहदेव, तुतो मिथ्यात्वी अमें श्रावक सुसेव ॥ महारा नाणेजा हो राज ए हेवू म बोल ॥१॥ तुळजनक गयो अमने नोलाय, ते उपरें पुत्री केम देवराय ॥ म ॥ एक वेला दा ऊयो उधश्री जेह, बास नणी फुकी पीये तेह मा॥ विषधरथी जे बीहिनो कोय, दोरडीये कर घाले जोय ॥ मा ॥२॥ विलखे वदने तव कहे नाणेज, एम एकाएक केम तजो हेन ॥ म० ॥ तुम नगिनी नु पयोधर खीर, में पीधुं थश्ने धीर ॥ म॥३॥ ते केम होश मिलादीह, पढें तो तुमे जो सु गुण गरिठ। म ॥ तुमे जाणो जे खरं अहो हित वान, गज केम श्रावे काल्यो कान ॥ म ॥४॥मा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) तुलें नाणेजसुं चारु गंह, नर्मदासुंदरीनो कीधो वि वाह ॥ म०॥ परण्यो सयल मनोरथ सिफ, काचित दीवसे सीखडी लीध ॥ म॥ ५ ॥ नर्मदासुंदरी बेश संग, अनुक्रमे श्राव्यो निजपुर खंग ॥ म॥ मात पिताना प्रणम्या पाय, पगे लगाडी सा हित लाय ॥ म॥५॥ज्ञषिदत्ताए नमया बाल, दीठी सुपरें नयणें निहाल ॥मा०॥ कुशलप्रश्न प्रख्या तेपी वार, सज थ कह्यो सयल विचार ॥ म ॥७॥न मैदासुंदरी महेश्वरदत्त, नोगवे जोग विविध बहु जत्त ॥ म॥ दंपती प्रीति परस्पर लीन, - जेहवी प्रीति होवे जल मीन ॥ म०॥ ॥ एकदा नर्मदा विनवे शाह, स्वामी जैनधर्म वाह वाह ॥मोरा सहे जाहो नाह, कुमति निवार ॥ ए श्रांकणी ॥ जिनवर नक्ति करे निशदीव, दीवे मूरती सुप्रसन्न होय जीव ॥ म॥ ए॥ जिननी जक्ति रावण ऐकंत, ती थंकर पद प्राप्यु कहंत ॥ म०॥ जिनदरिसणथी हुये उकार, देश अनारजें श्रार्डकुमार ॥म ॥१० जिनपूजा फल अधिक अनंत, शिवसुख साधन ने एकंत ॥म ॥ जेणे जिननक्ति न कीधी सार, तो धिक तस मानव अवतार ॥ म० ॥११॥ तरण ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५१ ) रण प्रभु कहेवाय, सेवे सुर नर जेहना पाय ॥ म०॥ जिन दरिस बे शिव सोपान, जिनथी बीजा केहो मान ॥ ० ॥ १२ ॥ कुण ब्रह्मा कुण विष्णु महेश, वीतरागथी नहिं ते विशेष ॥ म० ॥ तुलसी पीपल पूजे लोक, खोटा प्रयास नियामक फोक ॥ म०॥ १३ जे देवताने प्रमदाथी प्रेम, केम ते तरशे वली ता रशे केम ॥ ० ॥ क्रोधादिक वर्जित महानाग, ते तो एक छठे वीतराग ॥ म० ॥ १४ ॥ निसुणी न र्मदासुंदरीनी वाण, कंतें जिनधर्म कीध प्रमाण || म० ॥ ऋषिदत्तादिक कुटुंब सकोय, जिनजक्तितें बेवगं होय ॥ म० १५ ॥ स्थापी जिनप्रतिमा सहु गेह, पूजे प्रतिदिन आणी नेह ॥ म० ॥ टल्युं मिथ्या त्वने प्रकाश्युं समकित श्रावक दुर्ज महेश्वरदत्त ॥ म० ॥ १६ ॥ करणी उत्तम करतां दिन जाय, धर्म थकी नित्य रुडुं थाय ॥ म० ॥ मोहनविजये य उजमाल, नांखी सुंदर शोलमी ढाल ॥ म० ॥ १७॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ एकदिन नमया सुंदरी, बेटी निज वातायने, थइ आमायागार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only * > सोल सजी शणगार ॥ १ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) दर्पण लेई करकमल, निज श्रानन निरखंत ॥ सहि यर पण तस रूपने, पेखी अति पुलकंत ॥ २ ॥ तं बोलेकरी मुख जखुं, यति सुशोजित अंग ॥ वि चम चारु विलासयी, बेठी घरी उमंग ॥ ३ ॥ ए हवे रवि मंगल गयण, मध्ये श्राव्यो जाम ॥ मास खमण पारण मुनि, गोचरी पहोतो ताम ॥ ४॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ पावक जेहवो रे श्रातप परजले, पूवी देवाय न पायोरे ॥ बादरकायारे तापें पराजव्यो, बायाए ते जायो रे ॥ १ ॥ गति कोइ अजिनवी, जगमें क र्मनी ॥ सवि चितहमें जाणेरे ॥ विषजोगवियां रे बूटे नहीं, कवियणे एम वखाणे रे ॥ ग० ॥ २ ॥ तेणे अवसरें पुरमें परवस्या, व्रतधर सुंदर एह रे ॥ खूला पयतल ऊन्ही वालुका, तो पण निश्चल नेह रे ॥ ग० ॥ ३ ॥ जग्न शकटपरे अस्थि खडद हे, काम उदर हग नीचे रे ॥ जयणायें करी हलूए पय ग्वे, प रसेवे जूंइ सिंचे रे ॥ ग० ॥ ४ ॥ धन्य धन्य एहवारे जगमें मुनिवर, जे परने हित वांबे रे, निज काया नेरे जाणे कारिमी, तप तापें तनु तीबे रे ॥ ग० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) ॥ ५ ॥ जिणे श्रवसर सुखीया जीवडा, बेसी शीतल गमे रे ॥ ति अवसरें विचरे संयमि, तो न्यायें शिव पामे रे ॥ ० ॥ ६ ॥ ते मुनि घर घर निक्षा कारणे, खप करे तप जप पूरो रे ॥ गुणमणि रोह ए साधु शिरोमणि, नहि कोइ वाते अधूरोरे ॥ ग० ॥ ७ ॥ दुःसह तडके रे साधु पराजव्यो, निर्बल थके श्रम कीधो रे ॥ नर्मदामंदिर गोखने बायडे, विसामो कण लीधो रे ॥ ग० ॥ ८ ॥ नमयासुंदरी साधु अजाणती, नाख्युं मूखथकी पीक रे ॥ ला ग्यो ततरुण मुनिने जालंतरें, तिलक परे थयुं वी करे ॥ ० ॥ ए ॥ लागत वांता रे मुनि तिहां चम कियो, शुं आकस्मिक एह रे ॥ केणे नाख्युं रे मुक शिर उपरे, निरखे ऊरध तेह रे ॥ ग० ॥ १० ॥ दी वी गोखे रे नमयासुंदरी, थयो आक्रोश मुनीशोरे ॥ रे रे मेरे ए ते शुं कर्यु, अशुचि कर्तुं ए शीषो रे ॥ ० ॥ ११ ॥ ए किहां पातक बूटिश बापडी, ए शो गारव तूकरे, न करे कोई मुनिने आाशातना, तेह करी ते बूरे ॥ ० ॥ १२ ॥ ताहरी उपर दीसे कंतनुं, मान तेणे घणुं माची रे ॥ तो तुं होजे रे ना य वियोगिनी, वाच थई म साचीरे ॥ ग० ॥ १३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) मुनिनी वाणी रे सुणी जणकारे, गोखतले तव जो युं रे॥ तव तिहां दीगे रे मुनि कोपांतरु, शाप दीयं तो पलोयुं रे ॥ गम् ॥ १४ ॥ हुं कीधुं रे में मुनि उहव्यो, कीधी अवज्ञा जारीरे ॥ फल कडवां रे जो गवतां दृश, हुं निगुणी को नारी रे ॥ग ॥१५॥ नाह वियोगणी होजोजे कयुं,ते केम फरशे वाचारे ॥ वाचा खोटी खोटा जनतणी, ए तो मुनिजन सा चा रे ॥गण॥१६॥ जश् खमाई रे मुफ अपराधने, वि नवं विनति विशाल रे ॥ मोहनविजये रे जांखी हेजथी, सुंदर सत्तरमी ढाल रे॥गण॥१७॥सर्व गाथा ॥दोहा॥ _ मेडीथी जे ऊतरी, आवी साधु समीप ॥ विधिद्यु वांदीने कहे, अहो नवसायर छीप ॥ १॥ हुँ जिन धर्मी श्राविका, मुनि उपरे अति प्रेम ॥ रोष तजो मुनिरायजी, शापो बो मुज केम ॥२॥ जीहांथी वहार जोशए, तिहांथी आवे धाड्य ॥ दीजे दोष ते केहने, जो फल खाशे वाड्य ॥३॥ए संसार असा रमें, ग्रहीए जस आधार ॥ ते जो विरूऊं वांडशे, किम ऊगे दिनकार ॥४॥ हुँ तमथी जेहवी करूं, . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५५ ) छ समजे विचार || पातुं तेमहीज तुम्हे करो, तो शुं अंतरचार ॥ ५॥ ढारमी ॥ ॥ ढाल हांजी बारा बजारमां, हांजी मुने जेहरु दे ब लाय, तोरे संग चालुं रे, लालमल जोगीया ॥ ए देशी ॥ हांजी हूं निर्मागिणी मानवी, हांजी तमें बो गिरुया साध, तोरी बलिहारी रे मुनिवर माहरा ॥ दांजी तुमने में कीधी यशातना, हांजी खमजो ते निराबाध ॥ तो० ॥ १ ॥ हांजी तुमे बो करुणा सायरु, हांजी कहुं हुं गोद बिछाय, ॥ तो० ॥ हांजी शाप न दीजें मुकने, हांजी मुऊथी केम सहाय ॥ तो० ॥ २ ॥ शत्रु प्रत्ये कोपे नहिं, हांजी बांधवथी न मुजाय ॥ हांजी शाप न दे तनु पीडतां, हांजी मुनिवर तेह कहाय ॥ तो० ॥ ३ ॥ हांजी चंदनने जो पीडीयें, तो दीये सामी सुवास ॥ तो० ॥ हांजी यंत्र में पीलीयें शेलडी, हांजी तो पण द्ये रस खास ॥ तो० ॥ ४ ॥ हांजी रंजा खंज जो बेदीयें, हांजी तो पण फल दे नूरि ॥ तो० ॥ ए गीरुधाइ साधुनी दांजी शास्त्रमें कही ससनूर ॥ तो० ॥ ५ ॥ हांजी लागे नहीं नाखी थकी, सूरज साहामी खेह ॥ तो० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६ ) ॥ हांजी शी कटकी कीडी परें, हांजी राखो धर्मसने ह ॥ तो० ॥ ६ ॥ हांजी में तुमने वेद्या नहीं, हांजी लागो दृश्ये पीक ॥ तो० ॥ हांजी माहरा अवगुण साहमुं, हांजी न जूर्ज समता नीक | तो० ॥ ७ ॥ हांजी वचन सूणीने एहवां, हांजी बोल्यो मुनिवर तेह || तो० ॥ हांजी रे वत्से रे जावुके, हांजी सां जय वाणी एह ॥ तो० ॥ ८ ॥ हांजी साधु न दीये पीडियो, हांजी कोईने दुःसह शाप ॥ तो० ॥ हांजी तेहना जो मुखथी नीकले, हांजी साधुने नहीं तोय पाप ॥ तो० ॥ ए ॥ हांजी जे में जाख्युं विजो गणी, हांजी तुमने आणी रोष ॥ तो० ॥ हांजी ते तुक पूरव जन्मना, हांजी दीसे सबला दोष ॥ तो० ॥ १० ॥ हांजी ताहरी जावीयें मुऊने, हांजी एह वो बोलाव्यो बोल ॥ तो० ॥ हांजी नहिं तो माहरा वक्रथी, हांजी नीसरे केम तोल ॥ तो० ॥ ११ ॥ हांजी तेमाटे तुं ताहरा, हांजी जोगव्य पूरव कर्म ॥ तो० ॥ हांजी जोगव्य तुं ताहरां कस्यां, हांजी ह एक कुए दी ये शर्म ॥ तो० ॥ १२ ॥ हांजी जोग वीश तुं ताहरूं कयुं, हांजी तेहमां कां दिलगीर ॥ तो० ॥ हांजी जोगवाये कृत्य पारकूं, हांजी तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only A Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) हजी तेहनी पीर ॥ तो० ॥ १३ ॥ हांजी लणीय जेहबुं वाविए, हांजी तेहनो किहो विचार ॥ तो॥ हांजी बूटे नहीं विण जोगव्यां, हांजी जिन कर्दा, सूत्र मकार ॥ तो० ॥ १४ ॥ हांजी धरियें धीरज चित्तमें, हांजी होशे ते परमानंद ॥ तो ॥ हांजी एम कहीने तस गेहथी, हांजी विचस्या अन्यत्र मुनीं ॥ तो० ॥ १५ ॥ हांजी मुनिना पयरुह अनु सरी, हांजी नमया श्रावी गेह ॥ तो० ॥ हांजी ढाल कही ए अढारमी, हांजी मोहनविजयें एह१६ ॥दोहा॥ एहवे नमया सुंदरी, चिंते चित्त मकार, हवे गुं थारों श्रागले, हे हे सरजनहार ॥ १॥ में एह, शुं पूरवें, की, कर्म अनंत ॥ जे अणचिंत्यां मूजने, शापी गयो मुनि संत ॥२॥ जे जल जलणने उप शमे, ते जल दे गयो दाह॥ कोपे नहीं क्यारें मुनि, ते कोप्यो निर्वाह ॥३॥ कां बेठी हती गोखडे,कां चांव्यां तंबोल, जे अनुकूल सहुतणो, ते मुनि थयो प्रतिकूल ॥४॥ कीस्युं ललाटे विख्युं हशे, आगल नावी नाव ॥ जे जिन जाणे ते खरं, न मटे सहज खन्नाव (पागंतर, कहेवा हवे विलाव) ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ॥ ढाल उंगणीशमी॥ - लीनो रे मन मोहन जिनसें ॥ ली०॥ए देशी॥ जाणे रे कोइ मननी जाणे ॥ जाण ॥ हुँ बेठी हती गोखें सुखमें, आव्या किहांथी ए मुनि टाणे ॥ जा० ॥ केणी सहीये पण न जणाव्यु, जे मुनि उन्ना डे एण गणे ॥ जाण ॥१॥ अमें तो न जाण्युं सही नांखे, तें न जाण्युं तो कुण जाणे ॥ जा ॥ कीधो तें अपराध सखीरी, नाहक नेलां शुं अमने ताणे ॥ जा ॥२॥ एहवां सजनीनां वयण सुणीने, बोली नमया आली उखाणे ॥ जा० ॥ क्या तमने बहेनी कहुं , बींकतां दमें कां अप्रमाणे ॥ जा ॥३॥ दाज्या उपर खार न दीयो, श्रावो रीसा मां बेसो बिबाणे ॥जा०॥ जोगवी लेश कां तुमे बीहो, मा हरा लखीया लेख प्रमाणे ॥ जाण ॥४॥ एम कहे तां नयणेथी बूटे, आंसुधारा मेघ समाणे ॥ जा० ॥ जेम जेम मुनिनां वयण संजारे, तेम तेम फुःखहूं हियडामां आणे ॥ जा ॥५॥ लोटे धरणी अब ला बाली, देश सजनी बांह सराणे ॥ जा ॥ शाप संजारे आकुल था, नाके जिण विध आवे दाणे ॥जा ॥६॥ बाती बले ने ताती होवे, जेम कोश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) तीलमें घाती घाणे ॥ जा ॥ म म कर एवडं सही उजांखे, लाज वडेरानी का नाणे ॥ जाण॥७॥ता हरु पुःख अमें सही नथी शकता, श्रालि तुं थमने जे श्रावे लाणे ॥ जाण ॥ नावी तादरी नली ले ब हेनी, सुख दे वली सुख होशे विहाणे ॥ जाण ॥ ॥ आव्यो एहवे महेश्वर पीयुडो, नारी उःखणी देखी पूजे ॥ जाण ॥ दयिता पुःखिणी कांतुं दीसे, कहे मुऊने तुज कुःखडं ॥ जा०॥ ए॥ वात कही निज पीयुडा आगे, जाण्यु पुःखनुं कारण ना हैं ॥जा ॥ दयिताने तव दीधो दिलासो, तेडी आणी मंदिर मांहे ॥जा ॥ १०॥ ते दिनथी श्रा रंजी नमया, पालंती जिननी थाणा रुडे ॥ जाण ॥ महासती सुखमें निगमे दीहा, पूरव कर्म कस्यां ते सूडे ॥ जाण ॥११॥ पोषे पात्र संतोषे मनमें, अवि नय करतां हैयुं धूजे ॥ जा० ॥ जव जव संचित पा प निवारे, एहवा देव जणी नित पूजे ॥जा॥१२॥ पुण्य करे जिन पंथे चाले, तेहथी जव पुःख जाये विलयें ॥जा ॥ सुंदर उंगणीशमी ए जांखी, श्रोता सुपजो मादेन विजयें ॥ जा० ॥१३॥ सर्व गाथा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ॥ दोहा ॥ एक दिन नमया नारीने, कहे महेश्वरदत्त ॥ पर द्वीपें जाशुं प्रिये, हवे धन देतें ऊत्त ॥ १ ॥ तिहां जइ द्रव्य कमावशुं यावशुं तुरत गेह ॥ साचवजो तुमें इहां रही, जैन धर्म ससनेह ॥ २ ॥ कोइ वातें मनथी तुमें, दुःखी न होजो नारि ॥ मिलशुं तुम ने हे जणी, जो करशे किरतार ॥ ३ ॥ परदेशें ज इए अों, करशुं तिहां व्यापार || तिहांथी बहु धन श्रापशुं, राखशुं इहां व्यवहार ॥ ४ ॥ ते माटे तरु णी तुमें, हसी दीयो आदेश ॥ जेम प्रवहण सज कीजीयें, लेइयें वस्तु अशेष ॥ ५ ॥ कंत वचन नि सुणी करी, बोली नमया बाल || केम परदेशे पधा रशो, हो नाद सुविशाल ॥ ६ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ अम्मां मोरी अम्मां हे, अम्मां मोरी जीलण गश्ती तलाव हे ॥ हे मारुंडे मेंवासी केंरा तापीया हे ॥ ए देशी ॥ पियुडा मोरा पियुडा रे, पीयुडा मो रा जो तुमें चालो परदेश हे ॥ हे मुजने जलावो केने उलवे हे ॥ प० ॥ पि० ॥ काया जिहां तिहां बांह हे, हे तेम प्यारो ने प्यारी जोगवे हे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) पि० ॥ पि० ॥ १॥ हुं पण आवीश साथ हे, हे वाटेने करेगुं वाला चाकरी ॥ पि० ॥ पि० ॥ पि०॥ तुम विण केम गमे दीह हे, हे माउलडी होवी ज्युं जल विण श्रातूर हे ॥ पि० ॥ पि ॥२॥घडी ब मास थाय जेह हे, हे नाह रहो जो अलगा न यनथी हे ॥ पि० ॥ पि० ॥ तुम विरह न सहाय हे, हे केतुं नांलुं करीने वेणथी हे ॥ पनि ॥ पि॥ ॥३॥ साधूए कडं जे जे मुजने एम हे, हे थश्श वत्से कंतवियोगिणी ॥ पि ॥ पि ॥ तेहवा कथ नथी केम हे, हे अलगी रहुं तमने अवगुणी हे ॥ पि० ॥ पि०॥४॥ मुझने तुमचो श्राधार हे, हे विगर श्राधारे शहां केम रखें ॥ पि०॥ पि०॥ देखी पेखीने काय हे, हे विरह वन्हिथी कहोने का द डं ॥ पि० ॥ पि० ॥ ५॥ जो नहीं तेडो साथ हे, हे कदेशे नहीं कोतुमने रूपडा।पिणापिणानारी नरा खवी दूर है,हेजे कहीए ने पंथी सूअडा हे॥पिपि०॥ मनडुं खे जशो संग हे, पीजरी ने रहेशे वालं मजी हां ॥ पि० ॥ पि० ॥ रढ करी रही सह जोर हे, हे तो तुमें मूकीने जाशो किहां ॥ पि ॥ पिक ॥७॥ नाह कहे अहो नारी हे, हे काम दोहेलु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Fort Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) अलगा पंथनु ॥ पि० ॥ पि०॥ कंते कही घणी वात हे, हे तोही न माने काई अंगना ॥ पि०॥ पि० ॥ ॥७॥ वनितानो आग्रह जाणी हे, हे संगें तेड्यानी कंते हा जणी ॥ पि०॥ पि०॥ नर्मदासुंदरी ताम हे, हे उदसित हुश् मनमांहे घणी ॥ पि०॥ पि०॥ ॥ ए॥ तत्कण महेश्वरदत्ते हे, जरीने करीयाएं प्रव हण सज कस्यां ॥ पि०॥ पि ॥ पडहो वजायो पुर मांहि हे, हे वचन सुरंगां ए एहवां उचस्यां दे॥ पि०॥ पि॥१०॥शा महेश्वरदत्त हे, हे यवनही काले चालशे हे॥ पि॥पि०॥जे कोश् श्रावणहार हे, हे होय ते वेगा होजो श्रनालसें, ॥ पि पि०॥ ॥ ११ ॥ पडह सुणीने लोक हे, हे यवनहीपें जावा संमुह्यां ॥ दूको जाम प्रजात हे, हे लोक सायरनो तट घेरी रह्यां ॥ पि० वि० ॥१२॥ एहवे महे श्वरदत्त हे, हे जिनवरपूजा करे कुसुम पांखडी ॥ सुंदर जोजन कीध हे, हे मात पितानी लेश शीखडी ॥ पि० ॥ पि०॥ १३ ॥ नर्मदासुंदरी साथ हे, हे महेश्वरदत्त श्राव्यो प्रवहण जिहां ॥ पि० ॥ पिण॥ साथै सयण अनेक हे, हे आव्या संप्रेषणे नेहव शे तिहां ॥ पि पि० ॥१४॥ पुरजन कहे मुख एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) हे, हे होजो मंगल माल है, ॥ पि० पि० ॥ मोहन विजयें एम है, हे पजणी सलुणी वीशमीढाल हे ॥ पि० ॥ पि० ॥ १५ ॥ सर्वगाथा ॥ ॥ दोहा ॥ शीख लही साजन तणी, परिकर रूडा प्रसंग ॥ चाल्यो जलवट ऊपरे, महेश्वरदत्त सुरंग ॥ १ ॥ यान हकायां जलधिमा, खेंच्या सढ ने दोर ॥ मा र्ग मालमी मालम करे, कूवा थंना जोर ॥ २ ॥ प रव्यां पोत पयोधिमें, गति अति चंचल धीर ॥ ता यो जेम कोदंडथी, बूटे जेहवो तीर ॥ ३ ॥ नीर मय दीसे धरा, ऊपर तो आकाश ॥ गिरिवर तरु वर नगरवर, ते तो प्रवहण वास ॥ ४ ॥ श्रहो ड नर कारणें, जल मध्ये पविसंत ॥ पारत्रिलोकी प तिवसु, पण जय नवि निवत ॥ ५ ॥ पेट भ्रम ज गमां प्रसिद्ध, पेट वडो पतहीन ॥ जल यल गिरि उलंघवे, मुख जंपावे दीन ॥ ६ ॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ दिल लगा रे बादल वरणी ॥ ए देशी ॥ चायाँ रे वाहण वाये हंकारयां, दोडे जेम मन चाले ॥ वे जोजोरे कौतुक याशे, सांजलतां शुं जाशे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) कंत महेश्वर नमया नारी, बेगं गोंखे जे महाले ॥हा॥१॥ श्रासो मासनी चांदनी बटकी, था व्यो चंज मथाले ॥ह ॥ दंपती वाहणमां मूखडं काढी, जलचर खेल निहाले।ह०॥॥वाय फको से जलचर उबले, नौतन नौतन देखे ॥६॥गाजे गुहिरे सादे दरीयो, घोष जलद किह लेखे ॥हण ॥३॥ उज्वल रजनी ने, उज्ज्वल चंदो, उज्ज्वल जलनिधि वेला ॥ ह ॥ उज्ज्वल जलचर दंपती उ ज्ज्वल, सयल उज्ज्वल थयां नेलां ॥हा॥४॥ दंपती कौतुक रसथी बुब्धां, बेगं ज्युं अभिनव वाडी ह० ॥ एहवे कोशएक पुरुष वाहण, मांहे वीण व जाडी ॥०॥५॥ वाय राग केदारो मारु, पर जी मधुरे टीपे ॥ ३० ॥ जाणे बिंषु सुधाना बूटे, एक एक टीपे टीपे ॥ ह० ॥६॥ कोश्क तेणे गति अभिनवी वाइ, नारदथी पण रूडी ॥ ४० ॥ मानव मूर्खागत परें हुआं, एहमां वात न कूडी ॥ ह ॥ जेहवी वीण वजाडी तेहवे, गाये उंचे सादें॥ ह० ॥ वाहणमांहे जे रसिया वालम, मोह्या तेहने नादें॥ ह०॥॥ रुपें नादें कुण नवि मोहे, विषधर ते प ण डोले ॥ ह ॥ नादें तृणचर जेह ले मृगलां, थापे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६५ ) प्राण मोजें ॥ ० ॥ ए ॥ नादें देव विमानने स्थंने, नाद अनोपम दीसे, वेधकनुं मन नादें वे धाये, नादे तन मन हीसे ॥ हृ० ॥ १०॥ जाणपणुं जं गमां बे दोहिलुं विरलो जाणे कोइ ॥ ६०॥ पण तस नादे प्रवहण लोको, चित्रपरे रह्या होई ॥ द॥१२॥ नाद ते पंचमो वेदज कहीये, जे जाणे ते जाणे ॥ ह० ॥ बोघां नादनी गति शुं बूजे, फोकट ते ह ताणे ॥ ६० ॥ १२ ॥ तेहनां गीततो जयकारो, पडी नमया कानें ॥ ० ॥ रंजी मनमें तस प्रीबी, मोही तेहने तानें ॥ ० ॥ १३ ॥ नाह जणी कहे जलचर क्रीडा, जावा यो कथं मानो, ॥ ६० ॥ सां जल वीण तथा ऊणकारा, कोइक वाये बे बानो ॥ द० ॥ १४ ॥ कोइक चतुर शिरोमणी दीसे, वाह वा रूडुं वाये ॥०॥ श्रापणने तो वगर पैसे, सांज लतां शुं जाये ॥ ६० ॥ १५ ॥ कंत प्रियाना कथनथी निसुणे, राग जणी एक तानें, ह० ॥ घूम्यो राणें जेम कोई घूमे, घायल शरने लागे ॥ ६० ॥ १६ ॥ दाखवशे हवे नमयासुंदरी, नाहजणी चतुराई ॥ ह एकवीशमी ढाल जीवंती, मोहन विजयें गाई ॥ ह० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. " Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) ॥ दोहा ॥ नमया लक्षण दक्षिणा, जाणे नेद अनंत ॥ चिंते मुऊचतुराइयें करूं सहेजो कंत ॥ १ ॥ कहे नमया निज नाहने, जे ए गावे गीत ॥ विष दीठे कहो तो कहुँ, रूप रंग गति रीत ॥ २ ॥ कंत कहे कामिनी कहो, कां करो बो जोर ॥ चतुराई जे अंगमें, ते दाखो एकवार ॥३॥ बोली नमयासुंदरी, रे पीयु गाय क एह ॥ श्यामरंग शोना सुनग, कुब्जरूप बे देह ॥४॥ स्थूल हस्त मुद्दे मशक, रक्त नेत्र ससनेह ॥ त रुण वर्ष द्वात्रिंशनो, चिन्ह सयल बे एह ॥५॥ वचन सुणी वनिता तणां ताम महेश्वरदत्त ॥ चित्त थकी चिंते इस्युं, थइ तरुणीथी विरत ॥ ६ ॥ " ॥ ढाल बावीशमी ॥ चंदन राखो बोजी राज, मीठडा मेवा बो ॥ ए देशी ॥ वाणी सुणी नमया तणीरे, शोचे महेश्वर दत्त ॥ सहितो ए गायकथकी, कांइ नारी बे संसत्त ॥१॥ माहरी मानिनी हो राज, सही तो धूतारी बे ॥ चंदन शी बोले बे राज पण विष तोलें बे, एहनी कहाणी बे राज, ते हवे जाणी बे नहिं तो केम जाणे त्रिया रे, रुप ॥ ए श्रांकणी ॥ रंगनी रीत ॥ ल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) लना बुब्धाणी खरी, कांय करी कुब्जयी प्रीत ॥ मा० ॥२॥ एहने तो हुँ जाणतो रे, सुकुलीणी शिरदार ॥ पण ए कुलटा निवडी कांई, निःस्नेही अवतार ॥ मा० ॥३॥ महासती करी जाणतो रे, पण फेरव्यु सत एह ॥ जेम वखाणी खीचडी कांई, दांते वलगी तेह ॥ मा० ॥४॥ थई गोधूम श्रम हियडे रे, पेठी प्रमदा सार ॥ पण मांडो थर नि सरी कांश, ऐ ऐ सर्जनहार ॥ मा०॥५॥जो जो एहनी कपटता रे, तृणसम गणीयो मुफ ॥चोरी दृष्टि सह तणी, कांगायकथी करी गुस ॥ मा० ॥६॥ सगुणी पांखें नीगुणी जली रे, राखी हुती निजहित लाय ॥ लाख जतन करी राखीए, का जाति खना वन जाय, मा० ॥ ७॥ धोए दूधे कागडीरे, पण हंसली नवि थाय ॥ कुंदन खोले रासन्नी कांई, न होय पयल गाय ॥ मा० ॥ ॥ बेसाडीए सेजे शू नीरे, नहिं सुरकन्या होय ॥ मीठी न होये लींबडी कांक्ष, साकर सींचे कोय ॥ मा० ॥ ए ॥ ए नारीने शुं करुं रे, नाखू पयोधिमांहि ॥ के करं चूर्ण ख डगथी कांच के परिहरियें क्यांहि ॥ मा० ॥ १० ॥ तेह सोनुं शुं कीजीए रे,जेहथी बेटे कान ॥ पेटें कांच Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) ननी बुरी कांश, धोंचे कोण नादान ॥ मा०॥११॥ नारीने न जणावीयु रे,निज हियडार्नु अहेज॥प्रीत थयो गायन मिट्युं कांश, दी चिन्ह समेत ॥मा॥ ॥१॥ मनमें सही निश्चे थयुं रे, ए कुलटा शिरताज॥ पण एहने न जणावq कांक्ष, मुष्टि जली वत्सराज, मा० ॥ १३॥ एहवे कूवा थंजथी रे, बोल्यो मालिम ताम ॥ राखो रे नियामको कांश, प्रवहण एणे गम मा० ॥ १४ ॥ नांगर नाख्युं नीरमें रे, वाहण राख्यां द्वीप ॥ सढ दोरा संकेलजो कोई, श्राव्यो राक्षस छीप ॥ मा० ॥ १५ ॥ मीठलजल जरो प्रवहणे रे, सहू को था सज ॥ वचन सुणीने बीपीया काई, पहोता महादेधि मम॥ मा० ॥ १६ ॥ तेहीज द्वीप तणे तटें रे, श्रव्यां बाल गोपाल ॥ मोहन विजयें निर्ममी कां, ए बावीशमी ढाल ॥ मा० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा॥ राक्षस छीपतणे तटे, उत्तरीया सवि लोक ॥ ज लश्धणने कारणे, बूटा थोका थोक ॥१॥ प्रवहण मांहे ततदण, जरीयुं निर्मल नीर ॥ समिधादिक पण संग्रह्यां, सऊ थया वर वीर ॥२॥ जोजनहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६ए) तें परवख्या, लोक सयण तिण उगम ॥ एहवे बल लाध्यो जलो, महेश्वरदत्तने ताम ॥३॥ कहे न मयाने हे प्रिये, जश्य वनह मकार ॥ तुरत फरी ने आवशुं, होशे जमण तैयार ॥४॥ देखशुं कि हां ए छीपने, फरी फरी नयणे तेह, जीव्याथी जो युं जलूं, मान वचन धरी नेह ॥५॥ अति जोली नमया सती, कपट न जाणे तास ॥ साथें थर प्राणे शने, श्रावी वनह निवास ॥६॥ ॥ ढाल वीशमी॥ देशी बिंदलीनी ॥ करथी कर ग्रही आडे, निज त्रियने वनह देखाडे हो ॥ कंत महाकपटी ॥रे प्र मदा तुमें देखो, ए सायरतट सुविशेषो हो ॥ कंग ॥१॥ तरु केहवा जंचा, जेम वासगमणीना ए पे खो पहोंचा हो ॥ कं० ॥ तरुथी वेलि वीटाणी, जे म अहिंसाधर्मथी जाणी हो ॥ कं० ॥२॥ ए सुर तरु मन मोहे, जगतीशिरबत्र ज्युं सोहे हो ॥कं०॥ केहबुं ने वन ए दीकुं, मुजने लाग्युं मी हो ॥ कं० ॥३॥ चालो तमें आगल नारी, तीहां होशे कौतु क जारी॥ कं० ॥ दंपती आघां चाल्यां, वर कदली वनमें माल्यां हो ॥ कं० ॥४॥रंजा पवनें को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) तस दीरघदल बहु डोले हो ॥ कं० ॥ ढुंबी बी रहीयां, फल मोटो रस महम हियां हो ॥ कं० ॥५॥ महोटुं सर जले जे जरीयु, जेम नानकडो ए दरीयो ॥ कं० ॥ शीतल जूमी जे सूहावे, पंखीपण रमवा आवे हो ॥ कं० ॥६॥ ते सरपाले बेग, पियु प्र मदा बीहु एकेगं हो ॥ क० ॥ पीयुडे मांडी माया, पण कांशए न जाणे जाया हो ॥ कं० ॥ ॥ गूढ कपट कुण जाणे, ब्रह्मापण नविडं पीगणे हो ॥ कं० ॥ पडें प्रमदा पत्नणे, पियु पोढो जागीस हवे खांणे हो॥ कं० ॥७॥ कहे पीयु पोढो नारी, यहां बेगे बुं धीरज धारी हो ॥ कं० ॥ पोढी नाह जरो से, तेणे सुख निमा ग्रही होंशे हो ॥ कं०॥ ए॥ व निता सूती जाणी, चिंते पियु कपटनो खाणी हो॥ कं० ॥ जो हणुं एहने तेगें, तो पातक लागशे वेगें हो ॥ कं० ॥ १०॥ एह सूती के नारी, जो मुंकुं तो होये सारी हो ॥ कं० ॥ एहने यहां परिहरवी, यहां ढील न कांच करवी हो ॥ कं० ॥ ११॥ कर्म कहो केम चूके, जुढे प्रमदा प्रीतम मूके हो ॥ कं० ॥ नु जंगनी ब्रांते बाला, जूर्व नाह तजे सुकुमाला हो ॥ कं० ॥ १२ ॥ वनिता मूकी वनमें, कांश करुणा ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) वी मनमें हो ॥ कं० ॥ दोड्यो बांधी मूठी, फरीन करे नजर अपूठी हो ॥ कं० ॥ १३॥ नारी उवेखी नाखी, जेम घृतमांथी मांखी हो ॥ कं० ॥ प्रवहणे दोड्यो आवे, जून केहवी बुझि उपावे हो ॥ कं०॥ १४ ॥ बोल्यो श्वासे नराणो, हलफलतो मांड खेदा णो हो ॥ कं० ॥ रे लोको सज था, एणे प्रवहणे दोडी जाउँ हो ॥ कं० ॥ १५ ॥ ताणो पट शुं विचा रो, जलनिधिमां पोत हंकारो हो ॥ कं०॥ नोज न वहाणमां करगुं, पण नऊ शहांथकी वलगुं हो ॥ कं० ॥ १६ ॥ ढील करो बो कांश, सज था वहे ला ना हो ॥ कं० ॥ एह त्रेवीशमी ढाल, कही मोहन विजयें रसाल हो ॥ कं० ॥१७॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ पडतो धूजतो यको, कहे महेश्वरदत्त ॥ जून ए आवे अबे, रजनीचर के ऊत्त ॥१॥ दंतुर वली दीरघ अधर, कर आयुध विकराल ॥ केश विबूटे कांबरे, उ आवे ऊंघाल ॥२॥ ऊडे रज अंबरे, चरणे धमके नूर ॥ आवे उतावलो, जेम पयो निधि पूर ॥३॥ शुं बल कीजें एहथी, एह पुलिंद प्रचम ॥ मुऊ वनिताने पापीए, कीधी खंडो खंड। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) ॥४॥ नाठो श्राव्यो तुम कन्हे, कहुं बुं न करो वा र ॥ प्रवहणमां बेसी तुरत, जो वंडो हित सार ॥५॥ बी हिना लोक इस्युं सुणी,बेग प्रवहणमांहि ॥ कपटी पण बेगे तुरत, सयण वच्चे सोत्साहि ॥६॥ वाहण चाल्यां जलधिमां, मूक्यो तेहज द्वीप ॥ ज न वनिता कुःख वारवा, आव्या तास समीप ॥७॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ उग्रसेन नृपनी तनुजाशुं रंगें राज, तथा नरवर . साजी॥एदेशी॥ते महेश्वरदत्त धूतारो राज,मांड्या फंद प्रचारारे॥किहां ग सा नारी रे॥ ए श्रांकणी ॥ सयण आगल ते रुदन करतो, राज बोडे आंसु धारा रे ॥ कि० ॥१॥ कूटे बाती धरणीए लोटे रा ज, मूखथी कहे प्रिया प्रिया रे ॥ कि० ॥ लीधी व निता कांश उदाली राज, ए शुं कलुं दश्या रे ॥ कि० ॥२॥ हमणां हुँती मुख बागल रुडी राज, एम ए किहां गइ नाशी ॥ कि० ॥ हमणां का नथी बोलती मोसुं राज, थकां बेठी मेवासी रे ॥ कि० ॥३॥ तें शुं माहरो मोह न आण्यो राज, एका ए क ग बोडी रे ॥ कि० ॥ हियडामां तुं खटकीश कांते राज, जिम रही जाली उंडी रे ॥ कि० ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) एम फुःख कारीमुं मांमी बेगे राज, लोक सयल प्रति बफे रे ॥ कि० ॥ शुं फुःख एवडुं मनमां व होबो राज, माह्या आगम सुके रे ॥ कि० ॥५॥ जेह गयो ते पालो नावे, तो दुःख केहy कीजें रे कि० ॥ दैव थकी बल नांही कोश्नु, होवे तो व हेंची लीजें रे ॥ कि० ॥६॥ जिन चक्री हरिबल बलिराजा, केश गया एणी वाटे रे ॥ कि० ॥ ते तु म उखडं कांश न जाणे, तो शुं होवे उचाटे रे ॥ कि० ॥७॥ जाणता हूंता ज्ञान लहंता, एम श्र जाण कां तु रे ॥ कि० ॥ मानो वचन अम फि कर निवारो, लेश जल मूखड़े धूळ रे ॥ कि० ॥७॥ शीष सलामत पाघ घणेरी, जाणता नथी ए उ खाणो रे ॥ कि० ॥ वचन सुणीने निर्दयी राज, हुं में सहेज सपराणो रे ॥ कि० ॥ए ॥ कीधुं नोज न मनमांहे सुहातुं राज, मूकी नारी विसारी रे ॥ कि० ॥ जे निःस्नेही तस माया न होये राज, स स्नेही मायाधारी रे ॥ कि ॥ १० ॥ जे विश्वासी घात उपावे राज; धिक धिक तास जमारो रे ॥ कि० ॥ इह परजव पापें पीडाये, ते सहु सहि अवधारो रे ॥ कि० ॥ ११॥ अनुक्रमें प्रवहण तरतां पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) तां, यवन छीपने तीरें रे ॥ कि० ॥ उतस्यां सहु ज न सायर कं, आव्या नरपति नीरें रे ॥ किम् ॥ १२ ॥ महेश्वरदत्ते नेटणुं मेल्युं राज, नृप श्रागल अनिनवे रे ॥ कि० ॥ रीजयो महिपति दीधो दि लासो राज, करो व्यवसाय घणेरो रे ॥ कि० ॥१३॥ नृप आदेशे महेश तिवारें, पुरमा वेच्यां वसाणां रे ॥ कि० ॥ कीधा गांठे दाम पुणा राज, परखी परखः नाणां रे ॥ कि० ॥ १४॥ निगम्या केताएक दिवस तीहां राज, प्रवहण वली सज कीधां रे ॥ कि० ॥ खेड्यां प्रवहण महोदधिमांहे, निजपुर साहामां सीधां रे ॥ कि ॥ १५ ॥ जर दरिये जव प्रवहण आव्यां राज, पूरे पवनें प्रेयां रे ॥ कि० ॥ देवग तेथी पोत सविहु, गिरि कुंडलमां घेख्यां रे ॥ कि० ॥ १६ ॥ प्रवहण पर्वत परें स्थिर रहीयां, फरहरे पं चरंग नेजा रे ॥ कि ॥ ढाल चोवीशमी मोहनें नांखी, सहु हुँसे निसूणी सहेजा रे ॥ कि० ॥१७॥ ॥दोहा॥ __ वहाण रंधाई रह्यां, न होय वायु प्रसंग ॥ ना विक सवि जांखा थया, बीप्या सयल सलंग ॥१॥ प्रवहण जन आतुर हुआ, उद्यम न चढ्यो हाथ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (gu) चिंतातुर चिंते सहू, शुं करशुं जगनाथ ॥ २ ॥ ना वथी उतस्यो एकली, तेह महेश्वरदत्त ॥ ततक्षण गिरि उपरें चढ्यो, कौतुक देखण ऊत्त ||३|| तिहां एक दीव्रं देहरूं, उंची धज लहकंत ॥ दोय नगारां देहरे, अति आगल दीपंत ॥ ४ ॥ दीवगं तेह महे श्वरें, बीधी गेडी हाथ ॥ नीशाणे दीधी तिहां, ग रज्यो भूधर नाथ ॥ ५ ॥ जबक्यो निपट गुहाथ की, उड्यो विहंग जारंग ॥ पस्यो पंखतणो पव न, अति उंचो ब्रह्मंड ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पचीशमी ॥ नंद सलूणा माहरा नंदना रे लो ॥ ए देशी ॥ जा रंड पंखीना वायसूं रे लो, तेणें हीलोल्यो सायरु रे लो ॥ गिरिकुंडलथी नीकट्या रे लो, प्रवहण पंथ || दिशा चव्यां रे लो ॥१॥ कहे जन वहाण तो वह्यां रे लो, शेठ तो गिरि उपरें रह्या रे लो ॥ की हांथी ए मेलो होयशे रे लो, वाट एहनी घरे जोश्शे रे लो ॥ २ ॥ वाहण पण नवि फरे फरी रे लो, कोश व दु रहियो गिरिरे लो | अनुक्रमे प्रवहण नावीयांरे || लो, रूपचंद्रपुर श्रावियां रे लो ॥३॥ खबर हूई रुद्रद तने रें लो, प्रवहणं श्राव्यां पत्तने रे लो । लोक स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६ ) हूने जणावी युं रे लो, महेश्वरदत्त तो नावीयो रे लो ॥ ४ ॥ षिदत्तादिक दुःख घरे रे लो, पुत्र न श्राव्यो घरे रे लो ॥ प्रवहणजन सवि धनीपणे रे लो, पोहता घर आप आप रे लो ॥ ५ ॥ हवे ते महेश्वरदत्तनी रे लो, वात कहुं अति नूतनी रे लो ॥ उतस्यो गिरिवरथी वहीरे लो, पण प्रवहण दी से नहीं रे लो ॥ ६ ॥ ऊनो चिंतातुर होवतो रे लो, नयणे दश दिशि जोवतो रे लो ॥ एकलडो जीति धरे रे लो, आप उपाय घणा करे रे लो ॥ किai घर किai पुर कहां पिता रे लो, किहां मा ता बंधु कहां बंधुता रे लो ॥ ७ ॥ इहां हवे केह ने उलवे रेलो, कर्म कीधां ते जोगवे रे लो ॥ ८ ॥ मूख्यो तरष्यो एकलो रे लो, जटके जेम कोइ वेख लो रे लो ॥ वनफलमाटे घणुं जम्यो रे लो, सांज रवि प्राथम्यो रे लो ॥ ए ॥ पेठो तरुने कोटरे रे लो, मूख्यो- तिहां निद्रा करे रे लो ॥ एहवे ते तरु उपरें रे लो, देवदेवी वातो करे रे लो ॥ १० ॥ कंचन द्वीप विजावी यें रे लो, कौतुक जोवा जाइए रे लो ॥ एम कही अंबर वृदने रे लो, ते उडाड्यो तत कर्णे रे लो ॥ ११ ॥ जरदरीये गया जेहवे रे लो, जा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ग्यो महेश्वरदत्त तेहवे रे लो॥श्रालस मोडवा ऊम ह्यो रे लो, तेहवे सायरमां पड्यो रे लो॥१२॥ पड तां जलथी श्राफल्यो रे लो, मगरें ततकण ते गल्यो रे लो॥ केतेक दिन मत्स्य ऊबल्यो रे लो, रूपचंड पुरें नीकट्यो रे लो॥ १३॥ धीवरे तास नीहालियो रे लो, ततक्षण उदर विदारीयो रे लो ॥ तेमांहेथी महेश्वरदत्त नीकल्यो रे लो, धीवरे नृप आगल तेध स्यो रे लो॥ १४॥ उलख्यो लोकें एहवे रे लो, स ज कस्यो नृपे तेहने रे लो॥ श्रागंबरे घेर मोकट्यो रे लो, कुटुंब मनोरथ त्यां फल्यो रे लो ॥१५॥ ढाल कहि पचवीशमी रे लो, मोहनने मनमें गमी रे लो॥ हवे नमया सुंदरीतणी रे लो, वात कडं मीठी घणी रे लो॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ जागी नमया सुंदरी, तिणी वनमें तेवार ॥ जोयु पण दीगे नहीं, पासे निज जरतार ॥१॥ ऊठी अंबर सज करी, दीधो पियुने साद ॥ पागे कोई बोल्यो नहीं, तब हुई विषाद ॥ ॥ केम नवि दीधो नाहले, प्रत्युत्तर मुफ हेव ॥ सही प्रबन्नरह्यो हशे, हांसीनी टेव ॥३॥ नमया उंच खरें करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( SG ) बोली वनमां एम ॥ बाना जे रहो बो बूपी, ढूंढी का ढीश तेम ॥ ४ ॥ एम कही कदलीवन विषे, पेठी नमया नारी ॥ श्रालें कहे में दीवडा, उजा नी र्धार ॥ ५ ॥ कपट न जाएयुं कंतनुं, जोली नमया नाम ॥ केह ए कंतार में, करी गयो बे काम ॥ ५ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ चंदली या धूतारडा रे ॥ ए देशी ॥ नाहलीया निःस्नेही एम कां बूपी रह्यो रे, नारीयें धीर न धराय रे ॥ रामतनी वेलाए रामत कीजीए रे, विण अवसर केम थाय रे ॥ ना० ॥ १ ॥ अबलानी धीर जनुं शुं जू पारखुं रे, अबला बल कुण मात्र रे ॥ श्रावोने वालमीया तुमची वाटडी रे, जोतां दशे संयात्र रे ॥ ना० ॥ २ ॥ हांसीथी वीखासी प्रीत मजी हूवे रे, मानो प्राण आधार रे || इस वनमें हांसीनी वेला शी अबे रे, हांसी एहवी निवार रे ॥ ना० ॥ ३ ॥ एम करतां तिहां पीयुडो के मही बोल्यो नहींरे, चिंते नमया नारी रे ॥ सहीतो वन मांहें बेह देश गयो रे, ए कपटी जरतार रे ॥ ना०॥४ वालमना पाय जोती सायरने तटें रे, आवी जोवें जामरे ॥ एके कोइ नावडलूं तिहां दीव्रं नहीं रे, य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) चिंतातुर ताम रे ॥ ना॥५॥ फिट फिट रे निःस्नेही निर्गुण नाहला रे, धिक धिक मुफ अवतार रे॥ उतारी कूपमा मूकी दोरडी रे, कापे एहवो कवण गमार रे॥ ना० ॥६॥ में तो शुं कां तुजने कहीए दूहव्यो रे,शुं तुज उकट्युंएह रे॥ करुणा ए शुं नावी तुक हियडे रे, एह शो कारिमो नेह रे ॥ ना ॥७॥ वदीए ने तुफ बाती वज सरीखडीरे, दोड्यो जे घरणी मूकीरे ॥ परिहरतां केम चादयुं मनडुं ताह रुंरे, दीठी शी मुऊमां चूक रे ॥ ना॥७॥ नेहड लो न शक्यो नाहलीया नीवाहिने रे, दीधो अचिं त्यो बेह रे ॥ रे रे किम विधाता हाथे घडे रे, ए हवा नर निःस्नेह रे ॥ ना ॥ ए॥ एहवी जो न करे तो तारीरे, लंबी कला नवि थाय रे ॥ तुं पण दीसे ने निर्दय हियडे रे, एहवं तुऊ न सुहाय रे ॥ ना ॥१॥ जां बुकर जोडी दैव में ताहरो, केहो उलव्यो ग्रास रे॥मुजने जे तें मेट्यो एहवो नाहलोरे, एतुऊने शाबासरे॥ ना० ॥११॥ धुरथी जो वालमीया कूड हुं जाणती रे, तो कांश नावत साथ रे ॥ रेहती हुँ मंदिरमें फुःख नवि देखती, नित्य पूजत जगना अरे॥ ना॥१२॥ पेहलां तो जल पीई पने घर पूजीयु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ज) रे, हुर्बु जे लखीयु ललाट रे ॥ मुनिवरनुंजे लांख्यु तेह खलं थयुं रे, जल वही श्राव्युं वाट रे॥ नाग ॥ १३ ॥ दैवे जो पांखडली दीधी होत जो रे, तो जश् मलती कंत रे ॥ केम जश्ने मलीयें आडो सा यरु रे, सायरु तेम तदंत रे ॥ ना० ॥१४॥ पियुडा ने उलूंडी आवे मनमें रे, नारी निगमे केम दीह रे ॥ उपाडी नाखी विरहपयोधिमां रे, मी बोलतो केम जीह रे॥ ना ॥ १५॥ थानारूं ए लख्युं एह नाग्यमां रे, वालिम ताहरो विजोगरे ॥ इहां को कोश्नो वांक को नहीं रे, पूर्व कर्मनो जोग रे॥ ना॥ १६ ॥ जंगल में पण मंगलमाला होयशे रे, शील थकी सुविशाल रे॥ पत्नणी एमनमानी बबीश मी रे, मोहन विजयें रसाल रे॥ना॥१७॥ सर्व गाथा॥ ॥दोहा ॥ ... नमया बेह देश गयो, नाह महेसरदत्त ॥ अब ला फूरे एकली, सायर तद संसत्त ॥१॥ विरह म होजो केहने, विरह उस्सह दीठ ॥ धरणी पण शत खंड हुवे, जल विरहे उकिछ॥२॥ वहद विरह थ थाह जल, थाह न लग्ने कोय॥ कां न हुईं ताहरु मि लण, जंगल नेटण होय ॥३॥ जिहां विरहानल प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ', Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) रजले, तिहां नर केहो नूर ॥ दद्ये दावानल जिहां, तिहां केम होय अंकूर ॥४॥ मानव कवण सही श के, विरह नुयंगम जब॥ जाली जंडी नीकले, पण न लडं विरहास ॥५॥ विरह.वज्र वंचे कवण, विरह कुःख न सहाय ॥जाख लताश्री वीउडे, तेम तेम पुर्बल थाय ॥६॥ ॥ ढाल सत्त्यावीशमी॥ शुक देव कहे रे उपाय, तुमें सांजलो परीद त राय ॥ ए देशी ॥ हवे नमया सुंदरी नार, मुके नयणथी आंसूधार ॥ पडी शोचना सरित मकार, विरहें थर व्याकुली रे ॥ कुण जाणे पराश् पीर ॥ जस वीचे ते सहेज शरीर, विरहीनो विरह गहीर॥ विण ॥१॥ फिरे वनमां मृगली जेम, जिहां विरह तिहां धीरज केम ॥जीहां प्रीत तिहां गति एम ॥ वि०॥२॥ करी प्रीति निवाहे कोय, करी एकं गो ताणे लोय॥पड़ी तेहनी एह गति होय ॥वि॥ ॥३॥ एकंगो पतंगने नेह, थई रसीयो ऊंपावे देह ॥ पण दीपक न गणे तेह ॥ वि०॥४॥ करी प्रीत निवाहे कोय, तेतो विरलो कोश्क होय ॥ तस पीजें पयतल धोय ॥ वि०॥॥ जे उत्तम जननी Jain Educationa Intentional For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) प्रीति, तेहनी तो जगमाय प्रतीति, खलनी तो वि परीत रीति ॥ वि०॥६॥ दे एम देह करी विश्वा स, वह्यो जार जननीयें तास॥ते तो एमही उदरे दशमास ॥ विण ॥७॥ एम रटती फीरे वनमांही, तास संग सखी नहि पाहि ॥ पडतां रहे वृक्ष संवा हि ॥ विण॥ ७ ॥ कहे हृदयने रे चंड, कांश्न होय विरहे शतखंडकेम वहीश तुं पुःख करंगविण॥ ए॥ अयि प्राण कहुं बुं तुम्म, नहिं वालम निकट निस्सम्म ॥ कहेवाशो केहना इम्म ॥ वि०॥१०॥ कांई सरजी एणे संसार, निर्नागिणी एहवी नारि॥जे ह तजी एम नरतार ॥ वि०॥११॥रे धरणी न दे कां माग, पियु विरह वाई गयो खाग ॥ जू कपटी ए लाध्यो शो लाग॥ वि०॥ १२ ॥ ए वनमां कव ण श्राधार, पीयर के कोष हजार॥गति के करि श किरतार ॥ वि०॥ १३ ॥ पुरुषे पण नोण्यो प्रेम, गयो वालिम मूकी एम ॥ तस रूंधी न राख्यो केम ॥ वि० ॥१४॥ यश् वैरण निंद पुरंत, जेणे राख्यो उलवी कंत ॥ एम कही नमया विलपंत ॥ वि०॥ १५॥ पूरवे में कीधां पाप, होशे दीधा कोश्ने शा प॥तेह प्रकट्या आपो आप ॥ वि० ॥ १६ ॥ दीधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) होशे वाले दोष, पीधा होशे श्रादें कोश ॥ तो जो गवतां केहो शोष ॥ वि० ॥ १७ ॥ कस्या हशे कान नदाह, मृग माख्या हशे फंदमाह, बिल पूख्या हो शे नीरप्रवाह ॥ वि० ॥१०॥ कस्या बालक मात विबोह, वेच्यां होशे श्रायुध लोह, कस्या होशे सा धु कोह ॥ वि०॥ १ए ॥ सूची अणीये अनंता जीव, कख्या चूरण कंद दहेव ॥ कीधा होशे आहोर सदै व ॥ वि० ॥ २० ॥ गो कन्या नूमि अलीक, होशे बोव्यां नवातरे ठीक ॥ फल तेहनां एह नजीक वि०॥१॥करी उद्यम करूं धनजाल, थई बेठो दुश्श रखवाल ॥ ली, होश्ये में ते उदाल॥ विश्॥ वावस्यां होशे अणगल नीर,ग्रही धास्या पंजर की र ॥रंग्यां होशे रातां हीर ॥ वि॥ ५३ धरणीनुं वि दायुं पेट, शरसंधि रमीयां खेट॥कस्यां शातनपातन पेट ॥ वि० ॥२४॥ परदारा संगति कीध, रस रंजी वारुणी पीध ॥ सेव्यां होशे व्यसन प्रसिद्ध ॥ वि०॥ २५॥ तिथिपर्व जाणी कस्यां जंग, करी होशे के ली अनंग ॥ वली मिथ्या वादि प्रसंग ॥ वि॥२६॥ जिनमतथी कस्यो विषवाद, गुरुजनना कस्या अप वाद ॥ हूठ होशे संतविषाद ॥ वि० ॥ २७॥ एम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) निंदे पुरातन कर्म, दृढ धारे जिनवरधर्म ॥ लहियें जे हथी संपत्ति शर्म ॥ वि० ॥ २८ ॥ ए सत्यावीशमी ढाल, कही मोहन विजयें विशाल ॥ कहुं यागल वा त रसाल ॥ वि० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ चार प्रहर दिन वन जमी, पियु विष वि साहि त्य ॥ महासती दुःख देखीने, प्राथमियो श्रादित्य ॥१॥ थई रजनी उदयो शशी, विहंग करे विश्राम ॥ पसरी दशदिश चंद्रिका, उज्ज्वल शीतल दा म ॥ २ ॥ लता गुठमांदे वसी, नमया सुंदरी ता म ॥ नय नावे नींद्रडी, मध्यरयणी थइ जाम ॥३॥ पियु विरहे तलपे घणुं, जल विण जेवुं मीन ॥ जिम जिम नेही सांजरे, तेम तेम जंपे दीन ॥४॥ रे रे चं द कलंकीया, लाज न आवे तुक || अबला जाणी ए कली, शुं संतापे मुऊ ॥ ५ ॥ जो पीयुमेलो तुं करे, तो तुऊमानुं पाड़ ॥ नित देउं आशीष तुज, करी रा खुं मनवाड ॥ ६ ॥ यावीशमी ॥ ॥ ढाल गोकुल गामने गोंदरे रे, या शी लूंटा लूंट मारा वाहला रे ॥ ए देशी ॥ एकलडी सायरतढें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) रे, नमया माऊम रात ॥ मारा वाला रे, इंफुने दीये उलंनडा रे, मीउडी मीठडी वात ॥ मा० ॥ ॥१॥ चांदलिया धूतारडारे, निर्दय निठोर कगेर मा० ॥ विरहीया विरह जगाडतोरे, चंचल चित्तडा चोर ॥ मा० ॥ चां० ॥२॥ लोक कहे तुझमें सुधा रे, ते तो मुधा में दीव ॥ मा० ॥ जाणुं बुं हुं मुज जाणतो रे, तुऊमां बे गरल गरिठ॥ मा० ॥चां॥ ॥३॥ सायर पुत्र तो तुं नहीं रे, तुं वडवानलनी जाति ॥ मा० ॥ ताहरूं नाम दोषाकरं रे, तेहज साची विख्यात ॥ मा० ॥ चां० ॥४॥ हियडे तुं रखे फूलतो रे, जे मुक माने जे ईश ॥ मा० ॥ ग्रद्यु विष पीयुषने तज्यु रे,शंकर तो बे बालिश ॥ मा०॥ चांग ॥५॥ ताहरेज नायें ए राहुने रे, दैवें न दीधुं पेट ॥ मा ॥ नहीं तो होत तुं पाधरो रे, एम पुःख देत न नेट ॥ मा० ॥ चां०॥६॥क्यारे कदीय तुं जगमे रे, दिनयर केरी सेज ॥ मा० ॥ जाय बे किहां माटीपणुं रे, कां नथी करतो तेज॥ मा० ॥ चांग ॥ ७॥ एहवो जोरावर जो अबे रे, रवि शशि संगम रात ॥ मा० ॥ त्यारे का नथी ऊ गतो रे, जाणी में ताहरी वात ॥मा ॥ चांग॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ( ८६ ) दी से बे शीतल दीसतो रे, पण पावकथी पुरंत ॥ मा० ॥ मोलुं दही जेम पीवतां रे, जेम होय शीत लदंत ॥ मा० ॥ चां० ॥ ए ॥ कांक करुणता राखी यें रे, कठिण न थइए मामूर ॥ मा० ॥ तो जग दीश जलूं करे रे, साहिब हाजरा हजूर ॥ मा० ॥ चां०॥ १० ॥ कांइक कीजे संचारणं रे, कांश्क कीजे उपकार ॥ मा० ॥ दीजे जश्ने उलंजडो रे, जिहां होय मुऊ जरतार ॥ मा० ॥ चां० ॥ ११ ॥ मूंडा तुं अंबर संचरे रे, तुजने शी लागे वार ॥ मा० ॥ नाह कठोर मेहली गयोरे, जो तुं नयण उघाड ॥ मा० ॥ चां० ॥ १२ ॥ जे कोय वेरी करे नहीं रे, तेम करी नागे कंत ॥ मा० ॥ जो तुं मेलावो मे लवे रे, तुं मुक वीर महंत ॥ मा० ॥ चां० ॥ १३ ॥ एम विलपे ते व्याकुली रे, तेहवे विहाणी रातरे ॥ मा० ॥ चंद बूप्यो रवि ऊगम्यो रे, सुंदर हूर्ज प्रजा त ॥ मा० ॥ चां० ॥ १४ ॥ वल्ली थी नीकली रे, आव महोदधि तीर ॥ मा० ॥ निसासो जरती थ कीरे, त्यां कुण जाणे पीर ॥ मा० ॥ चां० ॥ १५ ॥ पियु पियु करी नमया रडे रे, नाद मलो एक वार ॥ मा० ॥ वली चित्तडाथी चिंतवे रे, किहां मले व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) नह मकार ॥ मा॥ चांग ॥ १६ ॥ जेह हाथी महेली गयो रे, त्रेवडी हुंसांतुंस ॥ मा० ॥ ते पियु केम श्रावी मले रे, म कस्य मुधा मनहुँस ॥ मा॥ चांग ॥ १७ ॥ उखडं शहां कोण सांजले रे, रोये न लाने राज ॥ मा० ॥ मोह तेणे नाणी रे, श्यो ने तेहथी काज ॥ मा० ॥ चांग ॥ १७ ॥ जीहां ती हां शील सखार्छ रे, शीलथी मंगलमाल ॥ मा॥ मोहन विजयें जली कही रे, अव्यावीशमी ढाल ॥ मा० ॥ चां० ॥१ए ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा॥ हवे तो नमया संदरी, मनमां धीरय दिछ। हवणां मलशे वालमो, प्रेम विलुक प्रसिद्ध ॥१॥ जे ते कम्म उवधियो, तेदना जोगव्य जोग ॥ गति ए संसारनी, दण वियोग दण योग ॥२॥ जोगव्य तुं ताहरां कस्यां, कां तुं धरे विषाद ॥ जे जेहवं फल वावियें, तेहवो तास सवाद ॥३॥ जो ते वावी कोदरी, शाल तुं केम लणेश ॥ पामीश क मल किहां थकी, पबर जो तुं खणेश ॥४॥ मुझने मुनियें कयु हतुं, कंत विबोहो जेह ॥ पूरव कर्म तणे वशे, उदये आव्यो तेह ॥५॥प्रेम करी पलटे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) नहीं, ते विरलो संसार ॥ पण शहां प्रेम किशो करे, जीहां कृतकर्म प्रसार ॥६॥ ॥ ढाल उंगणत्रीशमी॥ __ कोई आण मेलावे साजनां ॥ ए देशी ॥ हो उठी नमया सुंदरी, सायर तटथी एह हो॥ श्रावी क दली वन्नमां, दीवू सरोवर तेह हो॥१॥ शील स खा होश्शे, एहने वनह मकार हो ॥ मलशे वाह लां मानवी, होशे जयजयकार हो॥शी॥२॥ बेठी सरोवरने तटे, हियडे खटके शाल हो ॥ इहां पर हरीगयो पियुडो,आण्यु कां न वाल हो॥शी॥३॥ एह कदलीना गेहमां, रहेता लागे बीक हो॥पहेली गिरिकंदरी,दीसे दे नजीक हो ॥शी॥॥ तजी सर वर ग्रही कंदरा, पेसी लीधो विश्राम हो ॥ निर्मल जलें नरी नानडी, मुख पखाव्युं ताम हो ॥ शी। ॥५॥जे वनफल नूंई पड्यां, ते लेइ कीध आहा र हो ॥ पवित्रपणे शुरु चित्तथी, ध्यान धरे नव कार हो ॥ शी० ॥ ६ ॥ एहज मंत्र प्रनावथी, श्र हि थयो फूलनी माल हो ॥ कुष्ट गयो जपतां थकां, पाम्यो सुख श्रीपाल हो॥शी ॥७॥ शिवकुमार ए मंत्रथी, जटिलनो पुरिसो कीध हो। जिनदासें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८‍ ) महावन्नथी, बीजपूरक फल बीध हो ॥ शी० ॥ ८ ॥ पाम्यां जिल्लने जीडी, मंत्रथी सुरना जोग हो ॥ गगनें उडती कोसली, एहज मंत्रने योग हो । शी० ॥ एए ॥ हवे ते नमया नारीने, पीयु विण दीरघ दीह हो ॥ वरस जीसी थाये घडी, उपनी एहवी एह हो ॥ शी० ॥ १० ॥ निशि वासर नेही विना, होवे ति प्रलंब हो ॥ पूजूं जिन जेम सांजले, इहां कोइ जो लाने बिंब हो ॥ शी० ॥ ११ ॥ गिरिवरमें नम या जमे, घणी कीधी तलास हो || तोही पण जिन राजनी, मूरत न मली तास हो ॥ शी० ॥ १२ ॥ फि रिपाठी गइ कंदरा, माटी जल लेइ हाथ हो ॥ मन मानीतो तेहनो, निपायो जगनाथ हो ॥ माटी त यो निपजावियो, नानकडो प्रासाद हो ॥ तेहमां प्रभु पधरा विया, गाती सुकंठें नाद हो ॥शी ॥ १३ ॥ स्थाप्युं नाम युगादिनुं, हरखी घणुं मनमांद हो || वनफल वनमां फूलडों, ढोके नित्य सोत्साह हो ॥ शी० ॥ १४ ॥ जावें जावे जावना, कहे हो जिन अनु कूल हो ॥ माहरा नाह तणी परें, रखे होता प्रतिकूल हो ॥ शी० ॥ १५ ॥ जो बे करुणा ताहरी, तो बे मं गल माल हो ॥ मोहन विजयें जली कही, जंगण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीशमी ढाल हो ( एव ) ॥ शी० ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ वीतरागने विनवे, देव शिरोमणि देव ॥ ए वनमां पामूं किहां, तुम पद पंकज सेव ॥ १ ॥ मीठी कूई कर चढी, खारा दरीया मद्य ॥ ए वेलाए तुं मध्यो, परम सनेही मुद्य ॥ २ ॥ मात पिता बांधव स्वसा, ससरो सासू कंत ॥ दुःखमांहि होय वेगलां, एक तुं सखाइ जगवंत ॥ ३ ॥ तुं करुणानिधितुं विबुध, तु ज गुण अपरंपार ॥ नव सायरमां बतां, तुज पद पद्म आधार ॥ ४ ॥ एम जन्म सुकियारथो, करती नमया नित्य || मूथी लही वनफल जमे, धरती ता पस वृत्ति ॥ ५ ॥ वस्त्र तणी बांधी धजा, दरी उई बहु वान ॥ काननमें नमयासुंदरी, एम करे गुजरान ॥६॥ ॥ ढाल त्रीशमी ॥ देशी वीडीयानी ॥ हांरे लाल नमया सुंदरीनो पि ता, निज नयरथी चढीयो जहाजरे लाल || सिंहल द्वीपनी साहमो, सुंदर व्यवसायनें काज रे लाल ॥ १ ॥ हुं बलिहारी रे शीलनी, नहि शीलसमो जग कोय रे लाल || जेह थकी वनमें इहां, मनमेल मेलो होय रे लाल || हुं० ॥ २ ॥ हां० ॥ प्रवहण तरतां नीरमें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए१ ) ते पाम्यां निशाचर द्वीप रे लाल ॥ नमया तातें रे पोतने, सायर तटे राख्यां बीप रे लाल ॥ हुं० ॥ ३ ॥ हां० ॥ प्रवहण हुंती उतयां, जल इंधण लेवा लोक रे लाल ॥ सायरतटे नमया पिता, बेठो तिहां विटाइ लोक रे लाल || हुं० ॥ ४ ॥ ० ॥ दीधुं क दलीवन तिहां, लगायी नयणे तेण रे लाल ॥ जोवा कारण संचस्यो, एकलो न जाणे कोण रे लाल || हुं ॥२॥ हां ॥ दीगं तेणें धरणी तलें, वनितानां पग लां गोण रे लाल ॥ चिंते इहां ए वनमां, रहेती दशे नारी कोण रे लाल || हुं० ॥६॥ हां० ॥ दी से बे पग लां तुरतनां, हमणां गइ दीसे बे नारी रे लाल ॥ होशे को वियोगिणी, अथवा किन्नरी अनुहार रे लाल || हुं० ॥ ॥ हां। एम चिंती ऊतावलो, चाल्यो नमयानो तात रे लाल ॥ कदलीवन मूकी करी, गयो कुंगर निकट विख्यात रे लाल || || हां०॥ तिहां एक तेथे दीठी धजा, फरहरती पवन प्रका श रे लाल || जाएं सही इहां कोश्नो, रहेवानो दी से बे वासरे लाल || हुं हां॥ वि म कोइना, मंदिरमांहे दीजे पाय रे लाल ॥ ह्यानी एह रीत बे, विणतेडे की मही न जवाय रे जाये के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एश ) लाल ॥ हुं० ॥ १० ॥ हां० ॥ संकोचाईने रह्यो, ए कलो कंदरा बार रे लाल || कान देश्ने रे सांजले, तिहां वयणतणा जणकार रे लाल ॥ हुं० ॥ ११ ॥ हां० ॥ कोइक मूल्युं बे मानवी, इहां वसियुं दीसे बे तेह रे लाल || लोकदिशा उमी ए ध्वजा, फर हरती कंदरा गेह रे लाल ॥ हुं० ॥ १२ ॥ हां० ॥ कान देश वली सांजल्युं, नर किंवा नारी एह रे लाल || हलुवे जेम तिहां सांजले, तेम साद जेल खीयो तेह रे लाल || हुं० ॥ १३ ॥ हां० ॥ मूऊ पुत्री जे नर्मदा, ते सरखो दीसे बे साद रे लाल ॥ ते केम संजवियें इहां, एम मनथी करे विसंवाद रे लाल ॥ १४ ॥ ० ॥ होय किंवा नहिं होय, मुज पुत्री नमया एह रे लाल ॥ बीजी कुण माही असी, एम बोले मीठी जेहरे लाल || हुं ॥ १५ ॥ ॥ पेठो कंदरी मांहे धसि, दीठी निज पुत्री नेण रे लाल ॥ तातें बोलावी बालिका, यति मीठे मनोहर वयण रेलाल ॥ हुं० ॥ १६ ॥ हां० ॥ नमया जो जो बोलशे, निज तातथी वेग रसालरे लाल ॥ रंग रबी ए त्रीशमी कही मोहन विजयें ढालरे ॥ लाल ॥ हुं० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) ॥ दोहा॥ नमयाए दीगे पिता, हर्षित मनमां जोर ॥धा राधर देखी जिस्यो, तांडव मांडे मोर ॥१॥ कणे क करी आलोचना, ए सुहणुं के साच ॥ कीहाथी ए वनमें पिता, ए शो दीसे साच ॥२॥ के कोई वनदेवता, प्रगट्यो गुफा मकार ॥ दीसंतो दीसे पि ता, पण केम करूं जुहार ॥३॥ बोल्यो तात सुता प्रत्ये,रे वत्से सुण वात ॥ चित्तथी शी करे शोचना, हुँ ढुं ताहरो तात ॥ ४॥ शुं तुं उलखती नथी, हुँ तुज जनक सहदेव ॥ ताहरो साद सुणी हां, मि लवा श्राव्यो हेव ॥ निश्चय जाणी नर्मदा, ऊठी प्र णम्या पाय ॥ आलिंगीने जनक पण, मख्यो हेज न समाय ॥६॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ तुम चरणे मेरो चित्त लीनो॥ ए देशी ॥ नमया सुंदरी तातने कंठे, लागी बाती जराणी उत्कंठें ॥ प्रजु जे करे ते मानी लीजें ॥ नयन थकी करे आंसु धार, जाणे त्रूटो मोती हार ॥ ॥१॥ गदगद कंठथी बोली न शके, हियडं फुःख ते केम करहि शके ॥ प्र॥ तव तेहने तातें बुचकारी, एवडुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एस ) दुःख केम करे विचारी ॥ प्र० ॥ २ ॥ इण द्वीपें इण वनमें तुं केम बे, कहे मुजने जेहवुं जेम बे ॥ ॥ प्र०॥ पासे नहीं कोइ संग सहेली, किहां गयो वा लम तुक महेली ॥ प्र० ॥ ३ ॥ में तुज उत्तमने परणार, तिहांथी तुं इहां किए विध श्राइ ॥ प्र० ॥ कहे तव नमया तातने वाणी, केती कहुं हुं कर्म क ढाणी ॥ प्र० ॥ ४ ॥ जव हुं परणी पीयु गुण जोती, राखतो तव पी र धोती ॥ प्र० ॥ ते इहां बेह देश गयो वनमें, करुणा किमपि न आणी मनमें ॥ प्र० ॥ ५ ॥ में एम पीयुडानुं कूड न जाएयुं, जोले जा वें साधुं पिछायुं ॥ प्र० ॥ इहां एकलडी दिहडा गालुं, वनफलथी ए पिंने पालुं ॥ प्र० ॥ ६ ॥ तमे शुं करो वली शुं करे पीयुडो, पूर्व कीधां जोगवे जीवडो ॥ प्र० ॥ जालमें जेह लख्युं ते लहीए, अंत र्गतनी केहने कहीए ॥ प्र० ॥ तुमे जाएयुं हशे मा हरी बाला, परण्या पढे सुख लदेशे ते वाला ॥ प्र०॥ पण जो माहरा वखतमें न लिखियो, वांक नहीं में कोश्नो परखियो ॥ प्र० ॥ ८ ॥ तातें निसूषी पुत्री वाणी, सांजलतां तिहां बाती जराणी ॥ प्र० ॥ ऐ ऐ महारी पुत्री एवां, दुःख जोगवे बे वनमांदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) केवां ॥प्र॥ए ॥ में विण जाणे करी मूर्खा, जे एहवा कपटीने परणा॥प्र॥ एम कही हियडे लगाडी बाला, रखे कुःख धरती हवे गुणमाला ॥ प्रण ॥ १० ॥ नमयाने तव आणंद दूजे, उखडाने तव दीधो पूर्ख ॥ प्र॥ मनमेलू मले एहवे टाणे, ते सुख बिहु मन के जिन जाणे ॥ ॥ ११ ॥ ताढी लहेरी जेम सायर केरी, वुधा जलधर पवनें फेरी ॥प्र०॥ तेहथी अति टाढो वाहला मेलो, ते साचुं रखे जूठमें नेलो ॥ प्र०॥ १२ ॥ तातजी तुमे शहां जिनवर नेटो, जव जव उःखडां दीणेकमां मेटो ॥प्र॥ तात कहे शहां जिनवर किहांथी, क हे पुत्री प्रगट्या डे हांथी ॥प्र॥ १३ ॥ ततक्षण ते प्रतिमा दरसाशगुल तेलनो दीप बनाई ॥ चैत्यवंदन चित्त चोखे कीचूं, दरिसणपीयूष नयणे पीबूं ॥4॥ १४ ॥ तारण तरण तुं जिन कदेवाये, रवामी कीसी जो तुं प्रसन्न थायें ॥ प्र०॥ खामी नि रंजन निपट नीरागी, तुम चरणथी अम प्रीतडी लागी ॥ प्र० ॥ १५॥ आप तस्या तिम अमने ता रो, तुं शिववनिता देवणहारो ॥ प्र०॥ जगमांहे न हि को तुम सम दाता, तुं जले जायो धन धन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए६ ) तुम माता ॥ प्र० ॥ १६ ॥ नमया तातें जिनस्तुति कीधी, समकित सुखडी रूडी लीधी ॥ प्र० ॥ मोह नविजयें मन स्थिर राखी, ढाल जली एकत्री शमी नांखी ॥ प्र० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ नमयातातें जिनस्तवन, कीधूं रूडी रीत ॥ पुत्रीने एवं कदे, अंतरंग धरि प्रीत ॥ १ ॥ जो तुक पियुडे परहरी, एहवा वनह मजार ॥ तुं ते उपरे प्रीतडी, नाणीश कोईवार ॥ २ ॥ आपने चाहे घणुं, दण क्षण में सो वार ॥ आपण तेहने चाहीयें, मान्य सुता निर्धार ॥ ३ ॥ हाथ नमे जो कोइने, वर्हेत नमे तो कोय ॥ दिलजर दिल बे जिहां तिहां, एम जांखे सहु लोय ॥ ४ ॥ जावा दे जो ते गयो, म करिश फिकर लगार ॥ आव्य संघाते माहरे, बोडी परो कंतार ॥ ५ ॥ सिंहल द्वीप थई पढे, पहोच आपणे गेह ॥ तिहां बेठी तुं पालजे, शील धर्म ससनेह ॥ ६ ॥ जो मेलो लीख्यो हशे, तो तुक मलशे कंत ॥ नहिं तो बेटी मंदिरें, जजजे जिन जगवंत ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बत्रीशमी ॥ aa टकारो कंकण रे, नणदल ठणक रह्यो मो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) री बांह | कंकण मोल लीजे ॥ ए देशी ॥ तात व चनयी नर्मदा रे, सूरिजन हर्षित थइ मनमांहि ॥ गोरडी गुणवंती, जेहने बे शीयल सन्नाह ॥ गो० ॥ ( जेहनेबे शील सहाय पाठांतरे ) तात संघातें ते संचरी रे ॥ सू० ॥ श्रावी प्रवहण ज्यांहि रे || गोο || जे० ॥ १ ॥ परिहयुं वन जिम तद जवें रे ॥सू०॥ उत्कट स्वर्गावास ॥ गो० ॥ बेटी तेह विछोदमें रे ॥ सू० ॥ तात संघातें उल्लास ॥ गो० ॥ जे० ॥ ॥ २ ॥ जोजन कीधां जावतां रे ॥सू०॥ पत्यो नौ तन वेष ॥ गो० ॥ जो सन्माने बोरडुं रे ॥ सू० ॥ तेहमां केहो विशेष ॥ गो० ॥ जे० ॥ ३ ॥ बेगं स घलां मानवी रे ॥ सू० ॥ प्रवहणमांदे जे वार ॥ गो० ॥ मूक्यो पोत खलासीयें रे ॥ सू० ॥ महो दधि मद्य ते वार ॥ गो० ॥ जे० ॥ ४ ॥ जेहवो वेग उतावलो रे ॥ सू० ॥ त्रूटे तंती तार ॥ गो० ॥ अ धिके वेगे तेहथी रे || सू० ॥ प्रवहण करे रे प्रचार ॥ गो० ॥ जे० ॥ ५ ॥ सिंहलद्वीपें जातां थकां रे ॥ सू० ॥ पवन थयो प्रतिकूल ॥ गो० ॥ पवने प्रेस्यां आवियों रे, अनुक्रमें बब्बर कूल ॥ गो० जे० ॥ ६ ॥ देखी बब्बर कूलने ॥ सू० ॥ बीप्यां प्रवहण तुंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ गो ॥ मेरा सायरने तटें रे ॥ सू० ॥ ताण्या वर पंचरंग ॥ गो ॥ जे० ॥ ७॥ सहित सुता नमया पिता रे ॥ सू० ॥ आव्यो मेरा मांह ॥ गो ॥ बे सारी नमया जणी रे ॥ सू०॥ एकांते सोत्साह ॥ गो० ॥ जे० ॥ ॥ जोजन प्रमुख जलां कस्यां रे, नमयादिकें तेणी वार ॥ गो ॥ प्रहर दिवस जब पाउलो रे ॥ सू० ॥ शोचे शाह तेवार ॥ गोग ॥ जे० ॥ ए॥ नमयाने मूकी इहां रे ॥ सू० ॥ नेटुं बब्बर नूप ॥ गो० ॥ पुरमे वली रोजगारनुं रे ॥ सू० ॥ दीसे ले केहबुं खरूप ॥ गो ॥॥ जे॥ ॥ १०॥ अंबर पहेस्यां सुंदर रे, पहेस्या नर श्रृंगार ॥ गोण ॥ लीवू अमूलक नेटणुं रे ॥ सू० ॥ साथें सवि परिवार ॥ गो ॥ जे ॥ ११ ॥ पुत्रीने कहे पेखजो रे ॥ सू० ॥ पट मंडप मनुहार ॥ गो॥ श्रावीश हूं हमणां फरी रे ॥ सू० ॥ जाउंडं नयर मकार ॥ गो॥ जे० ॥ १२ ॥ एम कही नमयानो पिता रे ॥ सू०॥ परिवखो परिकर साथ रे॥गो॥ एम पहोंतो दरबारमें रे॥ सू० ॥ जिहां बेगे नृप नाथ ॥ गो॥जे॥ १३ ॥ बत्रीश राजकुली सजी रे ॥ सू० ॥ वच्चे मकरध्वज राय ॥ गो॥ नमया तातें Jain Educadona International For Personal and Private Use Only 3 Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) पाधरा रे ॥ सू० ॥ प्रणम्या पुरपति पाय ॥ गो० जे० ॥ १४ ॥ परदेशी व्यापारियो रे ॥ सू० ॥ जा णी नृप दे मान ॥ गो० ॥ श्रदरथी ग्रधुं नेटं रे ॥ सू० ॥ नूपें दीघां पान ॥ गो० ॥ जे० ॥ १५ ॥ कुशला लाप परस्परें रे ॥ सू० ॥ पूढे आणी प्रेम ॥ गो० ॥ पुरमांदे व्यापारनी रे ॥ सू० ॥ मागी आणा तेम ॥ गो० ॥ जे० ॥ १६ ॥ प्रणमी नृप नमयापिता रे ॥ सू० ॥ श्राव्यो आपणे ठाम ॥ गो० ॥ ढाल कही बत्री शमी रे ॥ सू० ॥ मोहने एह अजिराम ॥ गो० ॥ जे० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ वेच्यां नमयाने पिता, करियाणां पुरमांहि ॥ दा म करवा गांठें जला, परखी पारखमांहि ॥ १ ॥ पुर मांहे कीरति थई, नमया जनकनी जोर ॥ एहवो कोण अपत्य बे, जे होये गुण चोर ॥ २ ॥ सुपुरुष जिहां जाये तिहां, पामे आदर मान ॥ नागरवली मान लड़े, जाते तो बे पान ॥ ३ ॥ तृणचर नानि थकी थई, मृगमदनी शी जाति ॥ पण जो गुण बे तेहमें, तो बे जग विख्याति ॥ ४ ॥ नमया तात नि रंतरें, आवे नृप दरबार || बब्बरमा दिन थया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) बहुला हेज नंमार ॥ ५ ॥ नमया मेरामा रहे, ता त करे संजाल ॥ वालमने संजारती, निगमे दिवस विशाल ॥६॥ ॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ ' सलूणी जोगण रूडी बे ॥ ए देशी ॥ बब्बर कू लमांहिं वसे बे,हारिणी गणिका एक ॥ जेहथी पुरंद र अप्सरा,रही हारी तेहथी विवेक ॥ कर्मनी गति न्यारी बे, अरे हां जूठ विचारी बे ॥१॥ ए श्रां कणी ॥ हारिणी जन मन हारिणी साची, कारिणी मोह प्रपंच ॥ प्रगट कपटनी तेह सारिणी, वधा रिणी प्रीति रोमंच ॥ कम्॥२॥ मधुर वयण वली नयण अनोपम, सयण करे क्षणमांहि ॥ प्रगटी मयणतणी जली, ए तो रयणि उद्योत विनाहि ॥ क० ॥३॥ गणिका रयण तणी कणिका, ला वण्य श्रणिका समान ॥ अमृतनी बे वेलडी, स्नेह यंत्रनी क्षणिका निदान ॥ क० ॥ ४ ॥ नारी नृत्य कारीयो हारी, एहवी अटारी तेह ॥ विषय कटा री विनावरी, शील शूरने ऊंपावे तेह ॥ क० ॥५॥ कामि जनने मनमें सरखी, विषय जननी संसार ॥ एहवी गणिका रूयडी, जस हाये घडी किरतार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) ॥ क० ॥ ६ ॥ बब्बर रायें तेही दीधी, बत्र धारिनी सेव ॥ धरणीधव माने घणुं, एह विषयी जननी देव ॥ क० ॥ ७ ॥ एक दिन नृप कहे ते म णिकाने, माग्य कांइक मुक पास ॥ तुज गुणें रीज्यो हुं घणो, हुं पूरुं ताहरी आश ॥ ० ॥ ८ ॥ गणिका कहे सुपो नयर नरेश्वर, जो बे करुणा तुक || तो उणती वे केहनी, महाराज मंदिरें मूज ॥ क० ॥ ५ ॥ पण एक मागुं पसाय तुमारो, सारो मोरुं काम ॥ जे सारथवाद प्रापणे, इहां घडवा वे दाम ॥ ० ॥ १० ॥ तेह श्रोत्तर सहस सो वनना, आपे मुऊ दीनार ॥ थावे मंदिर माहरे, सुख जोगवे जेह सार ॥ क० ॥ ११ ॥ ते मुत मंदिर जो नवि श्रावे, तो देवं तस अपमान ॥ जो मुकने माग्युं दीयो, तो देर्ज एह दिवान ॥ क ॥ १२ ॥ नृप कहे जोली ए शुं मागे, जो मागे ते प्रमाण ॥ जे कयुं ते लेजें सुखे, कुंण रंक ने कुंण राण क० ॥ १३ ॥ नृपना वयणथकी ते गणिका, आवे जे सारथवाह ॥ लेवे धन ते पासथी करे, केलि अनंत उत्साह ॥ क० ॥ १४ ॥ हारिणी गणिकायें श्राव्यो जाणी, नर्मदासुंदरी तात ॥ जे किरतारें जला क For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) स्या, तस बानी केम रहे वात ॥ क० ॥ १५ ॥ ग पिका मिलवा आतुर हूर, तेम वली धननो लोज ॥ जो जो एह संसारमां, नथी दीसतो लोजनो योज ॥ कप ॥ १६ ॥ लोज मूंगो ते गुहिर महोदधि, कोइक लाने पार ॥ ढाल कही तेत्री शमी, ए मो इन विजयें सार ॥ क० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ हवे ते गणिका हारिणी, आलोचे खयमेव ॥ चे टी गुण पेटी जली, ते तेटी ततखेव ॥ १ ॥ रे चेटी सायर तटें, पटकुल ताएयो जेण ॥ तेहने जेम तेम नोलवी, मंदिर आणो तेण ॥ २ ॥ जो ते नाकारो कड़े, तो तुं कहेजे एम ॥ श्रम मंदिर श्राव्या विना, रे नर जाइश केम ॥ ३ ॥ मुद्रा श्रोत्तर सहस, देमती श्रम देह || श्रम स्वामिनी मल्या पबी, जे जाणे ते करेह ॥ ४ ॥ चेटीने एम शीखवी, मूकी तेणें विख्यात ॥ ते पण यावी पाधरी, ज्यां बे न माता ||२|| करी प्रणाम ऊजी रही, दासी करे रदास ॥ श्रहो सार्थ गणिका तिणें, मूकी बे तुम पास ॥ ६ ॥ जे दिन तुमने सांजल्या, ते दिन हूंती तेह ॥ मिलवा मन तरसे घणुं, निपट बंधाणो नेह ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) ॥ ढाल चोत्री शमी ॥ बेडो नांजी ॥ एदेशी ॥ नमया तात ते दासी वयर्णे, घणुं घणुं ए खेदोणो, परदारानी संगति निसुणी, हियडे यति शरमाणो ॥१॥ लगी रहेने हांरे कहेनी बे तुं दासी, ऋ० ॥ हांरे शी मांडी कू डनी फांसी ॥ ० ॥ हांरे तुं दिसती नयी विश्वासी ० ॥ श्रांकण ॥ अरे दूती किहां तुं हुंती, यइ धूती जे श्रावी ॥ जारे अबूती देश जूती, चढशे मूति साची ॥ ० ॥ २ ॥ में व्यवहारी किम परनारी, सेवुं जोय विचारी ॥ खारी विषयी विषय कटारी, मतवारी धूतारी ॥ ० ॥ ३ ॥ में संतोषी बुं निज दारा, केम सेतुं परदारा || जोगवतां निर्धारा सारा, एहनां फल बे खारां ॥ ० ॥ ४ ॥ पररामाना जे हने जामा, जन्म्या तेह निकामा ॥ मुख सामा जोई नवि पाम्या, धन्य जे एम तजे वामा ॥ ० ॥ ५ ॥ में श्रावक श्रागम जावक, नावक मिथ्या श्रराति ॥ परदारा पावकमां पगलां, देतां केम वढे बाती ॥ ० ॥ ६ ॥ दानवराय टंका वंका, शूर पण धरता शंका | दाशरथी यें देई मंका, लंका कीधी पंका ॥ ॥ ७ ॥ पदमोत्तर जस अविचल उत्तर, सायर उत्तर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) श्रामो ॥ तेह निरुत्तर कीधो मुकुंदें, परत्रिय अयस अखाडो॥०॥ ॥रे दासी तुं कुबुझिनी मासी, एम नकीजें हांसी ॥ आशा शी विशवासी जोली, कहीये वात विमासी ॥ १० ॥ ए ॥ तुज उकुराणी वेश गवाणी, श्रमे वाणियाणी जाया ॥ अमथी ए केम हुवे कमाणी, जाणी वादल गया ॥ १० ॥१०॥ नमया तातनी,निसुणी वाणी,अति विलखाणी चेटी॥ चित्तथी जाण्यु कांडं श्रावी, मायने पेटें बेटी ॥श्र० ॥११॥ कहे कर जोडी तहें निगोडी, कां नांखो ऊवखोडी ॥डे होडी मुफ स्वामिनी जोडी, गोर डियो ने थोडी ॥ ॥१॥ ए अंगना जेणें अंगी यें, अंगें नवि थालिंगी ॥ नवरंगी नवि जिणे श्रनु षंगी, तेह कुरंगी प्रसंगी ॥१०॥ १३ ॥ नारी ना गकुमारी सारी, नाखुं तेह उवारी ॥ जेणे हाथें ए गणिका संवारी, धातानी बलिहारी ॥१०॥१४॥ जे परदूणा, श्रावे सयाणा, इणपुर खेश वसाणां ॥ ते मंदिर गणिकाने थावे, एहवी महीपति आणा ॥ अ० ॥ १५ ॥ सहस एक या अधिकेरा, श्रापे ते दीनार ॥ नहीतो तेहने नवि दिये जावा, नाषित लखत डे सार ॥॥१६॥ चेटीनी निसूणीने वाणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) नमयातात जे कहेशे॥ ढाल कही चोत्रीशमी रूडी, मोहन हेजें लहेशे॥॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ जांखे नमयानो पिता, चेटी निसुण विचार ॥ कहो उकुराणीने लियो, जोश्यें तो दीनार ॥ १॥तु मथी बीजी वारता, श्रमथी तो नवि थाय ॥ एम कहेजे मीठी गिरा, तेह कहेतां शुं जाय ॥५॥ राजा पण कोपे नहीं, कागलियाना कान ॥ ते मारे कहेजे घj, चेटी तुं कडं मान ॥३॥ चेटी श्रावी दोडती, निज उकुराणी पास ॥ ए सारथपति स्वा मिनी, दीसे वे कोई दास ॥४॥ मिलवाने वांजे नहिं, तुऊ सरीखु जे पात्र ॥ ए श्रण बोलाव्यो न खो, घर जेहवी नहिं यात्र ॥ ५॥ एणे तो एह, कडं, लागे ते त्यो दिनार ॥ पण परदारा प्रीतडी, करतां केम व्यवहार ॥६॥ ॥ ढाल पांत्रीशमी॥ चुनी चुनी कलीयों में सेज बीगंज, फुलारी गज राह ॥ माहरा मारुडा, पाणीमारो ठमको वाजे ॥ ए देशी ॥ जाउँ रे चेटी तेडी श्रावो, जेम सारथवा ह॥ मारा पंथीडा जोगीडा कांय न श्रावो, श्रावो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) माहारा राज ॥ निपट न लोजी थाए पाकणी॥ कहेजो स्वामी मया करो मोसुं, मंदिर करो गज गाह ॥ मा॥१॥ तुमथी जला जला सारथवाह, श्रांगण श्रमचे थायामा॥ दीसो डो तेहथी चतुर घणेरा, फोगट शी करो माया ॥माण ॥॥हकम अजे मूळ नरवर केरो, खेडं तिण दीनार ॥ मा०॥ नहीं तो अमारे घेर कोण आवे, श्रमे गणिका अव तार ॥ मा० ॥३॥ जो तमे माहरे गेह न श्रावो, तो किम लेउ दीनारमा॥ मन माने तो करजो क्रीडा, पण श्रावो एक वार ॥मा॥४॥ वयणथी न होवे मेलो, तस धनें केम मन माने ॥मा०॥रे रे दासी खासी माहरी, एम तुं कहेजे गने॥मा०॥५॥ श्रावी दासी तरत उजाणी, जिहां बेचीवरगेह ॥माण्अहो सार थपति विनति मानो अमथी आणो नेह ॥ मा०॥६॥ मूळ उकुराणी घणुं बुधाणी, तुमढुंती निर्धार ॥ मा० ॥ मंदिरसुधी तो करो करुणा, साथे लेश दी नार ॥ मा॥७॥ वातडीए तो एम मत वाहो, एम केम मूके कोय ॥ मा॥ हे प्रिय प्रेम एम बनी श्रावे, वाते वडा नवि होय ॥मा ॥७॥ जो मन माने तो तिहां रहेजो, पराणे न होवे प्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) त ॥ मा० ॥ गाम वसे नहिं बांध्ये कणबी, जिहां तिहां एह डे रीत ॥ मा ॥ ए ॥ जो तुमें नहीं था वो तो तुमने, चालवा नहिं दे राय ॥ मा० ॥ नाने महोढे तुमची आगल, शी कहुं वात बनाय ॥माण ॥ १० ॥ शाहें आलोचीने जोयु, एतो गणिका जा ति ॥ मा० ॥ नर सुर असुर ते पार न पामे, जे ए हना श्रवदात ॥ मा० ॥ ११॥ जे को नारी थकी हठ ताणे, ते सम मूढ न कोय ॥मा॥ अपर क्ली तस गायुं गाये, ते पण तेहवो होय ॥ मा० ॥१॥ करीए आपणा मननुं जाएयु, ताणीयें नहिं को साथे ॥ मा ॥ शुं करे कामिनी जो होय आपणुं, मनर्वा श्रापणे हाथे ॥ मा० ॥ १३॥ दासी क्यों जनक नमयानो, लेश तुरत दीनार ॥ माया व्यो दासी साथे सुंदर, गणिकाने आगार ॥ मा०॥ ॥ १४ ॥ गणिकायें श्रासन बेसण दीधुं, घणी करी मनुहार ॥ मा० ॥ नले तुमें स्वामी महेल पधास्या, मोहोटी करी किरतार मा॥१५॥ एवडी शी करी खांचा ताणी, कनडीथी महाराज ॥ मा० ॥ नृपनो हुकुम श्रने हुं चाटुं, तो तुमने शी लाज ॥ मा० ॥ ॥ १६ ॥ साकर घोले मुखथी गणिका, सारया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainenbrary.org Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) निहाले ॥ माण ॥ मोहन विजये रूडी जांखी, पांत्री शमी ए ढाले ॥ मा० ॥ १७ ॥ सर्वगाथा . ॥दोहा॥ ... गणिकाए मांमधा घणा, हाव नाव धरी वाच॥ पण जोलववा शाहने, सा नवि लाने दाव ॥१॥ शाह तिहां मन दृढ करी, बेगे चित्र समान ॥ व चन सुणी गणिका तणां, एकरंगे दीये कान ॥२॥ जिहां शीलसन्नाह वर, तिहां कुसुमायुध बाण, कि मपि न जोरो करिशके, मन माने तेम ताण ॥३॥ नमयातात कहे तहां, रे गणिका अवधार ॥ लट पट जावा दे परी, ए प्यो तुम दीनार ॥ ४ ॥ श्रमें श्रावक जिन रायना, परदारा परिहार ॥ देखी पे खी श्रम थकी, केम होये एह श्राचार ॥५॥ मान्य कडं तुं माहरूं, अमे श्राव्या श्रागार ॥ जडं थयु तुमने मल्या, सोप्यां तुम दीनार ॥६॥ - ॥ ढाल उत्रीशमी॥ ___ श्रमे महीथारु श्रादि जुगादि, तुं कीहांनो दाणी रे ॥ ए. देशी ॥ कहे दासी हारिणी गणिका ने, रही श्रवणमा पेसी रे ॥ एहने मेरे कामिनी रूडी, मनोहर नानडे वेशें राज ॥१॥ हुँ तो एह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ने मटके मोहीरे ॥ देही कुंकुमने वान, जेही रे अप्सराने मान ॥ हुं० ॥ ए आंकणी ॥ नयण देने घडी धातायें, कदेतां नावे लासे रे ॥ आज तोब धती दीठी बाजा, काले कीहां ते जासे राज पहुं ॥२॥ नागकुमारी देवकुमारी, तेम ए मानवनी मारीरे ॥ अहो उकुराणी बाला उपरें, नाखू तेह उ वारी राज ॥ हुं० ॥३॥ शुं जाएं एहनी के पुत्री किंवा एहनी नारी रे ॥ में तो जोखे जावें दीम, पण नावे ते निरधारी राज ॥ हुं० ॥४॥ ते कन्या जेम तेम करतां, आपण मंदिरें आवे रे ॥ कल्पल ता सम इबित दाता, दीठेहीज सुहावे राज ॥ हुं ॥५॥ ए हरिणादी छ अमृतथी, नीसरी दीसे श्राखी रे ॥ जो एहमां कां कूडं नाखं, तो सरजब हार डे साखी राज ॥ ढुं० ॥६॥ एमही पण एं सारथवाहो, आपणे वश नवि होशे रे ॥ तो तने कांये नूलो उकुराणी, नारी न ज्यो को खोंची राम ९० ॥७॥ काम सरे वली मान वधे तेम, लोक नवि होय हांसी रे ॥ अने वली सारथवाह न का णे, तो तमने शाबासी राज, ॥ ९ ॥ ॥ मषि दासी वयण सुणीने, रही कण एक शि * A SRCH Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) मीठी मीठी वातो मांडी, शाद थकी अनिमानी राज ॥ हुं० ॥ ए ॥ खामी किए नयरें वसो बो, शी खबरो तुम केरी रे ॥ दीसो बो दृढधर्मी सारा, कीर्ति तुम जिनेरी राज ॥ हुं० ॥ १० ॥ मुद्री के एह घडी बे, कुंदन पण बे सारो रे ॥ मया न थी कारीगरमांदे, धन्य एहनो घडनारो राज ॥ ॥ हुं० ॥ ११ ॥ सोवनकार इंदाना मूरख, एहवी न घडे कोई रे ॥ काढी थालो मुऊने जोवा, तत कृण देश जोई राज ॥ हुँ० ॥ १२ ॥ जो कारीगर एहवो होये, तो एहवी घडावुं रे ॥ चोयफेर मूडिने चूनी, जेल उले जडावुं राज | हुं० ॥ १३ ॥ नमया तातें तें गणिकाने, दीधी मुडिका काढीरे ॥ दण एक तो रसनायें वखाणी, चांगलीए करी गाढी राज ॥०॥१४॥ दासीने गणिकायें तेडी, ए मुद्री तुं लेजे रे ॥ जाजे सीधी एहने मेरे, तेह नारीने देजे राज ॥ हुं० ॥ १५ ॥ कहेजे सार्थप तुकने तेडे, श्रा मेली सहिनाणी रे ॥ भूलवणीमां नांखी तेहने, आपण जे ईहां सपराणी राज | हुं० ॥ १६ ॥ दासी पहोती मेरा सांमी, कर, ग्रही मूडी राखी रे ॥ ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११ ) बत्री शमी ढाल सोहाती, मोहन विजयें जांखी राज॥ ० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ दोहा ॥ गणिका तो बेठी करे, मीठी मीठी वात ॥ कपट नजांणे तेहनुं, नमयाकेरो तात ॥ १॥ नमया सुंदरी नेकने, दासी यावी तेह || करी प्रणाम ऊभी रही, नांखे एम धरी नेह ॥ २ ॥ सारथ वाद तुमारडे, शुं या कहो मूक ॥ नमया कहे माहरो पिता, ए संबंध अद्य ॥ ३ ॥ दासी कहे धन्य तुम पिता, तुंबे पुत्री जास ॥ उदधितणी पुत्री रमा, तेहवो तुक आजास ॥ ४ ॥ श्रमघर तात तुमारडो, बेठो मांगी गुद्य ॥ तिहांथी तुमने तेडवा, एम मूकी बे मुक ॥ ५ ॥ ते रखे जूनुं मानती, व्यो सही नाणी एह ॥ तात हाथनी मुद्रिका, एम कही दीधी तेह ॥ ६ ॥ ॥ ढाल साडत्री शमी ॥ सखीरी आयो वसंत अटारडो ॥ ए देशी ॥ सखीरी दासी कहे नमया जणी नमया जी उगे होय असूर | सुगुण जनमोहना ॥ स० ॥ ता त जोता हशे वाटडी ॥ वा० ॥ मंदिर पण बे दूर ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) सु० ॥ स० ॥ १ ॥ नहिं श्रावो हमणां तुमे ॥ ६०॥ तातजी करशे रीश ॥ सु० ॥ स० ॥ बीजो फेरो मू ऊने ॥ मू० ॥ विशवावीश ॥ सु० ॥ स० ॥ २ ॥ श्र म कुराणीने पुत्रिका | पु० ॥ बे अति नाही तेह सु० ॥ स० ॥ तातें तस देखी करी ॥ दे० ॥ तुमने संज्ञायां एह ॥ सु० ॥ स० ॥ ३ ॥ तात कहे मुक बालिका ॥ बा० ॥ श्रति नाही गुणवंत ॥ सु०॥०॥श्रम व कुराणी पण कहे ॥०॥ ऊ पुत्री श्रति संत॥ सु०स०॥४॥ पुत्री माटें परस्परें ॥ प० ॥ परठी तेणे दोन ॥ सु० ॥ स० ॥ हुकम तेणें बीदु मेलव्यो || मे० ॥ केहमां दी जें खोड ॥ सु० ॥ स० ॥ ५ ॥ तातें तेणे कारणें ॥ का० ॥ मूडी दीधी मु ॥ सु० ॥ स० ॥ तत्क्षण मूकी तेडवा ॥ ते० ॥ अहो नमया कहुं तुज ॥ सु० ॥ स० ॥ ६ ॥ जोउ निहाली मुद्रिका, ॥ मु० ॥ बे तुम तातनुं नाम ॥ सु० ॥ स० ॥ कूड में केम जांखीए जां० ॥ सोने न लागे श्याम ॥ सु० ॥ स० ॥ ७ ॥ जो जूठ करी त्रेवडो ॥ ० ॥ तो कां न उलखे एह ॥ सु० ॥ स० ॥ कर कंकण शी आरशी ॥ श्र० ॥ जोवी पडे बे जेह ॥ ० ॥ स० ॥ ८ ॥ नमया सुंदरी मुद्रि का ॥ मु० ॥ देखी वांच्यं नाम ॥ सु० ॥ स० ॥ तात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) तणा करनी खरी ॥ क० ॥ में उलखी अजिराम ॥ सु० ॥ स० ॥ ए॥ तात वचन केम लोपियें। लो॥ एम कस्यो मनथी विचार ॥ सु०॥ स०॥ ग णिका कूड न जाणियुं ॥न ॥ नमयायें तेणी वार ॥सु०॥ स ॥१०॥ दासी साथे संचरी॥ सं०॥न मया सुंदर तेह ॥सु॥स०॥जेम कोश् नर जाणे नहीं॥जा०॥तिण विधे आणी गेह॥सु॥सम्॥१९॥ बेसारी प्रबन्न उरडे ॥5॥ नमयाने सोत्साह ॥सु॥ सम् ॥ खबर करी गणिका नणी ॥ गण॥ दासीयें स मस्यामांहि ॥सु०॥स० ॥१॥ नमया पासेंथी मुखिका ॥ मु॥लीधी करीने प्रपंच ॥ सु॥स० ॥ दीधी गणिकाने दासीयें ॥ दा०॥ जूठ कपटीना सं च ॥ सु०॥ स० ॥ १३ ॥ सोंपी नमया तातने ॥ ता० ॥ पाली मुखिका तेह ॥ सु०॥ स ॥ मलशे कारी गर एडवो ॥ए०॥ तोजी मगावशुं एह ॥ सु०॥स ॥ १४ ॥ मेरे पधारो साहिबा ॥ सा ॥ करवो हशे रोजगार ॥ सु० ॥ स० ॥ राखजो अम ऊपर मया ॥ ज० ॥ सोंपो थमने दीनार ॥ सु० ॥ स० ॥१५॥ गणिका वयणें हरखियो । ह० ॥नमया केरो तात ॥ सु० ॥ स ॥ तूंपी दीनार उठ्यो तदा ॥ ज० ॥ देई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) श्राशिष विख्यात ॥ सु० ॥ स० ॥ १५ ॥ आव्यो शा ह उतावलो ॥ ७० ॥ मेरे थई उजमाल ॥ सु० ॥ सं० ॥ एकही साडत्री शमी ॥ सा० ॥ मोहन विजयें ढाल ॥ ० ॥ ० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ व्यो नमयानो पिता, मेरामांहि जेवार ॥ न मया सुंदरी पुत्रिका, दीवी नहीं तेवार ॥ १ ॥ अर ही परही अंगजा, जोइ घणुं ए तेण ॥ पण नमया लाने नहीं, खबर न जाणी केण ॥ २ ॥ शाह करे आलोचना, कुण पदरी गयो एह || एमाण चिं ति किहां गई, हूंती पुत्री जेह ॥ ३ ॥ बब्बर कूलें घर घरे, जोई नमया तात ॥ पण नमयानी सोहणे, को इन जाणे वात ॥ ४ ॥ सेवकने लंगडा, देवे नमया तात ॥ राथी मुऊ अंगजा, किणें अपहरी कहो वात ॥ ५ ॥ शुं जाएं सेवक कहे, अमने न थइ व्य ति ॥ मानव तो कुणापहरे, थइ कोइ दैवी शक्ति ॥६॥ ॥ ढाल यात्री शमी ॥ फूलडी काजल सारे राज, देखो जमर नजारा मामारे राज ॥ मृग नयणी नागरी फूली ॥ ए देशी ॥ नमया तात विचारे राज, क्षण में पुत्री संजा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) रे राज, केम विसारे कहो ॥ गुणवंती ॥ ए आंक णी ॥ कर्म कठिन धीय केरां ॥ रा॥ केहवी करे घेरां ॥ रा० ॥ कि० ॥ १॥ एक तो पीयुडे मूकी॥ रा॥ वनमाहीथी विगर सलूकी ॥ रा० कि० ॥ हुँ तिहाथी लश्श्राव्यो॥रातो ते सूतो सिंह जगाव्यो ॥रा ॥ कि ॥२॥ अपहरी जे ले गयो कोश ॥रा० ॥ पुरमांहिंतो घणुंए जो ॥रा०॥ कि० ॥ पुत्री गश् वली हासो ॥ राण ॥ एतो कोश्क हुई त मासो ॥रा ॥ कि० ॥३॥दुःख धरतो ते व्यव हारी॥रा ॥ तिहां तेड्या ताम वेपारी॥राम्॥ कि० ॥ वेची करीयाणां सीधां॥ रा० ॥मुह माग्या पैसा लीधा ॥ रा ॥ कि० ॥ ४ ॥ प्रवहण सवि स ज कीधां ॥रा ॥ सवि साथ बेसारी लीधां ॥रा ॥ कि० ॥ बब्बर कूल निवारी ॥रा ॥ प्रवहण ते मेव्यां हकारी॥रा॥ कि० ॥ ५॥ अनुक्रमें जरु अच्च श्राव्या ॥रा ॥ सायर तटें पोत बीपाव्यां. ॥रा०॥ कि० ॥ नृगुकछमाही धर्मधारी ॥रा॥ जिनदास अडे व्यवहारी॥रा ॥ कि० ॥६॥ न मया तातनो तेही ॥ रा॥ परिपूरण अबेय स नेही. ॥रा ॥ कि० ॥ वाहणने श्राव्यां जाणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) ॥ रा० ॥ ते सांहमो आव्यो सपराणी ॥ रा० ॥ कि० ॥ ७ ॥ हियडे हियडुं नेली ॥ रा० ॥ तीहां मि लिया बेदु मन मेली ॥ रा० ॥ कि० ॥ नमया तात उल्लासें ॥ रा० ॥ घर तेडाव्या जिनदासें ॥ रा० ॥ कि० ॥ ८ ॥ सुजग रसोइ कीधी ॥ रा० ॥ जीमवा ने थाली दीधी ॥०॥ कि० ॥ जोजन करीने उठ्या ॥ रा० ॥ फोफल पण उपर घूट्यां ॥ रा० ॥ कि० ॥ एए ॥ बिहु मित्र बेठा एकांते ॥ रा० ॥ अन्योन्य हूआ उद्यांते ॥ रा० ॥ कीम नमया सुंदरी केरी ॥ रा० ॥ कही वातो अति अजिनेरी ॥ रा० कि० ॥ १० ॥ नमया पुत्री मादारी ॥रा०॥ श्रहो मित्र जत्री जी तादरी ॥ रा० ॥ कि० ॥ बब्बरकूल कलोइ ॥ रा० ॥ तिहां अपहरी लेइ गयो कोइ ॥ रा० कि० ॥ ११ ॥ ढूंढी आप साथै ॥ रा० ॥ पण पुत्री न श्री हाथे ॥ ० ॥ एक तिहां गणिका कहावे ॥ रा० ॥ मुऊ तास जरुंसो श्रावे ॥रा०॥कि० ॥ १२ ॥ मानी बे तास राजाए ॥ रा० ॥ होवे तो केम क हाये ॥ ० ॥ कि० ॥ जो तमे तिणी पुर जावो ॥ रा० ॥ तो मुऊ पुत्रीनी खबर लेइ श्रावो ॥ रा० ॥ कि० ॥ १३ ॥ मानीश पाड तुमारो ॥ रा० ॥ इहां · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७) कीजें काज मारो ॥रा ॥ कि० ॥ पुत्री कुःख के म सहीयें ॥ रा० ॥ अंतर गतिनी केहने कहीयें ॥रा ॥ १४ ॥ कही जिनदास सनेही ॥ रा॥ श्रमे कारज करशुं एही ॥ रा० ॥ कि०॥ एम शुं वे ण वढावो ॥ रा ॥ फोगट शुं पाड चढावो ॥रा॥ कि० ॥ १५ ॥ जाश्श बब्बर कूलें ॥ रा॥ तिहां रहीश वेष अनुकूलें ॥रा ॥ कि० ॥ उलवी नमया जिहांथी ॥राणा श्रावीश तेहने तिहाथी राम ॥ कि० ॥ १६ ॥ जो नमया खेई आवें ॥रा०॥ तो मित्रनो मुजरो पावें ॥ रा॥ कि० ॥ मोहने मन स्थिर राखी ॥रा० ॥ आडत्रीशमी ढाल ए नांखी ॥रा० ॥ कि० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ नमया तातें मित्रने, एम कही संदेश ॥ निज प्रवहण सऊ कस्यां, पाम्यो श्राप निवेश ॥१॥ सयल कुटुंब मिल्यां तिहां, नमया जनकै ताम ॥ ब ब्बर कूलतणी कही, वीतक वातो ताम ॥ ५॥ कहे कुटुंब न करो कीसी, फीकर तुमे मनमांद ॥ जलूं हशे मिलशे सुता, करो हेज सोगंहि ॥ ३॥ एह वे जरुयच नयरथी, पोत नरी सुविलास ॥ बब्बर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७) कूल दिशाजणी, चाट्यो ते जिनदास ॥४॥ सायर लहर ऊकोलथी, चाले प्रवण अनुकूल ॥ ते अनु क्रमें श्रावीया, तरतां बब्बर कूल ॥५॥ जिनदास खेई नेटएं, नेव्यो बब्बर राय ॥ पाम्यो मान महो त्सवें, तिम पंचांग पसाय ॥६॥ ॥ ढाल उंगणचालीशमी ॥ हरीयामन लाग्यो, ए देशी ॥ नृप आदेशे नग रमां, वणिज करे जिनदास रे॥नेही केम वीसरे ॥ वचन संजाखु मित्रनु, हियडामां सुविलास रे ॥ ने॥ १॥ सहदेवें मूऊने हां, पुत्री जोवा काज रे ने ॥ मूक्यो पोतानो गणी, हेतु जाणी श्राज ॥ ने ॥२॥ में पण मित्रने कडं अडे, आणीश पुत्री तूफरे ॥ ने ॥ ते तोहूं जूली गयो, मांड्यो व्यापार अबऊ रे ॥ ने ॥३॥ जाणतो हशे मित्र माहरो, जे एह मुफ जिनदास रे ॥ ने ॥ बब्बरमांक रतो हशे, मुफ पुत्रीनी तलास रे ॥ ने० ॥४॥ ते मुझने नवि सांजरे, गाजे ने रोहिण मांहिरे, ॥ ने० ॥ ए मुझने जुगतुं नहिं, केलq प्रपंच काई रे॥ ने ॥ ५॥ जिहां मनमेलो आपणो तेहथी केम हुवे कूड, रे ॥ ने ॥ लोक उखाणो एम कहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) जिदांकूड तिहां धूड रे ॥ ने० ॥ ६ ॥ उतारे कूप कविचें जो सूरिजन सिरदार रे ॥ ने० ॥ नेह वि लूधां मानवी, ते केम करे नाकार रे || ने० ॥ ७ ॥ नेह महाधन जगतमां, जो करी जाणे कोय रे ॥ ने० || फोगटीयांनो नेहलो, निर्वाहो नवि होय रे || ने० ॥ ८ ॥ हिये जूदा होवे जूदा, तेहथी केम पति प्राय || ने० ॥ साचा स्नेहि सजन तणी, ले बे लोक बलाइ रे || ने० ॥ ए ॥ शापुरुषनी प्रीतडी, जेवी पहाणें रेह रे ॥ ने० ॥ श्रोबा प्रीतडी जे हवी, पावशें जीरण गेहरे ॥ ने० ॥ १० ॥ करिय जसो आपणो, खोले दीधुं शीषरे ॥ ने० ॥ कूड जो करीयें तेहथी, तो केम सदे जगदीशरे ॥ ने० ॥ ११ ॥ नेह त वरों हलधरे, कंधे राख्यो मुकुंद रे ॥ ने० ॥ नाद तो नेहकरी, हरिण पडे बे फं दरे ॥ ने० ॥ १२ ॥ कहेवायें न एकना, फरीदें जे गेह गेह रे, ॥ ने० ॥ ते जूठा माणसथकी, केम निवहाये, नेह रे || ने० ॥ १३ ॥ चंच पडे पीडाय बहु, गयो जो उमड़े नहि मेह रे, ॥ ने० ॥ गंगा जल नवि पीये, जूवो चातकनो नेह रे ॥ ने० ॥ १४ ॥ जो पंकज नवि संपजे, जिहां सरवर अवतंसरे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ने.॥ अवर कुकुटनी परें, न खणे ते कहियें हंस रे ॥ने॥ १५ ॥ तेमाटे संसारमा, नेह अनोपम वस्तु रे ॥ ने ॥ जे नेही हो आपणा, अहोनिश कुशला अस्तु रे ॥ १६ ॥ नहीनी जे पुत्रिका, जो नयर मकार रे ॥ ने० ॥ ढाल ए जंगणचालीशमी, कही मोहने शिरदार रे ॥ ने० ॥१७॥ सर्व गाथा॥ ॥ दोहा॥ बब्बरकूलें घरोघरे, जोयुं ते जिनदास ॥ पण ते नमया सुंदरी, नावी मूळ तलास ॥१॥ सूरिजन आगल हुँ खरो, केम थाईश हेव ॥ उरग डर्बु दरीनो हां, न्याय मिल्यो जगदेव ॥२॥ तो पण उद्यम कीजीये, उद्यम वडो संसार ॥ विण धेनु उद्यम थकी, पय पीवे मांजार ॥३॥ ते जिनदास अहोनिशें, जोवे नगरागार ॥ हवे श्रोताजन सांजलों, नमयानो अधिकार ॥ ४ ॥ जे दिन नमयानो पिता, चाल्यो श्रापण देश ॥ ते दिनथी हर्षित थई, ग णिका चित्त विशेष ॥ ५॥ अति धूतारी ने हारि णी, चिंते चित्तमकार ॥ मुझ आयत्तें ए निश्चे, हुश् हवे ए नार ॥ ६॥ . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥ ढाल चालीशमी॥ वीण मा वाशरे, विठल वारुं तुजने ॥ ए देशी॥ पेखो निगुणीरे केहदूं कहेजे गणिका ॥ गंजारो जघाडी काढी, बाहिर नमया वणिका ॥ पे० ॥ ए आंकणी ॥ हियडाथी गाढी आलिंगी, सिंहासन बे साडी, हारिणीए नमयानी आगल, कारमि माया देखाडी ॥ पे ॥२॥ ताहरे तातें माहरे मंदिर, पुत्री तुजने वेची ॥ ते तुजने कांई न जणाव्यु, जनक वडो तुज पेची ॥ पे० ॥३॥ रे पुत्री तुं जोय विचारी, तात संबंध तें दीगे ॥ रे जोली एणे संसारे, स्वारथ सहुने मीठगे ॥ पे ॥४॥ तुज सरखी पुत्री वेचंतां, एहनुं मन केम चाट्युं ॥ अमे दयानु परोपकारी, मुह माग्युं धन पाट्यु ॥ पे० ॥५॥ देख लूञ्चार ताहरा तातनी, नाम न पूर्व फेरी ॥ तातें कीचूं जहे, तुझ्ने, तहेवू न करे वैरी ॥६॥ एहेवो कुण जे वेचे परघर, जे आपणडां बोरु ॥ मायायें नवि बोडे अलगां,वाबरु आंने ढोरु ॥ पे० ॥७॥ श्रमें तो तेहने घणुंए वास्यो, पण तेणे न कयुं वायुं ॥ ताहरे तातें धनने अरथें, कीबूं अति अविचारयुं ॥ पे० ॥ ॥ निज बालक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) प्रतिपालवा माटें, हरणी सिंहथी घाये ॥ तेहथी पण तुझ तात नीपावट, घणुंय को शुं थाये ॥ पे० ॥ ए ॥ एतो नळु जे माहरे मंदिर, वेची मद जर माती॥ जो बीजे वेचत तो ताहरी,कहे ने शी गति थाती ॥ पे० ॥ १०॥ एहवं जरुर पड्युं हतुं केवं, जे तुफ वेची तातें ॥ हुँतो राखीश पुत्री करीने, माहरे तो श्राव्युं धातें ॥ पे० ॥ ११ ॥ तुं मूक पुत्री हुँ तुऊ माता, ए सघळु दे ताहरूं ॥ तुं माहरें हुं हुं ताहरे, एहवं मन बे महारु ॥ पे० ॥ ॥ १२ ॥ माहरे तूफ उपरें नथी कोई, तुं घरनी ठकुराणी ॥ जे तुं देश ते डं लेश्श, में एकतारी आणी ॥ पे ॥ १३॥ प्राण तणी परें तुऊने राखीश, दोहिली न करूं क्यारें ॥ साकर घोली दूध ज्युं पा इश, पाणी मागीश ज्यारे॥ पे० ॥ १४ ॥ हथेलीनी यामाहे, अहोनिश राखीश तुमने ॥जे कोश् वातें दुःख तुं पामे, देजे उलंना मुझने ॥ पे० ॥ १५ ॥ दा सीयो ताहरी खिजमत करशे, हुकम हुकममें रहेशे॥ जे तुं कहीश ते निर्वहेशे सघर्बु, ताहरु खुंथु ख मशे॥ पे० ॥ १६ ॥ हुं पण बुं राजा सरखी, रखे कां प्रीती बीजी ॥ मुफ पुत्री जाणीने तुमने, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) सहुको करशे जीजी ॥ पे० ॥ १७ ॥ जोडं तुऊथी अंतर राखू, तो परमेश्वर साखी ॥ ए चालीशमी ढाल सनूरी, मोहन विजयें नांखी ॥०॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ __वचन सुणी गणिकातणां, नमया थइ निसनेह ॥ चित्तथी करे विचारणा, एम शुं कहे जे एह ॥१॥ धन शुं थोडं घरें, जे एम वेचे तात ॥ हिये उपावी एहवी, केम मनाये वात ॥२॥दासी मूकी एणीए, मूजने राखी गेह ॥ तात जणी विप्रता रियो, एहनुं कारण एह ॥३॥ अनुमानें जोतां थकां, दीसे गणिका एह ॥ मायायें करी मुज थकी, मांडे फुगे नेह ॥४॥ गणिकायें नमया जणी, लही उदासी जाम ॥ मीठे वचनें चड वडी, मुखथी बोले ताम ॥५॥ रे पुत्री चिंता तजो, हसो रमो हित आणि ॥ परिकर निकर हे पद्मिनी, पोतानो करि जाणि ॥६॥ ॥ ढाल एकतालीशमी ॥ देशी हमीरियानी ॥ कहे गणिका नमया जणी, सांजल माहरी वात ॥ सुरंगी ॥ खोटी शीकरे शो चना, चूंमी केहनो तात ॥ सु० ॥१॥ मान वचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) तुं माहरूं, जोगव्य सुंदर लोग ॥ सु० ॥ ए टाएं रखे चूकती, करीश सनेही संयोग ॥ सु० मा॥२॥ बनना कुसुमतणीपरें, जोबन एले म खोय ॥ ए श्रव सर कुण निर्गमे, एहवो ने मूरख कोय ॥ सु० ॥ मा० ॥३॥ एक जोबनने प्राणो, केतादिन विलं बाय ॥ सु० ॥ एह कपूरतणी परे, हणमें उमीजाय ॥सु॥ मा० ॥ ४ ॥ चंपक वरणी देहडी, फरी फरी किहां पामीश ॥ सु०॥ ले लाहो जोबनतो, जो बुकि दे जगदीश ॥ सु०॥ मा० ॥५॥ जोबन एद गया पबी, कहे मुजने तुं हुं करीश ॥ सु०॥ तुंतो मांखीनी परें, बेठी हाथ घसीश ॥ सु०॥ मा०॥६॥ चतुराश तुऊ जेहवी, तेहवोज पुरुष अमूल ॥सु॥ गणिकाकुल मारगतणां, कारज कस्य तु कबूल ॥सु॥ मा० ॥ ७॥ आशा अमें तुऊ ऊपरे, राखी ने मेरु समान ॥ सुम् ॥ श्राशाए इंडां अनल तणां, महोटां होवे निदान ॥ सु० ॥ मा० ॥ ॥ श्राशा प्रथम देई करी, जे तो करे निराश ॥ सु० ॥धिक धिक जीवित तेहy, जे नवि पूरे श्राश ॥ सु० ॥ मा० ॥ ॥ ए॥ जे श्रमें लीधी तुऊने, ते तो एहज माट । नाकारो जो कहिश तुं, केम पोसाशे घाट ॥ सु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२५ ) मा० ॥ १० ॥ मुखने पूर्वी जोजन करो, तनुने पू बीने पर ॥ सु० ॥ जाय तु रथमें बेसीने, बन उपवनने शहेर ॥ सु० ॥ मा० ॥ ११ ॥ तेल फूलेलने अगरजा, तेहमां रहो गरकाव ॥ सु० ॥ नवनवरंगें हसो रमो, पान सोपारी चाव ॥ सु० ॥ मा० ॥ १२ ॥ वचन सुणी गणिकातणां, बोली नमया ताम ॥ सु०॥ बाई तुमें ण बोल्यां रहो, ए तुमचं नहीं काम ॥ सु० ॥ मा० ॥ १३ ॥ हुं व्यवहारीनी पुत्रिका, तुमे तो गणिका निदान || सु०॥ ए घटतुं कां करो, कांक राखो शान ॥ सु० ॥ मा० ॥ १४ ॥ जावा यो जोलामणी, में तुऊ बाल गोपाल ॥ सु० ॥ जोजंतुं कुल साहमुं, नहितर देश गाल ॥ सु० ॥ मा० ॥ १५ ॥ वाड जो गलशे चीजडां, तो रखवा लशे कोण ॥ सु० ॥ कहिये एहवुं वरे पडे, जेवुं श्रा टे लूए ॥ सु० ॥ मा० ॥ १६ ॥ नीचे वाहनें केम च डे, जे चढिया सुंढाल ॥ सु० ॥ मोहनविजयें जल्ली कही, एकतालीशमी ढाल ॥ सु० ॥ मा० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ नमयाने गणिका कहे, पुत्री निसुष जगीश ॥ श्ररुं श्राऊं बोलतां एम केम तुं बूटीश ॥ १ ॥ जे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) केड्ये लाग्यां खरां, ते तुफ तजशे केम ॥ विगर दि लासायें अली, अमने तुं मत डेड ॥२॥ जेह पड्यु मादल गले, दैवतणुं तुंजोय ॥ विणवाये केम बूटीये, एम जांखे सहु कोय ॥३॥ जास वशे जे को पड्या, डोड्या हीज बुटाय ॥ ते जे कहे ते कीजीयें, एम कीधे शुं थाय ॥४॥अंगीकार करो तुमे, आ मंदि र श्राचार ॥ जेह कहो ते ऊगरे, मानो एह मनुहार ॥५॥ नमया तव विलखी थई, मुख मेहले निःश्वास॥ फुःखजर दाजी विरहिणी, ऐ ऐ करे विषास ॥६॥ ॥ ढाल बहेंतालीशमी॥ __घेरी घेरी पण घेरी रे, मोकुं या विरहाने घेरी॥ ए देशी ॥ घेरी घेरी पण घेरी रे, मुने ए गणिकाए घेरी॥ मु०॥ एक तो महारे कंते मुझने, वनमां की धी अनेरी॥ तास संदेशो न श्राव्यो मुझने, केणे न कह्यो फेरी रे ॥ मु० ॥ १॥ मात पिता पण दूरे रहीयां, केही विध होशे मोरीरे ॥ मु॥ नूरकी नां खी एणे जनेरी, मेरे मूकी चेरी रे॥ मु॥२॥ मे कांश दैवनी कीधी दीसे, मोटी चोरी हेरी रे ॥ सां नले कुण कहुँ हुँ केदने,माहरा मनडा केरी रे ॥मु० ॥३॥ कल्प लताशी पहेली करीने, कीधी दीसे कंथे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 229 ) रे ॥ मु०॥ नाद वियोगे हियडामांदि, खटके खरी खरेरी रे ॥ मु०॥ ४ ॥ ए गणिकाने वशे हुं यावी, निसरी न शकुं अवेरी रे ॥ मु०॥ जेहथी शील रतन रहे माहरु, केही बुद्धि अनेरी रे ॥ मु० ॥ ५ ॥ जिहां गये रहे शील सलूएं, कोण देखाडे ते शेरी रे ॥ मु० ॥ दैव श्रटारो शीयल उदालण, गणिका किदांथी उदेरी रे ॥ मु० ॥ ६ ॥ खारो जंको जीम जवो दधि, शीलता मीठी वेरी रे ॥ मु०॥ नमया विलपे जेम मृग विलपे, देखी दूर आहेरी रे ॥ मु० ॥ ७ ॥ ए तो माहरुं कथं न माने, मांगी बेठी बखेडी रे ॥ मु० ॥ जे कोइ नारी धूतारी जगमां, तेहमां एह वडेरी रे ॥ मु० ॥ ॥ ८ ॥ जांखे नमया सांजल गणिका, मुऊथी रहेजे परेरी रे ॥ तहारुं कीधुं तुहीज पामीश, श्रावीश जो तुं खारेरीरे ॥ ए ॥ शीलरतन राखवा कारण, नाखी तास नीबेरी रे ॥ मु०॥ निसूणी गणिका घणुंए कूदी, की जेवी वढेरी रे ॥ मु० ॥ १० ॥ बोली गणिका रे रे बाला, तुं शुं श्रमथी जलेरी रे ॥ मु० ॥ तुं जो बननुं फल शुं जाणे, वे तुं हजी अलेरी रे ॥ मु०॥ ॥ ११ ॥ फूल गुलाबनी शी गति जाणे, दीवी जेणे कणेरी ॥ मु० ॥ दोहिती यावे तनुचतुराइ, मूढमति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२८ ) जो घणेरी रे ॥ मु० ॥ १२ ॥ कूपक मेमक सायर केरी, जाणे शुं ते लढेरी रे ॥ मु० ॥ देव कुसुमनो स्वाद शुं जाणे, चाखी जेणें बहेरी रे ॥ मु० ॥ १३ ॥ लाग लगावी लागकवादी, मायें तुमने उबेरी रे ॥ मु० ॥ त्यारे बोले बे एम तुं त्रटकी, होये जीन ब बेरी रे ॥ मु० ॥ १४ ॥ जो जो नमया बुद्धि उपाश, राखशे शील कंपी रे ॥ मु० ॥ मोहन विजयें ढा ल नोपम, बर्हेतालीशमी जंपी रे ॥ मु० ॥ १५ ॥ ॥ दोहा ॥ is मया गणिका जणी, म म कर झूठी बात ॥ तु वचन केम जंपियें, केम करीयें परतात ॥ १ ॥ तें ताहरां कीधां करम, जोगव्य तुं मतिमंद ॥ पण बीजाने शावती, पाडे एहवे फंद ॥ २ ॥ तीन पंचासां ताहरे, जीववुं दीसे तुद्य ॥ दीये बे जे कारणे, ए शी खामण मुद्य ॥३॥ वरसे शशी अंगारडा, पयोधि बांके मर्याद ॥ नासे सिंह शियालथी, सुधा निवारे स्वाद ॥ ४ ॥ जो ते सघलां नीपजे, ते सांजल अवली | परनरथी परवश हुई, सतियो न मूके शील ॥५॥ ते माटे तुमने किशुं, कहुं घणुं हित लाय ॥ तुं रहेजे इत थकी, जांखुं गोद बिछाय ॥ ६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) ॥ ढाल तालीशमी ॥ हुं तु वारुं कान जावा दे ॥ देश ॥ हुं तु वारुं गणिका जावा दे, माहरो सनेही वादलो रह्यो बे दूर रे ॥ मूक मारो केडलोने, रही बुं हजूर रे ॥ मुने जावा दे || हुं० ॥ कां नवि जाणे मूंडी, कारिमो संसाररे, रे रे तुं दाऊलाने कां दीये खार ॥ मू० ॥ हुं० ॥ १ ॥ जेहने सुहायें तेहने जांखीयें एह रे, सूणी हवी वातडीने कंपेबे देह ॥ मू० ॥ गणिकायें विचार एतो सीधी न विजोय रे, एहने देखाडुं जीति तो वश होय ॥ मू० ॥ हुं० ॥ २ ॥ जांडनी जेंस मांगे प्रासु तेह रे, तिलने पीव्याविना नव ये सनेह || मू० ॥ सीधी गलीए क्यारें, नवि नीकले क्षीर रे ॥ sai को बोडावा वे बे जीर ॥ मू० ॥ हुँ० ॥ ॥ ३ ॥ मादरे व प्रावी तें किहां जाय रे, एक वार पूढं एहने वातडी बनाय || मू० ॥ पेट पलुंसी शाने शूल उपाय रे ॥ कडुळं महोरुं जोतुं यतिमथ्युं थाय रे ॥ ० ॥ ० ॥ ४ ॥ जी जी करतां तुंतो थायबे शेर रे, कां हर एवडो तुंता बे फेर ॥ ० ॥ नहिंतो हुंए तुने चाबकानी ठगेर रे, घाली एपी कोटडीमां कूटी श जोर ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ५ ॥ एहवे गणिकानी कूखें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३० ) उपन्युं शूल रे, जीवडलो मोंघो हूर्ज तस प्रतिकूल ॥ मू० ॥ शील सुरंगा केरो महिमा जगमांय रे, शील सखाइ तेहने केम दुःख थाय ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ६॥ गणिका तो पहोंती तिहांथकी कोइक गतिमांय रे, जे जे करे बे तेहने शी गति थाय ॥ ० ॥ उत्जी या लोचे नमया सुंदरी ताम रे, थोडेशे देतें ए तेणें श्यां कस्यां काम ॥ ० ॥ हुं० ॥ ७ ॥ जगमां जीव्यानो जनने एह विश्वास रे, मांडीने बेसे बे एवी झूठी जूठी आश, ॥ मू० ॥ दवणां ए बैठी हूंती होयने नाथरे, पण को सनेही एहने नवि दुई साथ ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ७ ॥ ऐ ऐ केहवो बे एहवो जूठो संसार रे, मूकीने जोवंता गइ एहवां आगार ॥ मू० ॥ जूठानो जरुंसो एतो केटलो करायरे, साचा रेसनेही मोटा खोटा हूया जाय ॥ मू० ॥ हुंगाणा एहवी जूरेबे उनी नर्मदा नारी रे, गणिकानो रा जाने पहोतो संदेशो तेवार ॥ मू०॥ राजाए विचाखुं veg गणिकाकेरो माल रे, आव्यो बे अजाण्यो हाथ धातुं निहाल ॥ मू० ॥ हुं० ॥ १० ॥ जग मां जीव्यानो महोटो नेहो निर्धार रे, नहीं तो निःस्नेही सहूको क्षीणके मकार ॥ मू० ॥ सेवकने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) संप्रेष्या नूपें गणिकाने आगार रे॥ श्राव्या ते दोडता तिहां न कस्यो विचार ॥ मू ॥ ॥११॥ धसमसता पेठा ते जेहवे गेह मकारी रे, तेहवे तिहां दीठी नयणे नर्मदानारी ॥ मू॥ पडि श्रा लोचें नोला तस देखी देह रे ॥ सहुको विचारे कुंण अंगना एह ॥मूहुं॥१॥ हारिणीय दासी सुरंगी, एहवी राखी श्रागार रे, जश्ने राजाने क हीयें, एहनो तेह विचार रे ॥ मू॥ सेवक तो सह कोय पाना आव्या दरबार रे, राजाने पयंपे एहवं करी मनुहार ॥ मूहुं॥१३॥ हारिणी जे गणिका ते तो, पोहती परलोक रे ॥ पण केम लीजें एहनी, मायानो संजोग ॥॥ एहने श्रावासें एहथी रूडी एक नारी रे, दीसे बे अमीणे जाणे राख्यो एणे नार ॥ मू० ॥ हुं० ॥ १४ ॥ एहने जो नयणे देखो, आवे तव दाय रे ॥ बीजीतो तारीफी एहनी, केटली कराय ॥ मू॥ जांखी सुरंगी चंगी, तालीशमी ढाल रे ॥ मोहनना कह्याथी वातो, लागे जे रसाल ॥ मू ॥ हुं० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥दोहा॥ - कहे नूपति निज सचिवने, जे गणिकाने गेह ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) सुंदर बे एहवी त्रिया, तेडी श्राणो तेह ॥ १ ॥ हा रिणी सरसी जोइ ए, तो ते तेहने वाम ॥ आपण तेहने राखियें, दीजे बत्री काम ||२|| सजिव नृपति यादेशथी, आव्यो गणिका गेह || दीठी नमया सुंदरी, मनोहर गौरी देह ॥ ३ ॥ कहे सचिव न मया जणी, रे सुकुलिपी नार ॥ तूठो परिपूरण खरो, तुम ऊपर किरतार ॥ ४ ॥ बब्बरकूल नरेश नी, कस्य उलग मनरंग ॥ प्राणतणीपरें राखशे, रहेजो सदा अनुषंग ॥ ५ ॥ धण कण कंचन वसन गृह, गणिकाने गेह ॥ ते सवि तुमने सोंपशे, मान्य वचन मुऊ एह ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चुम्मालीशमी ॥ काली ने पीली वादली ॥ ए देशी ॥ नमया स चिव कह्या थकी साजनां, शोचे चित्त मऊा र ॥ वि षयातुर राजा थयो साजनां, ऐ ऐ सरजणहार ॥ जोजो रे हवे नारी चरित्र, करशे नमया नार ॥१॥ ए यांकणी ॥ नृप पासें लेइ जाशे ॥ सा० ॥ मंत्री वीश वा वीश ॥ राजा मुजने प्रार्थशे ॥ सा० ॥ त्यारें हुं शुं करीश ॥ जो० ॥ २ ॥ श्यो जोरो बलातणो ॥ सा०॥ शील हुं राखीश केम ॥ परवश पडीयां मानवी ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) सा॥ कुण विध राखे नेम ॥ जो ॥३॥श्रणबोली नमया रही। सा॥ नांखे हो मंत्री ताम ॥ रे गुण वंती गोरडी ॥ सा०॥ केम एम बेठी श्राम ॥जो ॥४॥ बेसो एणे सुखासने॥ सा ॥ खोटा म करो विचार ॥ राजाने श्रावी मलो ॥साारहो अह निश दरबार ॥जो॥५॥ अति हठ ताणी मंत्रीए॥सा॥ ततदण नमया नार, बेगडी ऊपाडीने ॥सा॥ सुंदर रथह मकार ॥ जो॥६॥ परवश ए नमया पडी ॥ सा॥ अतिही धरे मन लाज, जाणीयें पंजरमां प ड्यो । सा॥ वनवासी मृगराज ॥जो॥७॥पर म मंत्र मनमें गणे, चौद पूरवनो जे सार ॥ रथ बेठी आवी सती, एहवे चहटा मकार ॥ जो॥॥ त व तिहां शीलने राखवा ॥सा०॥ नमयायें कीधोवि चार ॥ जो बल शहां को करूं ॥सा॥ तो रहे शील उदार ॥ जोगाए॥ दोहा॥ बुद्धि शरीरां नीपजे, जो उपजे ततकाल ॥ वानर वाघ विलोवियो, एकलडे शीयाल ॥जो॥ १०॥ बुद्धिथकी मंत्रीश्वरे ॥ सा ॥ जोलव्यो यद जमाल ॥ बुछि हरी कपि रोलिया ॥ सा॥ एकलडे शीयाल ॥ जो॥११॥नमया राख ण शीलने ॥ सा॥ मंत्रीने विप्रतार ॥ रथहुंती कूदी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) पडी, परवरि खाल मकार ॥ जो ॥१२॥ कादवथी तनु लीपीयु ॥ सा ॥ देखे लोक समद ॥ जाणीने घहेली थश् ॥ सा॥ जाणे वलग्यो यद ॥ जो ॥१३॥ चीर पटोली कंचुकी ॥ सा॥ कीधां ते खंडो खंड ॥ जाणीने कांश्क कहे॥ सा॥ मुखथी करे आ कंद ॥ जो ॥ १४ ॥बीहाडे लोकोजणी ॥ सा ॥ बू टा केश कराल ॥क्षिण इसे दिणके रुवे ॥ सा॥ क्षणके विलोके खाल ॥ जो ॥१५॥ एम असमं जस देखीने ॥सा॥ मंत्री विनवे नूपाल, स्वामीजी ते सुंदरी॥साथ दीसे ले कराल ॥ जो॥१६॥ रूप अनोपम ने घj ॥ सा ॥पण तस परवश देह, ते केमही साजी हुवे ॥ सा ॥ तो बहु उपजे स नेह ॥ जो ॥ १७ ॥ मंत्री वचन सूणी करी ॥सान ॥ आलोचे महीपाल, मोहन विजयें वर्णवी ॥ सा० ॥ चुम्मालीशमी ढाल ॥ जो ॥१७॥ सर्व गाथा ॥ ॥दोहा॥ महीराज मंत्री जणी, कहे सांजव्य मुज वेण ॥ नारीने साजी करे, एहवो कोश बे सेण ॥१॥ नूपें पडह वजावियो, बब्बरकूल मकार ॥ जे नमया साजी करे, ते लहे लाख दीनार ॥॥ एहवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) केणे ब्राह्मणे, पडह बव्यो तेणीवार ॥ एहने ढुं सा जी करुं, एहमे किस्यो विचार ॥३॥ नृप सेवक ब्रा ह्मण नणी, आण्यो राजा पास ॥ महाराज ते ना रीने, तेडावो आवास ॥३॥ नृपें अनुचर तेडवा, मूक्या तास तिवार ॥ पकडीने दरबारमां, आणी नमया नार ॥५॥ एक अलोधी उरडी, बेसाडी तिण मांहि ॥ श्राव्यो ब्राह्मण मंत्रवी, नमया पास सोत्साहि ॥६॥ दूर विसा लोकने, ब्राह्मण पूरी छार ॥ नमयाने साजी करे, जोजो मूढ गमार ॥७॥ ॥ ढाल पिस्तालीशमी ॥ ___ साहेबा मोतीडोने हमारो जीवनां मोती० ॥ ए देशी ॥ ब्राह्मण नोलो नेद न लेहेवे, नमया श्रा गल धूप उखेवे ॥ नर्मदा नवरंगी, सलूणी शील सुप्रसंगी ॥ मंत्र नणीने ऊजणी नाखे, सती शि रोमणि सर्वे सांखे ॥ नर्मदा नवरंगी ॥१॥ सुंदरी जाणे ब्राह्मण नोलो, फोकट श्यो मांड्यो बे एरोलो ॥न॥ जेम जेम ब्राह्मण जंजे दूणे, तेम तेम सा उत्त मांग धधूणे ॥न॥२॥ एहवे नमया बुधि उपावे, काढीदंत ब्राह्मण पर धावे॥न॥ बीहीनो वाडव ऊठी जाग्यो, काश्क पहेगुं कांश्क नागो ॥न॥३॥धार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) उघाडी ब्राह्मण दोड्यो, जाणीये वालीथी रेवत बोड्यो ॥ न ॥ गलें मंत्रवी पूंठल नमया, चहु टा लगे एम करतां तेसुं गया ॥ न० ॥ ४ ॥ लोकें तेह ब्राह्मण जगास्यो, जूर्व मंत्रवादीए मंत्र हका स्यो ॥ न० ॥ नमया जिन गुण कंठे गाये, जाणीयें सुकंठे कोश्क मोरली वायें ॥ ५॥ बब्बर चहटे न मे थ धीठी, एहवे जिनदासें ते दीठी ॥ न० ॥ पुरजन अलगा करीने पूबे, कहे सुंदरी कारण एह शुंडे ॥ न ॥ ६॥ जिनना गुण तुं गाय के रूडी, तो केम एम पुरमें जमे लूंगी ॥न॥ बाहेर एहवी अंतर माहि, तो एम लोक कां मूक्यां वाही ॥न॥ ७॥ दीसे श्रावक कुलनी जा, साच कहो मुफ श्रा गल बा ॥न॥ जे कोण तुं पुत्री के केहनी, जाणुंटुं हुं तुंबे रे जेहनी ॥ न०॥॥ हुं पण श्रावक बुं सू ण बहेनी, मूज आगल तु साचुं कहेनी ॥ न०॥ कहे नमया हलूए शुं फेरी, ए शी वेला पूज्या केरी ॥ न॥ए॥ जो तु साचो जिननो पंति,तो मुफ पून जे कहेशं एकति ॥न०॥ जे अवसर प्री ते माह्यो, जे नवि जाणे ते फोकट वाह्यो॥न ॥ १० ॥ तव जिनदास बानो थर रहीयो, नमया नेद न कोश्ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) कहियो ॥ नमया पूंठ नमे निशदीहे, पण नवि बोलावे करि जी ॥ ११ ॥ नमया जमे पुरमांहे एकाकी, जाणीये परम महारस बाकी ॥ न० ॥ रा जा के उपाय करावे, पण नमयाने लेखे नावे ॥ न० ॥ १२ ॥ आणत मूकने कोण गवाडे, जाणीने घे तेने कोण जगाडे ॥ न० ॥ एहवे कौमुदी म होत्सव यावे, पुर जन सघला वनमां जावे ॥०॥ १३ ॥ नमया पण जिनवरने गेहें, ऊभी स्तुति करे पूरण नेहें || न० पूंवले पण जिनदास आव्यो, नम याथी धर्म सनेह उपाव्यो ॥०॥ १४ ॥ नमया श्राघुं पाहुं जोइ, जिनदास हूंती वातें हूइ ॥ न० ॥ हुं वर्धमान नयरनी वासी, माहरो जनक सहदेव वि सासी ॥ न० ॥ १५ ॥ परणी मूजने सकोगे नाहे, पण ते मूकी गयो वनमांदे ॥ न० ॥ तिहां मुज तात मल्यो जाणी, तिहांथी इहां इण पुरमांदे आणी ॥०॥ १६ ॥ उलवी गणिकाए मूजने राखी, राख्युं शील एम करी सुसाखी ॥०॥ पिस्तालीशमी ढाल सवाइ, सुंदर मोहन विजयें गाइ ॥ न० ॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ नमयाने जिनदास कहे, हुं पण जाखुं सच्च ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) पुत्री हुँ जिनदास अर्बु, नयर जिहां नरुअञ्च ॥१॥ ताहरे तातें मूजने, कही तहारी सवि वात ॥ हुं बु नेही तेहनो, मध्यंतर विख्यात ॥२॥तुऊने जोवा कारणे, हुं शहां आव्यो एम ॥ में पण तुज राखी गुप्त करी, कहो प्रगट हुश् केम ॥३॥ हवे तुं मु जने मली, न धरिश केहनी बीक ॥ तुं मत जाणे एकली, तुंडे मूज नजीक ॥४॥ तुंडे पुत्री मुज तणी, मुजथी म करीश लाज ॥ जेम तेम करी संगे करिश, जो करशे जिनराज ॥५॥ एम कही जिनदास ते, आव्यो तुरत वखार ॥ दाम सयल गांठे करी, वाहण कस्यां तैयार ॥६॥ ॥ढाल तालीशमी॥ । जांजरीया मुनिवरनी देशी ॥ राजायें तव सांज ट्यु जी, प्रवहण सजे जिनदास ॥ सेवक मूकी तेह ने जी, तेडाव्यो निज पास ॥१॥ गुणमणि गोरडी नमया सुंदरी नारी, ए आंकापी ॥ कहे जिनदास नरेसरने जी, फरमावो महाराज ॥ केम मुजने ते डावियो जी, सेवक मूकी आज ॥ गु० ॥२॥ कहे नृप कारज माहाँ जी, सांजली करजे तुं एक ॥ इहां एक नमया सुंदरी जी, ते अति ने निर्विवेक ॥गुणा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) ॥ ३ ॥ चौहटे गलीयें चाचरें जी, ते अति करे तो फान || बीहाडी बीहती नयी जी, फरती करती तोफान ॥ गु० ॥ ४ ॥ नयर क इस नारीयें जी, वानर वनह समान ॥ कोइ श्राडो नवि उतरे जी, ए नमो तान || To ||२|| ते माटे तुमे एहने जी, घाली पोतमकार ॥ कोइ परदेशे मूकजो जी, साप परें निरधार || गुं० ॥ ६ ॥ बे परदेशी प्राहु णी जी, थइ वली एहवे वेश ॥ एहनी कुंए करे चाकरी जी, लेइ चालो परदेश | गु० ॥ ७ ॥ कहे जिनदास इसी करी जी, वारु जी महाराज ॥ परवश नमया नारीने जी, प्रवहण ठावुं आज ॥ गु० ॥८॥ करी प्रणाम नररायने जी, ऊठ्यो ते जिनदास ॥ धसमसतो हेजे जरयो जी, आव्यो नर्मदा पास ॥ ॥ एए ॥ ऊव्य पुत्री मुंऊ प्रवहणे जी, आवी बेसो देव ॥ नमया निसुणी दोडती जी, जइ बेठी तत खेव ॥ ० ॥ १० ॥ नवरावी नमया जणी जी, प्रग ट्युं रुप यत् ॥ जेम कचरो धोया पढी जी, ऊलहले जेवुं रत्न ॥ ० ॥ ११ ॥ बेसाडी महोत्सवें जी, पेहराव्या शणगार ॥ मुंहगा जांड तणी परें जी, राखी तेणीवार ॥ १२ ॥ प्रवहण ताम हंकारियांजी, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) सयल मनोरथ सिझ ॥ नर्मदापुरवर आवीयां जी, जीतना जंगी दीध ॥ गु० ॥ १३ ॥ उतस्यां प्रवहण थकी जी, नमयाने ससनेह ॥ अति उत्सव आडं बरे जी, आणी तातने गेह ॥ गु० ॥ १४ ॥ नमया देखी तातने जी, उलटियो उरंग ॥ सयल कुटु म्बतणां तिहांजी, हरख्यां अंगोअंग ॥ गुं० ॥१५॥ हेज तणां आंसु फरे जी, अमीये उठ्या मेह ॥ न मया आनंदशुं वसे जी, निज माताने गेह ॥ गु०॥ ॥१६॥ हसे रमे क्रीडा करे जी, टाल्यो फुःख जं. जाल ॥ मोहनविजयें वर्णवीजी, बेंतालीशमी ढाल ॥ गु० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ नमया तात जणी तिहां, सोंपीने जिनदास ॥ चाल्यो तिहांथी अनुक्रमे, श्राव्यो निज श्रावास ॥ ॥१॥नमया ताततणे घरे, रहें सदा मनरंग ॥स हीशु क्रीडा करे, निर्विकार निःशंक ॥ साधु अवज्ञाथी श्णे, केतां सहियां फुःख ॥ पण एक शी ल सहायथी, पुण्ये पामी सुख ॥३॥ तात कहे नमया नणी, रे पुत्री तुज कंत ॥ कहेतो तेडा, श्हां, मूकीने उदंत ॥४॥ पीयु गुण संजारे सती, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) रही अणवोली ताम ॥ तात सुता मन राखवा, नीपाव्युं जिनधाम ॥५॥ अति उत्तम उन्नत सुनग, जिन मूर्ति तस मध ॥नमया नित्य पूजा रचे, वा जा गाजां सब ॥६॥ ॥ ढाल सुडतालीशमी ॥ - कानुडो तो वेण वजावें कालिंदीने कांठे ॥ ए देशी ॥ वर्धमानपुर परिसरमांहि, एहवे सद्गुरु आव्या ॥ पंचाचार विचारे पूरा, सहुकोने मनना व्या ॥१॥ नमया तात कुटुंब संघातें, गुरु चरणां बुज नेट्यां ॥ जेहना दरिसण दीठा हूंती, जव नव पातक मेट्यां, ॥२॥ धर्माशीष सूरीश्वर नांखे, सहुको श्रागल बेगं ॥ गुरु उपदेश तणा मंदिरमां, जवियण हेते पेगं ॥३॥ धर्मोद्यम कीजे रे प्राणी, सुणीए जिनवर वाणी ॥ अमिय समाण। सङ्गुरु शिक्षा, धारीजें हित श्राणी ॥४॥ जाणे ए जीव बिचारो, डे सघबुंए मोरं ॥ पण अत्यंतर निरखी जोतां, शुं देखे जे तोरं ॥ ५॥ तात जातने मात सुता पति, डे विपरीत सगा॥ पण अंतर मेही मदमातो, तेणे रह्यो लयला॥६॥ पोतानोकरी गणीये जेहने, ते होवे साहमो वेरी ॥ संसार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४२ ) तणी गति एहवी, वली गति कर्मह केरी ॥ ७ ॥ काची काच घटी समकाया, कूडी शी तस माया ॥ पंथी परं विसामो जगमें, कुण दुर्बल कुण राया ॥ ॥ ८ ॥ बे संसार विचारी जोतां, बाजीगरनी बाजी क्षणभंगुर नित्य पदारथ, तो पण होवे राजी॥ए॥ जेम वंध्याए सुहणे दीठो, जाणे सुत मुज आयो ॥ दीधुं नाम विश्वंजर एहनुं, हालरुए हुलरायो ॥ १० जव सा जागी रोवा लागी, किहां गयो में दीगे ॥ ते जेम खोटुं तेम जग खोटो, पण विषया रस मीठो ॥ ११ ॥ इंद्र जाल विद्या रमनारा, रवि सेवक थर जूजे ॥ अंगकरंग घणाघण वीरुथा, जाए तो साधुं बूजे ॥ १२ ॥ नारी पति साथै पावकमां, पेसी वली सती थाये ॥ ए कूडुं तो नहीं केम साचुं, करीने कोथी गायें ॥ १३ ॥ पाणीना पर्पोटा जेहवी, जेम पाणी मांहे पतासो ॥ जेम काचो घट नीरें न रियो, तेवो देह तमासो ॥ १४ ॥ समकित विए ए जीव बिचारो, दोडे बे हा ढुंतो ॥ एणे एकेही नवि मूक्यो, एके ठाम तो ॥ १५ ॥ करशे धर्म ते सुखियां थाशे, दीधो एम उपदेश || रोमांचिंत सवि पर्षद हूई, थयो समकित उपवेश ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४३ ) नमया श्रति हरखी हश्यामां, निसूणी वयण रसा ल ॥ मोहन विजयें रूडी नांखी, सुडतालीशमी ढाल ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ नमया तात ति समे, कर जोडी कहे एम ॥ मुक पुत्री नमया सती, थइ वियोगिणी केम ॥ १ ॥ पूरवजव एणें किस्यां कीधां कर्म अघोर ॥ जे एम इहां तहां रडवडी, गुंगी बूटे दोर ॥ पाठांतरे गिरि वन गुहिर कठोर ॥२॥ गुरु कहे देवाणुप्रिय, सांजलो कहुं विरतंत ॥ तु पुत्री बे महासती, गुण एहना नं ॥ ३ ॥ कां कर्म न बूटीयें, विणनोग व्ये कहाय, पूरव जव नमया तणो, सांगलजो हित लाय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल अडतालीशमी ॥ वाधाराजा वनरी ॥ ए देशी ॥ गिरि वैताढ्य प चास जोयणनो, पोहलो तेह प्रमाण्यो हे ॥ ससनेही नमया पूरव जव उपदेशे, तेम उंचो पण वीश जोय नो, गम मांहि वखायो हे ॥ ससनेही० ॥ १ ॥ तास शिखरथी नर्मदा तटिनी, पसरी एह जलपूरी हे ॥ स० ॥ सायरपूर जली अवगणती, विमल कम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) ले ससनूरी हे स॥२॥ए तटिनीनी हुती अधि ष्ठाता, नर्मदानामे देवी हे ॥ स ॥ रूडे रूपें रमऊ म करती, कुसुम कुटुम्बे सुसेवी हे ॥ स ॥३॥ एकदा नर्मदा नदी उपकंठे, धर्मरुचि मुनिराया हे ॥ स० ॥ निर्मल मन मुनिरह्या काउसग्गे, कोमल कमल ज्यू काया हे ॥ स ॥४॥ लागे ताप तपननो तातो, बूटे अति परसेवो हे ॥स॥ एणीपरें वैराग्य दशायें, चाखे तपनो मेवो हे स॥५॥ ऊलो व्याई ध्याननी ताली, नासायें दृग स्थापी हे ॥सा मुनि सादात्पणे प्रतिनासे, उपशम रसना व्यापी हे ॥ स॥६॥ नर्मदा देवीये मुनिने दीगे, देखी रोष न राणी हे ॥ स ॥ चिंते माहरा तटने कंठे, कुण ए कुत्सित प्राणी हे ॥ स० ॥ ७॥ महेली काया वली मेले कपडे, मुफ तटिनी अजडावे दे ॥स ॥ एहने वेहवराईं वहेतां जलमां, दील मेचुरीसावी हे॥ स० ॥ ७॥ मुनिने दोजवा देवी विरचे, वाघ सिंह विकराल हे ॥ स० ॥ करी जंजा पुत्र उबाली, ते साहमी ये फाल हे ॥ स०॥ ए॥ थक्ष गज शुमा दं मे ग्रहीने, मुनिने उंचो उबाले हे॥ स ॥ पण मुनि अचल महाचलनी परें, ध्यानश्री मन नवि टाले दे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४५ ) ॥ स० ॥ १० ॥ तव सा देवी मुनि मुख देखी, चिंते केम नवि कंपे हे ॥ स०॥ एम पराजविये बे तो पण, कडवुं वयण न जंपे हे ॥ स० ॥ ११ ॥ धन्य धन्य एहने ए हवी धीरता, सा पूढे कर जोडी हे ॥ स०॥ कुंण तुं खा मी इहां केम ऊजो, कहो मुनि धामलो बोडी हे ॥ स० ॥ १२ ॥ कहे मुनि में साधु जिणंदना, पंच म हाव्रतधारी हे ॥ स० ॥ ध्यान धरी ऊना बुं सुंदर, निरखी भूमिका सारी हे ॥ १३ ॥ देवी कहे हो साहु शिरोमणि, खमजो मुक अपराध हे ॥ स० ॥ में तुमने एहवा नवि जाण्या, अबुद्धि जेम अगाध हे ॥ स० ॥ १४ ॥ मुनि कहे अमने क्रोध न होवे, खंति तपाहुं अयासी हे ॥ स० ॥ एश्ये लेशे सां जल्युं नरगें, जे जीव सहे नरगावासी दे ॥ स० ॥ १५ ॥ नेही निस्नेही बिहु बे सरीखा में लेखवी यें एम हे ॥ स० ॥ जे जेवुं करशे तेहवं ते लदेशे, प मे को केम हे ॥ स० ॥ १६ ॥ नमया देवी सु प्रसन्न यइने, सांजली वचन रसाल हे ॥ स० ॥ मो इन विजयें मीठी जांखी, अडताशमी ढाल दे ॥ स० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) ॥ दोहा ॥ नमया देवी यागले, कहे तपोधन ताम ॥ प्रा णीने नवि पीडीयें, अहो सूरि विण काम ॥ १ ॥ दया सुधा कुंमी छाडे, जगमांहि निःशंक ॥ तिहां म जान करतां मिटे, कल्मष तणुं कलंक ॥ २ ॥ काम डुघा सम ए दया, इछित सुख दातार ॥ सकल ध र्म सरी, जांखे जगदाधार ॥ ३ ॥ दया विद्रणा बापडा, चन गर मांहे जमंत ॥ दया धारि शिव नारिथी, अहो निशि लील करंत ॥ ४ ॥ जे निर्दय निठुर निगुण, ते केम लहेशे ठाण ॥ केम जलथी यावे तरी, अति ऊंचो पाषाण ॥ ५ ॥ सदयी जे वि नीचे गई, पामे पण शिव होय ॥ नारें बूडे तुंबिका, पण यावे तरि सोय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल उगणपचासमी ॥ मागे महिडारो दांण, धूतारडो मागे महिडारो दांग ॥ ए देशी ॥ सुंदर दे उपदेश, रे मुनीश्वर सुंदर दे उपदेश || सुललित मीठी वाणी रे, जयं कर टालें डुरित कलेश || जीव सयलनो सारिखो रे, कीडी तेम मातंग ॥ थोडे घणें पुदगलें थयुं, इहां नाहनुं मोटुं अंग रे ॥ सुं० ॥ १ ॥ श्रालया For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) ढुंती उरडे रे, उरडाहूंती गेह ॥ इयत्तावछिन्न श्र जुश्रालडूं, पण दीपक तेहनो तेह ॥सुं॥२॥पूरा ए सहेजें गले रे, एतो पुजल धर्म ॥ पण जो ह पीए हाथथी, ते तो बांधे निकाचित कर्म रे ॥ सुं० ॥३॥ जोगद बिहु इंजीतणा, एम नांखे जि नराय ॥ अव्ये जिया, नावेंडिया, वली अव्यथी नेद बे थाय रे ॥ सुं ॥ ४॥ जावेंछिया बे नेद थी, लब्धि तथा उपयोग ॥ लब्धि कहीये तेहने, जे होये याचरण वियोग रे ॥ सुं० ॥ ५ ॥ उपयो गथी जावेंडिया रे, एगंदिया दिक जीव ॥ पंच विषय तज्ञतपणे, ते अनुजवे अतुल आ जीव रे ॥सुं॥६॥ जेम कन्या नूषण सजी रे, तुरग प्रति आरूढ ॥ वदन जरी तांबूलथी, सा संचरी होय अमूढ ॥ सुं० ॥ ७॥ श्रावे जिहां कूपक जस्यो रे, पारदनो द्युतिवंत ॥ तस उपकंठे ऊनी रहे, मुख मधुरो शब्द कहंत ॥ सुं० ॥ ७॥ शब्द सुणी क न्या जणी रे, अहवाने रसराय ॥ दोडे उपांग विना तिहां, एम उपयोग इंडिय कहाय रे ॥ सुं० ॥ ए॥ वली बकुलादिक वृदने रे, सिंचे गंगातोय ॥ पण मदिरा सिच्या विना, तस कुसुम कुरंब न होय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४७) सुं० ॥ १०॥ एकेंद्रिय उपयोगथी रे, जाणजो सु ख कुःख एम ॥ जास करण वधतां दूर, तेह जा णे नहिं कहो केम रे ॥ सुं० ॥ ११॥ मनमें करुणा राखियें रे, सेवीजें मुनिलोय ॥ चिंतामणि सेवीजे तो, थर्थिने सुप्रसन्न होय ॥ सुंग ॥ १५ ॥ चोथु शौच दया तणुं रे, सहु कोय पूरे साख ॥ ते माटे कहुँ बुं सूरि, मनमांहे दया तुं राख रे ॥ सुं० ॥ १३ ॥ अमे उपशम संयम धरु रे, क्रोध न करं ति लमात्र ॥ क्रोधी क्रोध करंतडां, वणसाडे प्रीतिर्नु पात्र रे ॥ सुंग ॥ १४ ॥ क्रोध शमे धरतां दमा रे, खंतें क्रोध न थाय ॥ तृण विण मंगलें जर पड्यो, पण श्राफूरडो अनि उलाय रे ॥ सुं० ॥ १५ ॥ नम या देवी मुनितणा रे, ललि ललि प्रणमे पाय ॥ श्र हो तपसी कीजें जलो, मुफ ऊपर कोय पसाय रे ॥ सुं० ॥ १६ ॥ सोंपी समकित वासना रे, देवी जणी हित लाय ॥ ढाल उंगणपच्चासमी, कही मोहन विजयें बनाय रे ॥ सुं०॥ १७॥ सर्व गाथा. ॥ ॥दोहा॥ सा देवी उपदेशथी, अतिही थक्ष प्रवीण ॥ सा धु अवज्ञाथी कहो, शुं शुं होशे प्रवीण ॥१॥दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ए ) वी साधु परानवें, निर्धन निगुण सरोग ॥ श्ह जव परजव ते लहे, वाहलातणो वियोग ॥२॥ सा धु अवज्ञा फल सुणी, कंपी सुरी अतीव ॥ पातक ए विण जोगव्यां, केम बूटशे जीव ॥३॥ सा न मया देवी चवि, मणुष लोग उपन्न ॥ नामे नमया सुंदरी, महासती धन्य धन्य ॥ ४ ॥ पूर्व कर्म थ की एणे, पाम्यो कंत वियोग ॥ विकल थई वन वन नमे, पुनरपि थई अशोग ॥ ५॥ नमया पूरव नव सुणी, थश्मूछाँगत एम ॥ दीगे पूरव जव न लो, सुगुरु जांख्यो जेम ॥६॥ ॥ ढाल पचासमी॥ . कान्हजी मेहलोने कांबली रे ॥ ए देशी ॥ नम या श्रावी मंदिरें रे, मुनिनी सुणी वाणी ॥ मनश्री मांमी विचारणा रे, जो जो कर्म कहाणी ॥१॥ हूं बलिहारी सुगुरुनी रे ॥ जेह जन दरिसण पामे, रहे अलगा संसारथी रे ॥ विषय जालने सामे ॥ ९ ॥ ॥२॥ सदन संबंधि सहोदरा रे, तेहथी खोटी शी माया ॥ स्वारथनां सहु को सगां रे, नवि को एना कहेवाया ॥ ९॥ ३॥ वाहलाहूंती वाहलोरे, तेजो माहरो न हुवो ॥ बीजो तो कोण होयशेरे, कर्मनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) गति ए जुवो ॥ हुँ ॥४॥ दावानल जेम परजले रे, एह संसार असारो ॥ अलगो रहे ते ऊगरे, नहिं तो नहिं को आरो ॥ ९॥ ५॥ एहमां जो संजम आदलं रे, खलं एह जोतानुं ॥ श्राग ब वंतें पडे रे, निकल्युं ते पोतानुं ॥ हुं ॥६॥ ता तने नमया विनवे रे, द्यो मुझने आदेश ॥ जो अनु मति होय तुम तणी रे, तो ग्रहुं मुनिनो वेश ॥ हुँ॥ ॥७॥ तृप्त थ नव जोगवी रे, नथी हुँ अणतृप्ति ॥ पामि परीक्षा सहु तणीरे, एम वचनें प्रीवती ॥ हुँ॥॥ तात कहे नमया नणी रे, श्यो अवसर ताहरो॥ जेह तुं संयम आदरें रे, मोह बांमीने मा हरो ॥ हुँ॥ ए॥ संयम ने अति दोहिलो रे, नथी खेल हांसीनो ॥ जेम बेगे मणिधर रे, जेम अ तुल खजानो ॥ हुं०॥ १० ॥ को दांते मीणने रे, दोहचणा चावे ॥ संयम वेलु कवल जिस्यो रे, नीर सो कोने चावे ॥ हुँ ॥११॥ लेवो मणि वासुकी तणो रे, जरवी श्रानथी बाथ ॥ कोपातुर मृगपति तणा रे, मुखें घालवो हाथ ॥ हुँ ॥ १२ ॥ खड्गनी धारा उपर रे, होंशे कहो कोण चाले ॥ विफरिया वनगज जणी रे, पंगू नर किम काले रे ॥ हुँ॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५१ ) ए जेम सघलुं दोहितुं रे, तेम संजम बे तेहवो ॥ बेठां बेठां उपन्यो रे, केम वैराग्य एहवो ॥ ढुंगा र भा ग्रीष्म रुतुने तावडे रे, अणुवाणे पगे फिरशो ॥ काय सुकोमल एहवी रे, केम गोचरी करशो ॥ हुं० ॥ १५ बावीश परिसह खाकरा रे, ते केम करी सदेशो ॥ जार महाव्रत पांचनो रे, केही विधें वदेशो ॥ हुं० ॥ ॥ १६ ॥ योग युक्तिनी योजना रे, योगेश्वरें तेने जाण ॥ मोहन विजयें पचासमी रे, वारु ढाल व खाणी ॥ हुं० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ र रसिया रणमंडलें, पाढा न दिये पाय ॥ नि रति संयम पालवा, हाम तेणे न घलाय ॥ १ ॥ संयम तो सुरगिरि शिखर, उंचो अपरंपार ॥ तिहांथ की जे कोइ लडथड्या, मूला जमे संसार ॥ २ ॥ मटक विरागी होयतां, संयम तो न पलाय ॥ बाजीगरना नृपतिसम, राज्य कितो निवहाय ॥३॥ संयम सो हिलो जो हुवे, तो सहु पाले एम ॥ तरुण जाव संयम पणे, संय्यम ग्रहशो केम ॥ ४ ॥ बोली नमया सुं दरी, तिलूखो परिणाम ॥ संयम लेतां वारीयें, ए नहिं उत्तम काम ॥ ५ ॥ बालक बीहाव्यो रहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) अझाने करी एम ॥ पण संयम रसलालची, वचनें बीहे केम ॥६॥ ॥ ढाल एकावनमी ॥ चंदनरी कटकी नली ॥ ए देशी ॥ संसारनां सुख दाखवी, शुं नोलावो बो तात, मनडुं हो रा ज, सुगुण संयम पर माहीं ॥ मूरखनु हित कां करो, किजे पंडित बोल ॥ म ॥ सु॥१॥रोगी कडवे औषधे, निश्चे होय नीरोग ॥म॥ पण मीठग आहारथी, केम नीरोगनो योग ॥म ॥ सु०॥ ॥२॥ कर्मतणो रोग टालवा, संयम औषध जेम॥ म० ॥ पण मीठगे नाकारडो, करमनें कहीयें केम ॥ म०॥ सु० ॥३॥ चाले जे बुद्धि पारकी, ते सम मूढ न कोय ॥म ॥ करीयें जे मन साखि थे, तो तो मनवांबित होय ॥ म० ॥ सु० ॥ ४ ॥ हुं संयम श्ररथी थर, लेश्श संयम जार ॥ म ॥ तुम वचनें चालुं हवे, तो कुण होय आधार ॥ म ॥ सु० ॥ ॥५॥ तात श्रागल नमया कहे, श्लोक अनुपम एम ॥ म० ॥ चारित्रथी राची थकी, आणी परम विवेक ॥म ॥ सु० ॥६॥ तत्त्वातत्वविचाराय, स्वैव बुद्धिादमा नृणां ॥ परोपदेशो विफलो, यथाऽ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५३ ) सौधनदत्तवत् ॥ १ ॥ पूर्वढाल ॥ तात कहे नमया जणी, ते कुंण हतो धनदत्त ॥ म० ॥ कहे मूकने समजाववा, एम कहे उत्सुत || म० ॥ सु० ॥ ७ ॥ खोटुं जाखं केम पिता, साचो बे तेह संबंध ॥ म० तात आगल नमया कहे, धनदत्तनो संबंध ॥ म० ॥ सु० ॥ ७ ॥ नयर विशाला सुंदरं, तिहां वसतो, धनंदत्त ॥ ० ॥ लबी परिगल मंदिरें, यौवन वय उन्मत्त ॥ म० ॥ सु० ॥ एए ॥ तात जरातुर तेहनो, अवयव थयो बलहीन ॥ म० ॥ उपनी मस्तक वे दना, तेणें तेह जांखे दीन ॥ म० ॥ सु० ॥ १० ॥ तेड्यो तेणे धनदत्तने, बेसाड्यो निज पास ॥ म० ॥ दुःख निवेद्यं पुत्रने, सुत सुणि करिय विखास ॥ मासु ॥ ११ ॥ तात जरातुर तरफडे, पण शाता नवि पामंत ॥ म० ॥ धनदत्त तात दुःख देखीने, गदगद कंठे कहंत ॥ म० ॥ सु० ॥ १२ ॥ रेरे तात तुमारडी, केही अवस्था एह ॥ म० ॥ जे कां‍ मन डांमें दुवे, कहो तेम करीयें तेह ॥ म० ॥ सु० ॥ ॥ १३ ॥ कांई एम दुःख जोगवो, कहो जे हू वात ॥ ० ॥ वचन सुणी धनदत्तनां, मंद खरें कड़े तात ॥ ० ॥ ० ॥ १४ ॥ रे सुत में धन मे Jain,Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) लव्यु, ते करी कूड प्रपंच ॥ म० ॥ लकी डे पापानु बंधनी, एहमां नहीं खलखंच ॥ म ॥सु ॥१५॥ में लही नवि वावरी, सातें क्षेत्र मकार ॥ म ॥ ते लडी शा कामनी, जो नवि हुवे उपगार ॥म॥ सु॥ १६ ॥ विलसी हिज लबी जली, जाणे बाल गोपाल ॥ म ॥ मोहनविजयें वर्णवी, एकावनमी ढाल ॥ म ॥ सु० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ बोदी जगं मोटकां. में ए मेच्या दाम ॥ पण ए साथे कोश्ने, नवि आया विरजाम ॥१॥ सोवन मुंगरियो करी, लोजीजने अनंत ॥ पण एक कटको हेमनो, वेश न गयो को संत ॥२॥ कूपक जलने जव्य ए, नित नित जेम ववराय ॥ तेम तेम बिहु खूटे नही, शास्त्रे एम कहाय ॥३॥ ते कारण अं गज तमे, धन जे आपणे गेह ॥ सुकृतने वासें सदा, वावरजो धरि नेह ॥ ४ ॥ जो धन वावरशो तमे, तो गति लहेशे जीव ॥ नहिं तो तुमने सांज लो, परितापीश सदैव ॥५॥ धनदत्त नाम कहे पिता, मनमां हु प्रसन्न ॥ धर्म गम तुम मेल, वा वरशुं ए धन्न ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५) ॥ ढाल बावनमी ॥ केसर वरणो हो काढी कबो माहरा लाल ॥ ए देशी ॥ सुतने वय हो जनक प्रसन्नो, माहरा लाल ॥ ते सुरलोकें हो तुरत उपन्नो || माहरालाल ॥ कांति अनोपम हो सुरपुर भूषण ॥ मा० ॥ निर्मल देही हो, नहीं को डूषण ॥ मा० ॥ १ ॥ धनदत्त हि यडे हो, ताम विचारे ॥ मा० ॥ कोई गति तातें हो, कृत स्वीकारे ॥ मा० ॥ जग स्थिति दीसे हो, अ रघटमाला ॥ मा० ॥ उपजे विणसे हो, वस्तु विशाला ॥ मा० ॥ २ ॥ पण मुऊ तातनुं हो, विण संजा ब्युं ॥ मा० ॥ दान प्रचारूं हो, कुल यजुवालुं ॥ मा० ॥ जे गयो परधर हो, फेर न यावे ॥ मा० ॥ धनदत्त मनहुं हो, एम समजावे ॥ मा० ॥ ३ ॥ यवनीत लमांहे हो, जे धन हुंतु ॥ मा० ॥ एणे बाहिर हो, कीधुं हुं तुं ॥ मा० ॥ शत्रुकारें हो, ते धन खरचे मा० ॥ उलट अधिको हो, पण नवि विरचे ॥ मा०॥ ॥ ४ ॥ साते देत्रे हो, अति धन वावे ॥ मा० ॥ पूर्ण कमाणी हो, सबल उपावे ॥ मा० ॥ तेणे ना कारो हो, मुखथी न सास्यो | मा० ॥ कृपणपणाने हो, दूर निवारयो ॥ मा० ॥ ५ ॥ वेहेंता जलधि हो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ये बेहु सरीखो ॥ मा॥ श्रावे ते कनेहो, अर्थी श्रा को ॥ मा०॥प्राप्ति जेहवी हो, तेह पामे ॥मा०॥ पण नवि वारे हो, तेबहु थामे ॥ मा०॥ ६॥ कीर्ति प्रसरी हो, धनदत्त केरी ॥ मा०॥ वाजे जगमां हो, कीर्ति नेरी ॥ मा०॥ सोखी हरखे हो, कीर्ति कसके मा० ॥ दोषी नर ते हो, देखी न शके ॥ मा० ॥७॥ विप्र महोदय हो, ऐहवे नामें ॥ मा० ॥ अति खल निवसे हो, तिण हिज गामे ॥ मा० ॥ धनहत्तसाथे हो, करी मित्राय ॥ मा०॥ वातें रीजवे हो, करी पवित्रा॥ मा० ॥ ॥ खलने मलता हो, वार न लागे ॥ मा॥ काम सस्याथी हो अलगो नागे। मा० ॥ गरल अप्ररव हो, खल निर्वासे ॥मा॥ श्रवण पहोते हो, विष प्रतिनासे ॥ ए॥ विप्र प्ररू पे हो, मित्र महारा ॥मा० ॥ अमे शुल वांडक हो, अहोनिश तहारा ॥ मा० ॥ तुक सुख सुखिया हो, पुण्य पवाडे ॥ मा० ॥ होय जो कूवे हो, आवे अ वाडे ॥ मा० ॥ १० ॥ एम धन उपरे हो, कां तुं रूठो ॥ मा० ॥ पुंठ विचारी हो, जोय अपुंगे ॥मा॥ जो धनधोरणि हो, ताहरे होशे ॥ मा० ॥ तो तुज साहमुं हो, कोहु जोशे ॥ मा० ॥ ११॥ धनविण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५७ ) मानव हो, कोडि न पावे ॥ मा० ॥ साहमा सधनी हो कोडि उपावे ॥ मा० ॥ निर्धन नरने हो, कोइ न धीरे ॥ मा० ॥ धनने खादर हो, सहु को नदी रे ॥ ॥ मा० ॥ १२ ॥ उरगकलेवरहो, कोथी होवे ॥मा०॥ पण निर्धनने हो, कोइ न जोवे ॥ मा० ॥ पुरुष वि भूषण हो धन कहेवाये ॥ मा० ॥ प्रभुता विजुता हो धनी थाये ॥ मा० ॥ १३ ॥ धन बिदु अक्षर हो, पण गुण मोटो || मा० ॥ धनवंत साचो हो, बीजो खोटो | मा०॥ प्रभु निर्द्रव्ये हो एकज पूजा ये ॥ मा० ॥ पण नर बीजो हो द्रव्य सराये ॥ मा० ॥ १४ ॥ पूरवपुण्ये हो, तुं धन पायो ॥ मा० ॥ राखी न जाणे हो, कोय ठगायो ॥ मा० ॥ देतां न कहे हो, कोइ नाकारो ॥ मा०॥ धन सहु वांबे हो, आप पियारो ॥ मा० ॥ १५ ॥ मित्र विणो हो, इम कुण कदेशे ॥ मा० ॥ रूडुं मुंडं हो, तुं निर्वदेशे ॥ मा० ॥ मारी शिक्षा हो, धनदत्त मानो ॥ मा० ॥ एम कही वाडव हो, रहियो बानो ॥मा० ॥ १६ ॥ धनदत्त मनमां हो, एम विचारे ॥ मा० ॥ दान देयंतो हो, कोइ न वारे ॥मा०॥ जांखी रूडी हो, ढाल बावनमी ॥ मा० ॥ मोहन विजयें हो, विनवत अनमी ॥ मा० ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५८ ) ॥ दोहा ॥ ए वाडव माहरो खरो, नेही इस संसार ॥ धन पण कां नथी मागतो, कहे बे हित उपगार ॥ १ ॥ एणे मुऊ साधुं कयुं हुं तो दी जंतुं दान ॥ पण धन विहूणा नर हुवे, नीरस तरण समान ॥ २ ॥ धनदत्त ब्राह्मण वचनथी, परिहयुं देवं दान | लोन दशा पसरी खरी, नीचसंगति निदान ॥ ३ ॥ संगति उ त्तम कीजीयें, तो यश्ये वरवीर ॥ परिखा जल गंगा गयुं, तो थयुं गंगानीर ॥ ४ ॥ जो जो संगति नी चथी, यापद असी मेल ॥ जो खलसंगति च्यादरे, तो निष्फल नागरवेल ॥ ५ ॥ धनदत्त धन ढगला करी, राख्या मंदिरमांहि ॥ नाकारो शीख्यो फरी, विप्र वचनथी त्यांही ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रेपनमी ॥ सासू पूढे वहु वात ॥ माला किहां वे रे, ए देशी || मूर्ख मित्रनी वातो रे, कहो कुण माने रे ॥ एक अज्ञानिनी टोली रे, करे कुण काने रे ॥ ए झांकी ॥ धनदत्त ब्राह्मणथी जरमाणो, वाहला मारा नवि मनमें शरमाणो ॥ लाज तपी तेणे वात न राखी, यशनो रत्न गमाणो रे ॥ क० ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५९) दान देयंतें वधती हुती, लछी परिगल गेहें रे, दान निवारे धनदत्त साथै, लच्छी थइ निःस्नेही रे ॥ क० ॥ २ ॥ दानें लबी होय मद माती, विण दानें कुश थाये रे ॥ जोजनथी तनु पुष्ट होय तेम, जोजन विण न चलाये रे ॥ क० ॥ ३ ॥ मणि माणिकने सोनुं रूपुं, एहथी रीशें जराणां रे ॥ श्याम वर्ण कोपें धग धगता, हुइ श्रंगार समाणा रे ॥ क० ॥ ४ ॥ जलवट थलवट केरी लछी, तिणे ग ति जलनी कीधी रे ॥ जो जो धन दत्त मूढ पणाथी, दरिद्रीने साह्य दीधी रे ॥ क० ॥ ५ ॥ सुगुण सहो दर सयल सनेही, तेणे पण हित चोखुं रे ॥ दीतुं तिहां तेणे धनदत्त द्वारें, दान विटपि विण मोखुं रे ॥ क० ॥ ६ ॥ धनदत्त निर्धनने वशे जोलो, न मतो पुरमां लाजे रे ॥ पूर्व लाज अबे धनदत्तनी, जेह करे ते बाजे रे ॥ क० ॥ ७ ॥ विप्र म होदय हवे अवसर, धन दत्त मंदिर श्राव्यो रे ॥ निर्धन दीगे तेणे नयणे, सान करी समजाव्यो रे ॥ क० ॥ ८ ॥ एह शी सूरि जन ताहरी वस्था, ए शुं देवें कीधुं रे ॥ रोहण शैल समो रय पायर, पुंज जलाली लीधो रे ॥ क० ॥ ए ॥ नेत्र For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०) सजल थ धनदत्त बोल्यो,रे रे मित्र शुं कहीये रे॥ अतरर्गतनी कहो कुण जाणे, जेह लख्यु ते सहीयें रे ॥ क० ॥ १० ॥ वाहला मित्रजी जय परदेशे; तिहां जइ उदर लरीशुं रे॥ शुं करीये कहो केहने कहीयें, मूल मजूरी करीशुंरे ॥ क० ॥ ११॥ देशे चोरी विदेशे निदा, एहवो बोल्यो उखाणो रे ॥ पण एकलडां केम सुहाये, हियडे विचारी जाणोरे॥ कम् ॥ १२ ॥ विप्र कहे सुण धनदत्त नाई, एक लडो केम बोडु रे, जो कांश काम पडे जो ताहरे, शीषसहित तनु श्रोडुं रे ॥ क०॥ १३ ॥ पण तुं मा हरा कथनमा रहेजे, धनदत्त कहे पण वारुरे ॥ ते बेहु चाल्या परदेशे, पेट जरा सारु रे ॥ कम्॥१४॥ मूकी देश विदेशे पोहता, धनदत्त वाडव साथें रे ॥ पण को उद्यम संपति केरो, नावे तेहने हाथेरे ॥ क० ॥ १५ ॥ जे जे वाडव विधि प्रकाशे, धनदत्त तेह विधि चालेरे॥ पण पूर्वापर ते न विचारे,पाडो उत्तर नालेरे॥ १६ ॥ जो जो नमया ए दृष्टांतें, तात जणी समजावे रे॥अतिहि सुललित ढाल त्रेपनमी, मोहन कही समजावे ॥ क०॥ १७ ॥ सर्वगाथा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) ॥ दोहा ॥ एक दिन वनमां चालतां, तृषावंत धनदत्त ॥ मि त्रकने मागे तिहां, पय पीवाने ऊत्त ॥ १ ॥ मित्र कहे इहां बेश्य तुं, हृदय धरीने धीर ॥ वनमांहें सरवर थ की, लेइ श्रावुं हुं नीर ॥ २ ॥ बेसाडी धनदत्तने, कोक तरुवर बांहि ॥ विप्र मित्र जल कारणे, गयो गहन वनमांहि ॥ ३ ॥ न मिल्युं जल ते विप्रने, चिंते मनमां ते एम ॥ विण पाणी निज मित्रने, वद न देखाडुं केम ॥ ३ पूलथी धनदत्त हवे, मित्र त णी जोइ वाट ॥ जल नाव्यं दीतुं तेणे, चिंते हृदय निपाट ॥ ५ ॥ हलूये उठ्यो तिहां थकी, एकाकी धनदत्त ॥ वनमांहे मूलो जमे, जिम करिवर उन्मत्त॥६॥ ॥ ढाल चोपन्नमी ॥ मृजरो ब्योने जालिम काटणी ॥ ए देशी ॥ धन दत्त जोलो जी वनमां नमे, करवा विप्रनी शुद्धि ॥ तुमें फल जो जो नीचसंगति तणां ॥ ए यांकणी ॥ संगति नीचनी होये अलखामणी, प्राये निर्धन नि बुद्धि ॥ तु० ॥ १ ॥ वनमें पारधीया खेटक रमे, बा ना मांडीने फंद ॥ ताणे बाण ते मृगवध कारणे, बेठा ते मतिमंद ॥ तु० ॥ २ ॥ मृग पण श्राव्या तृण चं For Personal and Private Use Only ११ Jain Educationa Intemational Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) रता तिहां, पारधी फंद नजीक ॥ एहवे धनदत्ते ते अजाणते, कीधी उत्तम बींक ॥ तु० ॥३॥ बीकें नाठा ते मृग पाला फरया, दोड्या पारधि ताम ॥ रुष्या बोले मृग के त्रासव्या, कस्युं केणे वैरीनुं काम ॥४॥ धनदत्त दीठो पारधी ये तिहां, पकड्यो दोडीने ताम ॥ नाख्यो मेदिनी लात प्रहारथी, कीधो हृदय अकाम तु० ॥ ५ ॥ रे रे फंद पड्या मृग त्रासव्या, तेहनां यह फल जोय ॥ बांधी चाव्याजी तरु शाखांतरें, पा रधी न रह्यो जी कोय ॥ तु० ॥ ६ ॥ धनदत्त आफ ले बल घणुं करे, बोडी न शकेजी बंध ॥ कीदी वाटायें नवि तस दीवडो, कुसुम जिस्यो निर्गंध ॥ तु० ॥ ७ ॥ एवे वाडव वारि लेइ करी, श्राव्यो प्रथ म तरुपास ॥ तेणे नवि दीगे तिहां धनदत्तने, तव ते करेजी विखास ॥ तु० ॥ ८ ॥ अनुपम दीठो ते ध नदत्तने, तव ते दीठो बांध्यो जी मित्र ॥ केणे माहरो मित्र पराजव्यो, कांइक दीसे बे चरित्र ॥ तुम ||| बोड्यो मित्र शाखाथ की, पूठ्यो बंध विचार ॥ धन दत्त जांखेजी वाडवयागलें, व्याध तणो अधिकार ॥ तु० ॥ १० ॥ जांखे वाडव धनदत्त यागलें, एम नवि कीजें बू ॥ पुरबाहेर नर देखी तिहां, बोलीयें न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३) ही कहुं तुज ॥ तु० ॥ ११॥ दीठे मारग सीधा चा लीयें, तो कुण दूहवे एम ॥ मान्युं धनदत्ते कयु वि प्रनु, चाल्या आगल जेम ॥ तु ॥ १२॥ श्राव्या को पुरवर परिसरें, दीतुं सरोवर एक ॥ रजक नि हाल्यो वस्त्र तिहां धोवतां, धनदत्त चिंते विवेक ॥ तु०॥ १३ ॥ हलूए हळूए सरोवर संचस्यो, केडे रह्यो कांश विप्र ॥ दीगो रजकें धनदत्त श्रावतो, साह मो दोड्यो जी क्षिप्र ॥ तु० ॥ १४ ॥ पकड्यो रजके धनदत्तने, तथा रजक कहे मुख एम ॥ दिवस घणा नो करतो तस्करी, पकडयो जाश्श केम ॥ तु॥१५॥ काले ले गयो वस्त्रनी ग्रंथिका, वली तुं आव्यो ने आज ॥ चोरनुं वितक तुऊने विताडद्यु, वलशे त्यारे तुऊ लाज ॥तुगार॥ रजकवचनें धनदत्त चिंतवे, हूं कुण चोर ले कुण ॥ मोहनविजयें ढाल चोपन्नमी, पत्नणी परम अनूण ॥ तु ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ रे रजक कुंण चोर , माहरूं धनदत्तनाम ॥ नग री विशालायें रहुं, व्यापारी अनिराम ॥ १॥ दैव वशे शहां हुँ थावियो, अणबोल्यो श्ण गम ॥ मित्र महोदय कथनथी, कीधां सवि आयाम ॥॥ विप्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६४ ) महोदय पण तुरत, श्राव्यो सरोवर पाल ॥ मुकाव्यो बंधन थकी, धनदत्तने सुविशाल ॥ ३ ॥ तिहांथी बिदु नेही निगुण, पाम्या एक कांतार ॥ विण संबल विलखा नमे, धन विण कवण आधार ॥ ४ ॥ वन फुल फल सुवृक्षनां, तेह तणो आहार ॥ धनदत्त तात तो हवे, सांजलजो अधिकार ॥ ५ ॥ प्रथम स्वर्गे थयो देवता, थयुं जे अवधिज्ञान || पूरवजव दीठो तिणे, प्रगट त्रिदश विज्ञान ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पंचावनमी ॥ थारा मोहला उपर मेह, ऊरूखे वीजली ॥ ए देशी ॥ देखी विलोकें ताम, अवधि ज्ञाने करी ॥ दो लाल ॥ ० ॥ दीगे धनदत्त पुत्र, पूरव जव अनुस री ॥ हो० ॥ पू० ॥ ऐ ऐ माहरुं वेण, निवाही नवि शक्यो । हो० नि० ॥ दानांगणवड वीर थश्ने, नवि टक्यो । हो० ॥ ० ॥ १ ॥ वाडव वय एह, नोला यो बापडो ॥ हो० ॥ जो० ॥ वनचर परें वनमांहि, फरे वे उफाफलो ॥ हो० ॥ फ० ॥ मूढ पराइ बुझें, लहे प बाजना ॥ हो० ॥ ल० ॥ हजीय नयी कर तो ए, हृदय आलोचना ॥ हो० ॥ हृ० ॥ २ ॥ सम जावुं धनदत्त, उपाय कोइक रची ॥ हो० ॥ ० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५) ए पण उर्जन संग, रह्यो ने अति पची ॥ हो ॥ र०॥ एम थालोची देव, विमान तजी करी ॥ हो ॥ वि० ॥ आव्यो वनह मकार, प्रबोध रसें नरी हो॥प्र॥३॥ फोरवी शक्ति सुरंग, थयो व्यवहारि यो ॥ हो थ० ॥ दिव्य वसन द्युतिमंत, श्रृंगारें शृं गारि ॥ हो ॥ शृं० ॥ पोठ जरी तिहां रयण, त णि तेणे सांमटी ॥ होत॥ पहेस्यां ढलतां वस्त्र, सुरंग सूधां हठी ॥ हो ॥ सु० ॥ ४॥ रुप अनो पम ताम, इस्यो देवे कस्यो ॥ हो० ॥ ३० ॥ बेगे जह उपकंग, सुजरनीरें नस्यो। हो ॥ सु॥ ह रि नव पद्धव गुब, तणा कुंजांकुरा ॥ हो० ॥ तम् ॥ परिमल मुखरित नूरि, सलूणा मधुकरा होणासन ॥५॥ सुर जोवे धनदत्त, तणी तिहां वाटडी ॥ होण ॥ त० ॥ हजीय न आव्यो मूढ, कुसंगी प्रीतडी ॥ हो ॥ कु० ॥ हू ते धनदत्त, तृषातुर एहवे ॥ हो ॥ तृ॥ दीगे दूरथी तेह, नस्यो उह तेहवे ॥ हो ॥ ज० ॥६॥दोडी आव्यो नीरहेते, ते प्रह ऊपरे॥ हो ॥ ते ॥ जेम कीधुं जलपान, बोलाव्यो ते सुरें ॥ हो० ॥ बो० ॥ रे रे वटाउ पंथ, नुल्यो धावियो ॥ हो ॥॥ दीसे तुं कुलवंत, तो कां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) एम जावियो। हो ॥ तो ॥॥ बेसो हां विश्राम, करीने जाय जो ॥ हो॥ क०॥ वचन उलंघी मुफ, गमार न थाय जो होगा धनदत्त तास वचन, रह्यो धीरज धरी॥होर॥ जो जो विबुधे ताम, विबुधता शी करी हो॥ वि०॥॥ धनदत्त देखे तेम,सुरेश्वरहित धरी॥हो॥सुनाखी अह मांहि रयण, अंजलि नरी नरी॥होगाअंग॥ एम असमं जस देखी, कहे धनदत्त इस्युं ॥होणाकणारे व्यव हारी ए काम, करे जे तुं किस्युं॥होगाकण॥ ए ॥ दे खी पेखी रयण, अहे केम नाखीयें ॥ हो ॥ १०॥ सुख उःख अव्यने .काज, सवे हुं सांखीए ॥ हो ॥ सम् ॥ के को प्रेत विशेष, थयो जे तुक ने ॥ हो ॥ थ० ॥ जे कांश हृदयमें वात, हवे ते कहो मुझने ॥ हो॥ह ॥ १० ॥ बोलोडो माह्यां वेण, करो कां ग्रथलता हो ॥ कण्॥ उपहासीथी केम, तमे नथी बीहता ॥' हो ॥ त ॥ तव सुर बोल्यो एम, वचन रचना करी ॥ हो ॥ व० ॥रे पंथी वड वीर, कहुं तुऊ हित धरी ॥ हो ॥ का ॥ ११॥ हुं बुं सारथवाह, रयण संग्रह घणो ॥ हो। ॥ र ॥ एक डे माहरे मित्र, योगीं सोहामणो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७ ) ॥ हो० ॥ यो० ॥ तेथे मुऊने रत्न देखी, कयुं एहवं ॥ हो० ॥ क० ॥ माने माहरो बोल, तो हुं तुजने कहुं ॥ हो० ॥ तो० ॥ १२॥ ए वन गहन मज़ार, एह यह रूयडो ॥ हो० ॥ ए० ॥ सुंदर सलिल गंजीर, पद्म वह जेवडो ॥ हो० ॥ प० ॥ तास तणे उपकंठ, प्रह रयण लेइ नावियें ॥ हो० ॥ २० ॥ अंजलि नरी जरी कोटिश, तेहमें वाविये ॥ हो० ॥ ते० ॥ १३ ॥ एक वरस मर्यादि, लगए तिहां स्थिर करी ॥ हो० ॥ ल० ॥ प्रगटे हथी ताम, रयपनी डुंगरी ॥ हो० ॥ २० ॥ मित्र वचनथी आज, इहां हुं श्रावियो ॥ हो० ॥ ५० ॥ सयल रयणनो पुंज, इहांतरे वावियो ॥ हो० ॥ ८० ॥ १४ ॥ होशे रयणनो शैल, प्रजा कर रूयडो ॥ हो० ॥ प्र० ॥ साचो माहरो मित्र, कहे केम कूडो ॥ हो० ॥ क० ॥ बोल्यो धनदत्त ताम, घणो पुलकित थइ || हो० ॥ घ० ॥ ताही सारथ वाह, करूं केम बुद्धि किहां गइ ॥ हो० ॥ क० ॥ १५ ॥ कहिं प्रहमां रत्न, उग्यां तैं साजल्यां ॥ हो० ॥ उ० ॥ फेरी शी तस यश के, जे गांगें ग यां ॥ हो० ॥ जे० ॥ ते मूल्यो ताहरो मित्र, जे तु ऊ जंजेरी ॥ हो० ॥ जे० ॥ तुं जोलो जे तास, व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) चन नवि फेरव्यो ॥ हो ॥ व० ॥ १६ ॥ मानीश एहवा मित्र, तणी जो शीखडी ॥ हो ॥ त० ॥ मा गीश सारथवाह, नली तुं जीखडी ॥ हो ॥ ज० ॥ पंचावनमी ढाल, मोहन विजयें कही ॥ हो० ॥ मो० ॥ जे कोश निपुण शिरोमणि, तेणे तो शईही ॥ हो ॥ ते ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ ॥ दोहा ॥ वणिक रूपें कहे देवता, सांजव्य तुं धनदत्त ॥ पर उपदेशे कुशल तुं, दीसे ले उन्मत्त ॥१॥ पर्वत पर जलती बहु, नयणे निरखे लोय ॥ पण पयतल बलतां थकां, मूढ न देखे कोय ॥२॥पर अवगु ण राई सरस, करे सुरशैल समान ॥ निज अव गुण मंदर समा, राई करे अयाण ॥३॥ एक वा र तुं ताहरी, गति सामुं तो जोय ॥ त्यार पड़ी पर बूजिये, एम माह्यो शुं होय ॥ ४ ॥ धनदत्त तव नि सुणी करी, कहे तव सुरने एम ॥ शीखामण देता थकां, रीष चढावो केम ॥ ५॥ वचन मांनो जो माहरूं, तो सुखी होउ महाराज ॥ हुँ तो देत माटे कडं, तव बोल्यो सुरराज ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६ए) ॥ ढाल पन्नमी॥ नटीयाणीना गीतनी अथवा सुरती प्यारी लागे जिनजी ताहरी ॥ए देशी॥ धनदत्तने एम नांखे हो, व्यवहारी रूपें देवता ॥ रे नाक मतिहीन, प्रथ मज तुं जुलवाणो हो, तेह तो तुं नथी शोचतो, कां न संजारे दीन ॥ धम् ॥१॥ हूं तो जोगी व यणे हो, रयण वली श्राव्यो वाववा ॥ तो तें वास्यो मूळ ॥ वाडवनी तुं शीखें हो, जे एम वनमा रड बडे, तो कुण वारशे तुऊ ॥ध ॥२॥ तुजने जे को तातें हो, नोबुडा वचन का हतुं, न कयुं तें नि र्वाह ॥ बांजणनां वचनथी हो, धूताणो एम नूलो जमे, हजीय नथी लाजतो थाह॥ध॥३॥ ते माटें कहुं तुजने हो,धनदत्तजी जुडं ममानशो, कहे वाये ए रूढ ॥ हुँ नोलवाणो केहवो हो, नोलवाणो तुं ए विप्रथी, मूढ हुँ किंवा तुं मूढ ॥ ध० ॥४॥ पर उपदेशें माह्यो हो, ते कारण तुने हुँ कहुं॥ जो तुं संजाली पूंछ॥जे कां तुक पागल हो, विण पूब्ये जे में उपदिश्यु, ए साचूं के जूठ ॥ ध० ॥५॥ में तो जोगीवचने हो, प्रहमांहि रत्न जे वोसयां ॥ पण तुं विचारी जोय ॥ वाडवना कह्याथी हो, तें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) हज पुण्य प्रमार्जियुं, वली नम्यो पुर्जग होय ॥धा ॥६॥.जो होश्ये निकलंक हो, तो परतुं कलंक प्रका शियें॥करी जाणो निर्धार, ते कारण तुमे जाउँ हो। नूखशो पुरनी वाटडी, खोटा न करो उपचार ॥ ध० ॥ ७॥ धनदत्त तिहां मनमांहि हो, आलोचे उमी आलोचना, ए केम लहे मुफ वात ॥ एणे जे मूळ नाख्यु हो, ते साची संघली वातडी, खोटा नहिं अवदात ॥ धम् ॥ ७॥ वाडवने को बुब्धो हो, में तातनुं वचन विसारियुं, जलो थ्यो हुँ जोर ॥ मूरखने वली होवे हो, माथे मोटां शिंगो, कहेने कहुं करी शोर ॥ध० ॥ ए॥ मानव तो नवि दीसे हो, दीसे ए तो देवता, नहीं तो जाणे केम ॥ सारथवाहने नांखे हो, धनदत्त बेहु कर जोडीने, प्रगट प्रकाशी प्रेम ॥ धम् ॥ १०॥ तमे कोण बो बुद्धिवंता हो,मुफ आगल साचुं नांखजो, दाखो प्रगट स्वरुप ॥ धनदत्तना कथनथी हो, सा र्थपनो दंन विसर्जियो, कां सुररूप अनूप ॥ ध० ॥ ॥ ११ ॥ निर्मल देही जेही. हो, फाटिकनी जाणे म यूषिका, अंबुज परिमलपूर ॥ नूषणने संजारे हो, संपूजीत तन सोहामणो, तेजें न जिते सूर ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) ध० ॥ १५ ॥ धनदत्तने सुर नांखे हो, सांजल्य हुँ ७ ताहरो, पूरव नवनो तात ॥ सुरपुरने सुरलीला हो, जोगवतां श्रवधि प्रयुंजीयो, दीग तुज अवदात ॥ध ॥ १३ ॥ पूरव नवने नेहें हो, तुऊ प्रति बोधन श्रावियो, सारथवाहने वेश ॥अहमांहे मणि कपटें हो नाखिने, तुऊ समजावियो अहो, हित शीख विशेष ॥ ध० ॥ १४ ॥ केम करीने चालीजें हो, बालूडा बूकें पारकी, कीजें मन अनुजाय । घणी घणी शी फेरी हो, जांखीजे तुजने शीखडी, तुजने कहुं बुं न्याय ॥ध ॥ १५॥ सुरवरने व चने हो, प्रतिबज्यो धनदत्त हियडे, दीगे तात सनेह ॥ देवें एक अनिमेषे हो, वनहुँती धनदत्त श्राणीयो, जीहां पूरव निज गेह ॥ध १६ ॥ गृह मांहे मणि माणिक हो, सोनुं ने रूपुंसामटुं, प्रग व्यो फाकफमाल ॥ उपन्नमी रतनाली हो, सुगुणीने हेतें ए कही, मोहनविजयें ढाल ॥ध ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥दोहा॥ . ते सुरवर धनदत्तने, सोंपी धण कण धाम ॥ प्रतिबोधी सुरपुर रमा, श्राजरणीकृत ताम ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७२ ) धनदत्रों सुंदरपरें, मननुं चिंतव्युं कीध ॥ श्रवसानें सुख अनुजव्यां, सकल मनोरथ सिद्ध ॥ २ ॥ अथ इति पर्यंत एकह्यो, धनदत्तनो अवदात ॥ नमया कर जोडी कहे, श्रवण अतिथि करो तात ॥ ३ ॥ विना वचन जिनराजनां, जे परबुद्धि राचंत ॥ तेहनी गति धनदत्त जिम, जाणो तात महंत ॥ ४ ॥ ए जणे नमया सुंदरी, तात जणी तिथिवार ॥ श्राणा द्यो चारित्रणी, मानीश ए उपकार ॥ ५ ॥ जो पुत्री करी वडो, तो पूरो मननो कोड ॥ आलंबन यो अडवड्यां, विनति करूं कर जोडि ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सत्तावनमी ॥ यतणीनी देशी ॥ कहे नमयाने जनक ते वारे, ग्रहो चारित्र का विचारें, बहु क्रतुमां यति व्रतमें रहेनुं, तुथी थाशे ए किम सहेतुं ॥ १ ॥ प्रसरे हिम ऋतु चिदुपासे, शालि मंजरी फुलें उल्लासें ॥ माले आरुढा जन सोहे ॥ पशुपंखी पडतां टोहे ॥ ॥ २ ॥ पुरवरसी वन शोमा दीसे परिजन वन मांदे जगी ॥ नट वंश चढीने खेले, दाता पण दान केले ॥ ३ ॥ केइ ताजा पोंख आरोगे, म सली कर संपुटने योगें ॥ कहो ए मुनिवेषमें किदां For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३) थी, शिक्षा ग्रहेवी जिहा तिहांथी ॥४॥ दोहा॥ दीक्षा शालि विकाश तम, मल्यो दपकसंयोग ॥ परिग्रह योगक पंखीया, वारीश थई अशोक ॥५॥ हृदयदेश शोजावणुं, कर्म नटावा खेल ॥ जोशुं देखू दान पण, मोदतणा रस मेल ॥६॥ पूरवपुण्य सा दातना, कारी निश्चय व्यवहार ॥ एम करी हिम रुतु निर्गमे,जे सूधा अणगार ॥७॥ पूर्वढाल ॥तु शिशिर शीतल वा वाशे,विणवसने शी गति थाशे॥ कृष्णागर केरी अंगीति, मुनिपासे किहायेदीची ॥७॥ अति उन्हुँ लोजन जमवू,वली श्रासव पानें रम६॥ घणी दीरघ शिशिरनी रजनी, कहो जाशे केम विण सजनी ॥ ए ॥ बरतेल तंबोल विलास, अति शोनि त उचित श्रावास ॥ मुनिमुनाए किहांथी ए तु जने, मुनिमारग पूजे तुं मुऊने ॥ १० ॥ दोहा ॥ नमया कदे झतु शिशिरमें, जे जे विषया शीत ॥ निर्विकार उढीश वसन, जेहनी सबल प्रतीत ॥१९॥ ध्यान तणी अंगीठडी, जोजन तेम संतोष ॥ श्रास वसमता पी जतां, करशंकाया पोष ॥ १२॥ माया रजनी अति विपुल, शुफ वनावें दीण ॥ उदासी न तेलांग तिम, प्रमा तंबोल प्रवीण ॥ १३॥ मंदिर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७४) उच्च विवेकन, काया वली उबोल ॥ एम शिशिर निर्वाहयुं, करशुं रुचि कबोल ॥१॥ पूर्वढाल ॥ वली तेमज वसंतऋतु आवे, तव किसलय तेम तरु नावे॥ वागे चंग मृदंग सुरागें, वली टोली गावे फागें ॥१५॥ गंटे केसर नरी पीचकारी, तेम लाल गुलाल नरना री॥करे नाटक बत्रीश बरू, ते तो मुनिवेषे नविकी ध ॥१६॥दोहा॥ तप नवकिसलय तरु थयो,आवश्यक वाजीत्र॥ अध्ययनादिक फागगति, केसर किया वि चित्र ॥ १७ ॥ मार्दव लाल गुलाल बहु, परिसह ना टक कीध ॥ तुवसंतमांहे अहो, मुनिने ए अनि षिक ॥ १७ ॥ पूर्व ढाल ॥ ऋतु ग्रीष्म तपन तपे जोर, तेम लूक वहे चिहुं उर ॥ रस करीये घोली रसीलो, सुणीये कंश पिकवचन रसाल ॥ १५ ॥ तेम करे विलेपन चंदननां, ते शीतल पवन विजनना ॥ साकर जल नेली पीजे, एम ग्रीष्मनो लाहो लीजें। ॥२०॥ दोहा ॥ क्रोधातप कृश खंतिथी, खूक लो ननी जेह ॥ श्रादरशुं निःस्पृहता, वसशुं संयमगेह॥ ॥१॥अनुजवरस सहकार रस, कोकिल जनवर वाणी ॥ चंदन सत्य विलेपनां, उपशम व्यंजन जा णी ॥ २५ ॥ गुरुवाणा साकर विनय, नीरतणुं नित्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५) पान ॥ एम करी ग्रीष्म ऋतु जणी, निर्वहिशुं धरि मान ॥२३॥ पूर्व ढाल ॥ शतु वर्षाघन जड मंमें, धारा अनिमेष न खंभे ॥ शिखी दापुर चातकं बोले, कामी काम पण खोले ॥२४॥ गुणिजन बालापे मल्हार, वली सुंदर नेम आहार ॥ वहे सरिता ह रिता तेम धरणी, केम निर्वहशो चरण आचरणी॥ ॥२५ ॥ दोहा ॥ मोहमहाघननी बटा, धरशु खूप संवेग ॥ अकाविहग उद्घोषणा, खोली मने धरि नेग ॥ २६ ॥ राग मल्हार सद्याय , निःशंकी आहार ॥ सत्य नदी मुनिगुण हरित, ए पावस प्रतिचार ॥२७॥ पूर्वढाल ॥ ऋतु शरदें कमल शशी ऊगे, वधे तेज नयन कर पूगे॥ जरे पीयूष शुक्ति समाय, तस बिंदुनां मौक्तिक थाय ॥२॥ योगीश्वर ग्रह नवरात्रि, करे याग यगन संयात्री॥मली कन्या गरबो गाश, करी मंगल दीपक ना ॥णा अति म होत्सव वाणा प्रयाणां, संयमिने क्याथी सयाणां ॥ वसती बाहिर एकाकी,न फरे पुनि जेम ए रांकी॥३॥ दोहा।समकित शशीजुवालडो,तास तत्व ज्ञानांश॥ ज्ञान नियम निर्मल थशे, लोकालोक प्रकाश ॥३१॥ दयाशुक्तिमांहि अचल, मौक्तिक धर्म सशुद्ध ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७६ ) नवयोगी नव वाडि ते, नव रात्रि प्रति बुद्ध ॥३॥ जोली कन्या नावना, जिन गुण गरबा केली ॥ में गल दीपक परम पद, कर्म नटाव अहेति ॥ ३३ ॥ वियावच्च आणुं नढुं, थविर तथा मुनिनाद ॥ शिशिर ऋतुयें मुनिवर करे, एम महोटा उ त्साह ॥३॥ पूर्व ढाल॥ कह्यो षटे रुतुनो एह वि वाद, नवि पामी नमया विषवाद ॥ नमया चारि वनी अरथी, रागी पूरण मुनिवरथी ॥ ३५ ॥ध न्य धन्य ते जव जय बंडे, मुनि वेशे श्रादर मंडे ॥ कही सत्तावनमी ढाल, एह मोहनविजयें रसा साल ॥३६ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥दोहा॥ तातें घणुंये प्रीबवी, पण नवि माने तेह ॥ तातें अनुमति दीधली, नमयाने धरी नेह ॥ १ नमया अति रंजी हिये, तनू हुवो रोमंच ॥ उमाही दी क्षा जणी, करे नहीं खल खंच ॥२॥ तातें पुर श पगारियुं, तिहां हय गय रह जोडि ॥ अति उत्स व अष्टाहिका, मांगे होडा होड ॥ ३ ॥ दया पटह पुर फेरव्यो, दीधां अर्थीदान ॥ सयण सयल नेलां हुवां, दीधां तिहां बहु मान ॥४॥ बेठी नमया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) सुंदरी, शिबिकाए सोत्साह ॥ तूरि तणा निर्घोष ब हु, गय गयणांगण तांह ॥५॥ पुरजन कौतुक पे खवा, मलियां थोका थोक ॥श्राव्यां श्म गुरु संन्नि धि, जोडीने कर कोक ॥६॥ ॥ ढाल अहावनमी ॥ ते तरीया जाय ते तरीया ए देशी ॥ आर्य सु हस्ती सूरीश्वर चरणे, प्रणमी नमया विनवेरे ॥ श्रापो मुझने चारित्र खजानो, अवसर श्राव्ये एह वे रे ॥१॥जयवंता विचरोजगमांहें ॥ ए आंकणी ॥ जे अनुसरे मुनि मुजारे, तास चरणरज तिलक करीजे, सेवियें थइ अनुसा रे ॥ ज० ॥२॥ गुरु स हदेवतणी ग्रहे आणा, सघले अनुमति दीधी रे॥ अहो जावुके अहो नमयासुंदरी, प्रीति संयमथी कीधी रे ज० ॥३॥ मन थिर ने किंवा नथी ता हरं, संयम बे अति दोहिर्बु रे ॥ सायर जल तर, बे नुजाथी, निःस्पृहने जे सोहिर्बु रे ॥ ज० ॥४॥ सिंह थश्ने व्यो को संयम, सिंह थश्ने निर्वहेजो रे, जो न पाली शको प्रव्रज्या, तो गृहवासे रहेजो रे ॥ ज० ॥ ५ ॥ नमयासुंदरी विनवे गुरुने, खामी कांहे बिहाडो रे ॥ साहमुं बल बंधावी मु Jain Educationa Intentional For Personal and Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) ऊने, निद्रालुने जगाडो रे ॥ ज० ॥ ६ ॥ माहरु मन बे दृढ संयमथी, हुं यावी तुम चरणे रे ॥ चारित्रथी केम होश चंचल, उलखो एहवे आ चरणें रे ॥ ज० ॥ ७ ॥ नमयायें भूषण सयल जं तारयां, परिहरी लोन जो रे ॥ वासदेपथी थाल जरीने, तात समीपें ऊजो रे ॥ ज० ॥ ८ ॥ केशजाल मस्तकथी बुंच्या, जाल महामोह दावे रे ॥ आचार करवा संग्रहीने, नर्मदा मस्तक जावे रे ॥ ज० ॥ ए ॥ धर्म सिंधुर कुंनस्थल बेवा, गुरु एम देशना जांखे रे, पंचशालि कण जेम महाव्रत, जे ग्रहे ते सुख चाखे रे ॥ ज० ॥ १० ॥ एह संसार असार विचारी, पालजो सूधी दीक्षा रे ॥ पंच म हाव्रत जार निर्वदेजो, ए सहगुरुनी शिक्षा रे ॥ ज० ॥ ११ ॥ प्रणम्या पुरजन नमयाने चरणे, यांसुकरं ते नयणे रे ॥ अहो नमया धन्य धन्य तुम जीवित, एम उल्लापे वय रे ॥ १२ ॥ राखजो धर्म सनेह थम उपर, वंदावजो वली श्रमने रे ॥ तुम गुण मीठा केम विसरशे, घणुं विनवीयें शुं तमने रे ॥ ज० ॥ ॥ १३ ॥ सहदेवादिक नयणथी वरसे, धांसू मिषें जलधारा रे ॥ जांखे नमया साधवी तेहने, मीगं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७५ ) वचन उदारा रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ धर्मोद्यम करजो सह-प्राणी, एम कही दीधी शीखो रे ॥ नमयाने आशीष कहे एम, जीवजो कोडी वरीसो रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ जनकादिक सह मंदिर श्राव्या, हवे सह गुरुउल्लासें रे, नमया साध्वीने हित श्राणी, सोंपी साधवी पासे रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ साधु मारग शी खाव्यो वारु, करे जिन श्रगल साखी रे ॥ श्रा वनमी ढाल सलूणी, मोहन विजयें जांखीरे ॥ ज० ॥ ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ यह निश साध्वी नर्मदा, करे ज्ञान अभ्यास ॥चा रित्र चंद्र प्रद्योतथी, करे मन कुमुद विकास ॥ १ ॥ जयणा गंगा सुरसरी, जिहां हित प्रगटतरंग ॥ तीहां जीले यइ हंसली, करे पवित्र निज अंग ॥२॥ अंबर मुनि श्राचारनां, नक्ति तणो मुख कोश ॥ संवर केसर घोले बहु, विनय पखाले दोष ॥३॥ स्तवना कुसुम मनोहरु, समकित दीप उद्योत ॥ अक्षत अनुभव रूपना, ध्यान धूप सिद्धोत ॥ ४ ॥ एम पूजा जिनराजनी, साहसथी नितमेव ॥ रचे कर्म चकचूरवा, सा साध्वी नितमेव ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) ॥ ढाल उंगणसामी॥ - आश् आश् हो ढोला श्राश् हो श्रावण त्रीज, माहरी प्रोले पडहा वाजीया होराज ॥ वारी जालं राज, जीवनप्यारा राज ॥ लाडीरा लाडा राज ॥ राज मृगानयणीथी मांमधु रूसणुंजी ॥ वाण ॥ जीव न० ॥ लाडी० ॥रा॥ ए देशी ॥ मांम्यो मांमयो हो तेणे नमयाए पूरण प्रेम, रतनाली सुमति गुप्ति सा हेलीझुंजी ॥ गंड्यो बांड्यो हो तेणें कुमति सा देली संग, लय लागी ते अलबेलीशंजी॥१॥ कस्युं मननावें, नमयाए कुमतिथी रूसणुं जी ॥ ए श्रांकणी, तास मंदिर हो नहीं सुंदर नामें आरंज, तेहनी तो बोडी शेरडी जी ॥ श्रावी बेठी हो तव उपशम गेह, जस संयमशेरीन वेरडी जी ॥क०॥ ॥२॥ तव जयणाने हो कर्तुं नमयायें बेनडी मूऊ, शहां कुमतिने हो मत देजो पेसवा जी ॥ मुफ नो लावी हो एवं एता दीह, अनंत स्थिरताए न दीधी बेसवा जी ॥ क० ॥३॥ एहवे कुमतिए हो मेली हिं सा दासी कुरूप, नमयाने घणुं विप्रतारवा जी॥कांश जोली हो गंडे बालपणनो नेह, ससनेही केम केम वीसारवां जी ॥ क० ॥ ४॥ तेहने अहिंसायें हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) कही कडुवा कडुवा बोल, घर बाहेर काढी गल हब देश्ने जी ॥ कहे कुमतिने हो तेह, दासी अहिं साए मुफ, कहे जांडी श्रावडे आवडे जी ॥कण॥५॥ थर कांखी हो कटुकवचनें कुमति तेवार, नमयाने मूकी संजारवा जी ॥ करे सुमतिथी हो नित रंग कबोल, श्रुताननी गोष्टि विचारवा जी ॥क॥॥ मति ज्ञानने हो तिहां वेंच्यां फोफल पान, बहु इवां रंग वधामणां जी ॥ तव उपन्यु हो नमयाने अवधिज्ञान, मोहादिक हुवां दयामणां जी ॥ क०॥ ॥ ७ ॥ हवे अनुक्रमें हो, करे नूतल तेह विहार, हर महासती ताम पवत्तणी जी ॥ पडीबोहें हो, जवि चातुर नवियण वृंद, देवे देशना अतिही सोहामणी जी ॥ कम् ॥ ॥ जेणे सांनती हो तस देशना श्रवणे नव्य, तेणे जाण्यु पीयुष पीधबुंजी॥ जस दीधी हो मुख धर्माशीष मनोज्ञ, ते तो अ व्यय जीवित दीधढुंजी ॥ क० ॥ ए॥ बहु साहू णीहो, मती महासतीने परिवार, एक एकथी अधिक गुणे करीजी॥त कीधो हो जेणें पावन थापण देह, उपदेश महारयणे जरी जी ॥ क०॥ ॥१०॥ नमयो महासती हो, पामी सहगुरुनो श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) देश, रूपचंद्र नयर शोलावियुं जी॥ वसती या चीने हो निज नाह पिताने समीप, पवत्तणीए नाम न जणावियु जी॥ का ॥१९॥ दीधी वसति हो तेणे पवत्तणी अवधार, तिहां निवसी नमया सती जी॥ पय वंदण हो थावे नयरना लोक, नवी उलखी केणे एक रती जी ॥ क० ॥ १२ ॥ पुरमाहे हो नली पसरी एहवी वात, साहुणीनो संघाडो आवियो जी ॥ अतिज्ञाता हो तप संजम शुरु विवेक, उप शमथी आतम नावियो जी ॥ क० ॥ १३ ॥ देखी दर्शन हो कीजें आपणां नेत्र पवित्र, एम विजन लोक वातो करे जी ॥ श्रावी पर्षदा हो तिहां दे शना सुणवा काज, कथा उपदेशे नमया तदा जी॥ कम् ॥ १४॥ एक रंगें हो सहु सांजलो बाल गोपाल, थइ रसिया हियडे गहगही जी ॥ कहे मोहन हो अंगणसाउमीढाल,श्रोता रे सुपरें सईहीजी॥०॥१५ ॥दोहा॥ - धर्मोद्यम कीजे जविक, धर्म प्रथा प्रसिद्ध ॥ जि नवर धर्म थकी लहे, शछि वृद्धि नव निक ॥१॥कर्म जाल बंधे मुधा, जीव थई अज्ञान ॥ पण मूंशा रहे तेहमां, इंजाल समान ॥२॥ धर्म तणी ब्रांते करी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) धरे अधर्मने जीव ॥ काच कामली रोगें ग्रहे, शंख विचित्र तदीव ॥३॥ इसतां अथवा क्रोधी, बंध निकाचित कर्म ॥ केम बूटे विण जोगव्यां, साख जरे जिनधर्म ॥४॥ पामे पूरवकर्मथी, सती पण अप वाद ॥ कर्म विपाक ग्रही जतां, केम करिये विषवाद ॥५॥श्रतां पण सती जणी, चोहटे जेह कलंक॥ ते नर विलसे बापडा, जववारिधि निःशंक ॥६॥ ॥ ढाल साठमी॥ कर्म परीक्षा कारण कुमर चल्योजी ॥ए देशी॥ कहे दृष्टांत तिहां धनवती तणो, पति प्रतिबोधवा काज ॥ पोष्यो अनुत रस देशना विषेजी, निसुणी नर नरराय ॥१॥ कर्म कुटिलथी बल नहीं कोर्नु जी, शिवपुर पंथ विशाल ॥ आठ लूटांक ते हेरे हे रणांजी, करी परिकर जंघाल ॥ क०॥२॥ शावस्ती नगरीयें वसतो हुतोरे, व्यवहारी पुण्यपाल ॥ धन वती तेहनी अनोपम अंगना जी, मुख्य सती सुवि शाल ॥क० ॥३॥ अनुक्रमें कंथविदेशे चालतां रे, धनवतीनी तेणीवार ॥ दीधी जलामण आपणा मि त्रनेरे, उपस्थित करण रोजगार ॥ क० ॥४॥ केता दिवस पळी धनवती जणी जी, प्रार्थे कंथमो मित्र । RE Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) सुख जोगव्य तुं मुफथी सुंदरी रे, यौवन कस्य तुं पवित्र ॥ कम्॥५॥ निग्यो धनवतीए तेहने जी, ते पण पाम्यो रोष॥ तेणे पुरमे कही कही शाकिनी जी, दीधो सतीने दोष ॥ क०॥६॥ न शके नयरी माहे फरी सतीजी, तिहां पण पीहर गश् परगाम ॥ते धनवती निजबंधू घरे वसे जी, जो जो कर्मनां काम ॥ क० ॥ ७॥ धनवती बंधू सुतने हुलरावती जी, ना खती निःश्वास ॥ तिहां पण प्रार्थे विषय सुख कार णे जी, निज सहोदरनो दास ॥ क० ॥ ७॥ तेहने पण सतीये निबियो जी, दास थयो विणप्रेम ॥ दासे बाल विणाश्यो क्रोधथी जी, सा हुलरावती जे म ॥क ॥ ए॥ प्रात थयो धनवतीये बालने जी, दीगे विनाश्यो जाम ॥ करी आक्रंद कुटुंब सवि मेलव्यु जी, श्राव्यो दास पण ताम ॥ का ॥ १० ॥ दास कहे सह लोको सांजलो जी, ए सतीनुं विरु क॥ कहो कूण सोंपे सुत शाकिनी कन्हे जी, जेम मांजारने दूध ॥ क० ॥ ११॥ शावस्ती बोकें मली. एहने जी, काढी वनह मकार ॥ कीहांथी श्रावी रंगा शाकिणी जी, बांधवने आगार ॥ कण् ॥ १॥ अति शरमाणी ते धनवती सती जी, परिहरी पी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) हर ताम ॥ श्रावी एकांते गहनवनांतरें जी, वडतले ग्रह्यो विश्राम ॥ क० ॥ १३॥ गुहड विहंग रयणी जर तरुशिरें जी, सहित बालक परिवार ॥ वीट नि चय देखीने बाचडां जी, गुण पूजे तेणीवार ॥ क०॥ ॥१४॥ कुष्ट शमे ते विट प्रजावथीजी, पंखीपति कहे एम ॥ धनवतीये गुण जाणी संग्रही जी, विट जणी धरी प्रेम क॥१५॥ तिहांथी आवी को पुरवरे जी, कीधो पुरुषनो वेश ॥ टाले कुष्ट ते वीट प्रयोगथी जी, यश थयो देश विदेश ॥ क॥ १६ ॥ मोटा म होल बनाव्या मोजमां जी, चाहे बाल गोपाल ॥ मोहन विजयें ए जणी साठमी जी, श्रोता सांजलो थ उजमाल ॥ कम् ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥दोहा॥ एहवे धनवती वल्क्षहो, श्राव्यो निजपुर जाम ॥ पण मंदिरमां अंगना, तेणे नवि नीरखी ठगम ॥१॥ प्रीज्यो मानव मूखथकी, दयितानो अधिकार ॥ श्र ति कांखो हू थको, पहोतो मित्र छार ॥२॥ दी गे कुष्टी मित्रने, सती कलंक प्रनाव ॥ पुण्यपाल समज्यो हिये, कुटिल सुहृदनो दाव ॥३॥ एहवे पुरमांहे कयु, वैद्य विदेशे एक ॥ टाले कुष्ट उपाय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) थी, जन्मांतरिय विवेक ॥४॥ पुण्यपाल निज मित्रने, तेडी चाले जाम ॥ सती बंधुनो दास पण, कुष्टी श्रा व्यो ताम ॥ ५ ॥ बिहुने तेडी अनुक्रमें, श्राव्या ते परदेश ॥ जेणे पुर धनवती रहे, रचि पुरुषनो वेश ॥६॥ वालम दीगे श्रावतो, पामी परमानंद ॥ पण पियुने समजाववा, रचशे रामा फंद ॥ ६ ॥ ॥ ढाल एकसठमी ॥ - अणसणरा हो योगी॥ ए देशी ॥ कहे पुण्यपाल तदा कर जोडी, तुक कीरतें श्राव्यो बुं दोडी रे॥ वैद्य जी करो करुणा ॥ए आंकणी ॥ ए बेहु कुष्टीने साजा कीजें, वली मूख मागो ते दीजें रे ॥वै॥१॥ सा कदे वैद्यरूप ते नेही, करुं औषधी पण निःस्पृही रे॥ वै० ॥ पण ए रोगी साचं कहेशे, तो एहने औषध गुण देशे रे ॥ वै ॥२॥ सहु सांजलतां कहेतां जो लाजे, तो बेसो एण बाजे रे ॥ वै ॥ पड दो रहे जेणे वाते करीयें, नवि दंन कोश अनुस रियेंरे ॥ वै० ॥३॥ को धनवतीनो नेद न जाणे॥ सवि सत्य करी प्रमाणे रे ॥ वै० ॥ उठी पुण्यपाल ते अलगो बेगे, तेह चिकित्सक पडदे बेगे रे ॥ वै० ॥ ४ ॥ कहे पुण्यपालने हलूश विख्यातो, तुं सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) पजे कुटिलनी वातो रे॥वै॥ एम कही श्रावें वैद्य फरीने, वर औषध फांट नरीने रे ॥ वै ॥५॥ रे रोगीयो नहि जूठे राजू, केम रोग थयो कहो साचुं रे ॥ वै ॥ बोल्यो प्रथम पीयुमित्र कुसंगी, कहुं प्रगट सुणो एक रंगे रे ॥ वै ॥६॥ ए पुण्य पालतणी ढुंती नारी, नामे धनवती मनोहारी रे ॥ वै० ॥ कामवशे में प्रार्थी तेहने, करी बेहेन गणी हुँती जेहने रे ॥ वै॥७॥ माहरुं वचन नहि मान्यु तेणे, में प्राण्यो रोष हियडेरे ॥ वै ॥ कही कही शाकिनी घणुं अवहेली, एतो लाजी गश् पुर महेली रे॥वैानाज कलंक चढाव्यं माटे कुष्ट रोग शरीरें उच्चाटे रे॥वै॥ एम तेहने तव अणबोल्यो राख्यो॥ तेह दास जणीसंजाख्यो रे ॥वै०॥ए ॥ में पण याची तेहज नारी, तेणे निर्ऋब्यो मुझने जारी रे ॥वै॥में तव शेग्नो तनुज विणाश्यो, वली शाकिनी दोष प्र काश्यो रे ॥ वै ॥ १० ॥ निकली तिहांथी अतिहीं सजाती, तेनी खबर किसी न जणाती रे ॥वै॥ कर्म कहाणीए केहने कहीयें, हवे तुमे कहो ते वहीये रे ॥वै॥॥ ११ ॥ पडदांतरे ते वातो जाणी, पुण्यपालें कंधरा धूणी रे ॥ 4 ॥ मुफ कामिनीने कलंक दीर्छ, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८० ) मित्र ए शुं काम कीधुं रे ॥ ० ॥ १२ ॥ एहवे धनवती पडदे यावी, ते बेहुनी वातो जणावी रे ॥ वै० ॥ पेठी घरमां वेश उतारयो, स्त्रीवेषं वपु शण गायो रे ॥ ० ॥ १३ ॥ रम कम करती पियुने चर रणे, सा प्रण में जरी मरणें रे ॥ वै० ॥ उलखी प्रमदा पोता केरी, वधी प्रीति लता अधिकेरी रे ॥ ० ॥ १४ ॥ औषधें बेदुनो रोग गमाव्यो, एम गुणसननो गणाव्यो रे ॥ पुण्यपाल निज धनवती संगें, श्राव्यो शावस्ती मन रंगें रे ॥ साची सती करी पुरमें जाणी, जेणे विसारी अपवाणी रे ॥ वै० ॥ अनुक्रमें धन वती शिवसुख पामी, एम नमया कहे गुणधामी रे ॥ वै० ॥ १५ ॥ कहे महेश्वरदत्तनी श्रागे, सतीने पण लंबन लागे रे वै० ॥ ए एकसठमी ढाल सुरंगी, कहे मोहन सुगुण प्रसंगी रे ॥ १६ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ कहे नमया पवत्तणी, कर्म तणी गति एम ॥ जेणे धर्म न अन्यस्यो, ते गति लेहशे केम ॥१॥ ते श्री जिनवर धर्मना, शास्त्रमांदे अधिकार ॥ चौदरा ज्य ए शास्त्रथी, प्रगट लहीजें सार ॥ २ ॥ नरय मा तिरिय देव गई, इसीधारा पर्यंत ॥ नाप हुवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८५ ) ए शास्त्री, गीतार्थ होय गर्जत ॥ ३ ॥ कोइक एहवां शास्त्रबे, जेह जणे अद्याप ॥ खरथी लक्षण जाणियें, रूप रंग गुण व्याप ॥ ४ ॥ पण स्वरलक्षण वातडी, मूरखने न कहाय ॥ साहामो गुण अवगुण करे, हिपय पाननो न्याय ॥ ५ ॥ तेह कारण श्रुति शास्त्रानो, करजो खप सहु लोय ॥ जेहथी उत्तम संपदा, एह कथाथी होय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बासवमी ॥ कपुर होय ति ऊजलो रे ॥ ए देशी ॥ महेश्वरदत्त चित्त चमकीयो रे, निसुणी कथा कल्लोल ॥ धन्यधन्य एम पवत्तणी रे, धर्मथी रंग बे चोल रे ॥ १ ॥ चेतन चेते नहीं कां मूढ, लही उपशम गूढ रे ॥०॥ पण एणें स्वरलक्षण लधुं रे, ते साचो उल्लास ॥ महेश्वरदत्ते मांगियो रे, नमयानो पश्चात्ताप रे ॥ ० ॥ २ ॥ सही मुज नमया अंगना रे, जणी हशे लक्षण शास्त्र ॥ गायन लक्षण कह्युं हतुं रे, बेठे बते यानपात्र ॥ चे० ॥ ३ ॥ पण में मूढ अजाणते रे, की धूं धमनुं काम ॥ वनमां सतीने परहरी रे, थ‍ निष्कृप जिराम रे ॥ चे० ॥ ४ ॥ मुत वनिता हती महासती रे, पण हुं थयो अज्ञान ॥ मुफ सरीखो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) संसार में रे, निर्घृण नहि को निदान रे ॥ चे० ॥५॥ शी गति थइ हशे तेहनी रे, रजनीचरने दीप ॥ अहो अहो हुं महापातकी रे, तुछ मति उद्दीप रे ॥ चे० ॥ ६ ॥ अति चिंतातुर कंथने रे, देखी पवत्तणी ताम ॥ कहो तुमें चिंतातुरा रे, अहो महानुजाव श्राम रे ॥ ० ॥ ७ ॥ कहे महेश्वर कर जोडीने रे, पूरवलो उदंत, यांसु करते लोयों रे, नारी गुण विलपंत रे ॥ ० ॥ ८ ॥ बोली ताम पवत्तणी रे, तेह ढुं अवर न कोय ॥ जे तमे विसर्जी वनमां रे, नयण उघाडी जोय रे ॥ ० ॥ ए ॥ ताहरो दोष नहीं कि शो रे, ए मुफ कर्मनो दोष ॥ शुं कुरेबे बापडा रे, डुं नयी धरती रोष रे ॥ चे० ॥ १० ॥ श्रापवीती वातो कही रे, महेश्वरदत्त ते सर्व, याद में साहुणी पहुं रे, बांडी क्रोध ने गर्व रे ॥ चे० ॥ ११ ॥ यावी हुं इहां तुमने रे, प्रतिबोधनने काज ॥ समज तुं गति संसार नीरे, उलख तुं जिनराज रे ॥ ० ॥ १२ ॥ नर्मदासुंदरी लखी रे, लाज्यो महेश्वरदत्त ॥ निज अपराध खमा वियो रे, लह्यो वैराग्य उन्मत्त रे ॥ चे० ॥ १३ ॥ कड़े महेश्वर मुक कीजीए रे, ज्ञान दर्शनं चारित्र ॥ नम या कहे सूरि अबे रे, श्रार्यसुहस्ती पवित्र रे ॥ चे०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥१४॥ कृषिदत्ता पण शुज परें रे, अति पामी प्रति बोध ॥ चारित्र सेवा सुंडियां रे, टालि सयल विरोध रे॥चे० ॥१५॥ अनुक्रमे विचरंता श्राविया रे, श्रा यसुहस्ती गुरुराय ॥ महेश्वरदत्त हरख्यो हिये रे, रुषिदत्ता हित लाय रे ॥चे॥१६॥ दीक्षा बेहु ए श्रादरी रे, बोडी सयल जंजाल ॥ मोहन विजयें जली कही रे, ए बासठमी ढाल रे ॥ चे ॥ १७॥ ॥दोहा॥ ___ इषिदत्ता दीक्षा ग्रही, पाले निरतीचार ॥ श्रायु वशें जश् उपनी, निर्जरने आगार ॥१॥ मुनि महेश्वरदत्त पण, दिदातणे प्रत्नाव ॥ जवसायर हे लांतरे, बेसी धर्मने नाव ॥२॥ अनुक्रमें पाम्या पु एयथी, सुरपर्यंत संयोग ॥ विलसे निजदेवी थकी, विषयादिकनो लोग ॥३॥ जो जो नमया महा सती. करियो ए उपकार॥ महापतित पतिने कियो, महोटो सुर शिरदार ॥४॥ सुंदर नमया महासती, वसुधा करे विहार ॥ करे मार्तंड प्रजापरें, नवि कैरव विस्तार ॥५॥ कहेणी रहेणी बिहु सरिस, तेह वो नाण प्रकाश ॥ कर्मतणी करे निर्जरा, उपश मने यावास ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७२ ) ॥ ढाल त्रेसठमी ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ नमया सुंदरी महासती, सू धो संयम पाले जी ॥ ध्यानानल संयोगें सुपरें, कर्म समिध प्रजाले जी ॥ न०॥१॥ अवधि ज्ञान तणे अनु सारें, आयुष कर्म विचारी जी ॥ मास तपी हित या णी दाखे, संलेषणा सुखकारी जी ॥ न० ॥ २ ॥ लाख चोराशी जीव खमावी, सम जावें मन आणी जी ॥ शुद्ध देव गुरु धर्म त्रि करणें, निश्चल चित्तें ध्याइ जी ॥ तृप्ति जाव जाव्यो मन शुद्ध, परम म होदय पाइ जी ॥ ३ ॥ नमया सुंदरी ताम वियो, पोहती निकट सुर लोक जी ॥ देवपणे सुर सुख लीलायें, जोगवे तिहें अशोक जी ॥ न० ॥ ४ ॥ पंदित तांडव नित्य खंमित, देव पडह पट वाजे जी ॥ विविध तूरिनिर्घोष प्रसारें, विबुध गृहांगण गा जे जी ॥ न० ॥ ५ ॥ एम सुपर्व तणी प्रजुताई, जो गवे महासती जीव जी ॥ पुनरपि मानव जव पडि वजशे, महा विदेहे तदीव जी ॥ न० ॥ ६ ॥ लदेशे नृप पदवी ससलूणी, जीतशे रियण वृंद जी ॥ विषय तणां सुख निज वनिताथी, छानुनवशे एह अमंद जी ॥ न० ॥ ७ ॥ सह गुरु वाणी श्रवणे सु For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) शे, जाशे थिर संसार जी ॥ परहरी राज्य रा मातेम प्रमदा, याशे शुचि अणगार जी ॥ न० ॥ ८ ॥ पालशे निरतिचारे संयम, अष्ट कर्म कुश करशे जी ॥ केवल ज्ञान महासुख दाता तेह ति हां अनुसरशे जी ॥ न० ॥ एए ॥ करशे सुरवर क मलनी रचना, देशना मधुरी देशे जी ॥ अक्षय प दवीय लीला, परमोदयथी लदेशे जी ॥ न० ॥ १० ॥ एह चरित्र नमया सतीनुं, शील संबंधें गा युं जी ॥ जाणी गेहली नमया थइने, राख्युं शील सवायुं जी ॥ न० ॥ ११ ॥ एह संबंध बे शील कुला में, जो जो सुगुण जगीसें जी ॥ नरहेसर बाहुब लि वृत्ति, प्रगट संबंध ए दीसे जी ॥ न० ॥ १२ ॥ ए संबंध वे साचो पण कोई, कल्पित करी मत जाणो जी ॥ याविर्भूत संबंध छापर जे, कवि रचना ते प्र माणो जी ॥ न० ॥ १३ ॥ धन्य धन्य नमया महा सती केरी, सरस कथा में गाइ जी ॥ कीधी पावन सुंदर रसना, सरस सुखद उपाइ जी ॥ न० ॥ १४ ॥ एह महासतीनी परें कोइ, पालशे शील अनंग जी ॥ ते पण वांबित सुख अनुभवशे, लेहशे ज्ञान तरंग जी ॥ न० ॥ १५ ॥ चोथुं व्रत निवृत्तिनुं कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए४) ण, तेम सौजाग्य प्रदाता जी ॥ यति उपदेशे एम सुखहंती, शील महोदय शाता जी० ॥ न ॥ १६ ॥ नमयासुंदरी केरुं रच्युं बे, चरित्र अनोपम एह जी ॥ कवि कुल को हांसी न करजो, करजो शुचि ससनेह जी ॥न ॥ १७॥ मेंतो सुकवि जरुसो श्रा णी, रास रच्यो बे साचें जी॥ नहीं तो शी मति मा हरी जे हं, होड्य करुं करी वांचे जी ॥ न॥ १७ ॥ तेह कारण ए रास रसीलो, नमया सुंदरीकेरो जी ॥ कंगजरण पणे सहु करजों, पण दूषण मत हेरो जी ॥ न ॥ १५ ॥ विधिमुख शिवमुख कृषि इंड( १७५४) संवत संज्ञा एहजी ॥ मास पोष वदी तेरश दिवसें, उशना वार गुण गेह जी ॥ न० ॥ २० ॥ तुंगया नगरी उपमा पामे, समी नयरी सु विशेषे जी ॥ चतुरपणे चोमासु कीg, सद्गुरुने आदेशे जी ॥ न ॥१॥ तप गब गगन विकाशन दिनमणी, विजयरत्नसूरि राजें जी ॥ रचना रास तणी ए कीधी, आग्रह संघने काजें जी॥न ॥२॥ श्री विजयसेन सूरीश्वर सेवक, कीर्ति विजय उव धाया जी ॥ तस पद पंकज षट्पद उपमा, मान वि जय कविराया जी॥ न ॥२३॥ जास शिष्य क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९५) वि कुल वक्षःस्थल, मंडन नूषण दिव्य जी॥ रूपवि जय पंडित सुपसायें, कीर्ति सुधा सम सेव्य जी ॥ न० ॥ २४ ॥ कृपा प्रसाद लहीने तेहनो, मोहनवि जयें उदास जी॥त्रेसठमी ढाले करी गायो, नर्मदा केरो रास जी ॥ न० ॥२५॥जे को नणशे गणशे सुणशे, ते लहेशे परमानंद जी ॥ मंगल प्राप्ति सदा घर अंगण, शोनशे शोजा वृंद जी ॥ नम् ॥ २६ ॥ घर घर लीला मंगल लही, प्रगटे पुण्य प्रकाश जी ॥ श्रोता जन श्रुतिधरजो सहु को, मोहन वचन वि लास जी॥ न० ॥ २७ ॥ इति श्री पंडित श्री मोहन विजय विरचित्त नर्मदा सुंदरीरास शीलविषये संपूर्णः ॥ शुनं नवतु ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only