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( ३८ )
शेष ॥ स० ॥ जिन साजन सवि संतोषियां, दिन उचित उचित सुलेष ॥ स० ॥ ६ ॥ सहदेव कुटुं व जण कहे, तमें सांनलो माहरी वात ॥ स० ॥ ज्यारे सुता एहनी मातने, हूंती गर्ने विमल विख्या त ॥ ० ॥ ७ ॥ त्यारें एहवो डोहलो उपन्यो, ए हेनी जननीने श्रहो वीर ॥ स० ॥ गयंवरने खंधें चढी करी, जइ खेलुं हो नर्मदा तीर ॥ स० ॥ ८ ॥ वली तेणें तटें नगर वसा विएं, तिरुडं नर्मदा नाम ॥ स० ॥ जो मनमां आवे सहु तथा, जो दोहद गुण अभिराम ॥ स० ॥ ए ॥ दवे कहो तो ए पुत्री नुं दीजीयें, वर नर्मदासुंदरी नाम ॥ स० ॥ दोहद सघला में पूरिया, घरे प्रसवी पुत्री ताम ॥ स० ॥ १० ॥ कहे कुटुंब सयल हर्षे करी, एहनुं एहिज उ तम नाम ॥ स० ॥ नाम नर्मदासुंदरी स्थापिने, सहू पहोता निज निज धाम ॥ स० ॥ ११ ॥ सा सुंदरी पुत्री जणी, लेइ गोद रमाडेसुगेल ॥ स० ॥ सिंचे पय पाणी पानथी, जिम श्रमीए सुरतरु वेल ॥ स० ॥ १२ ॥ आभूषण दिव्य अंगें वव्यां, फ रके टोपी ऊरकशी शीष ॥ स० ॥ बेड पाये घूघरी घमघमे, देखी जननी पामे हीस ॥ स० ॥ १३ ॥
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