SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४४) ले ससनूरी हे स॥२॥ए तटिनीनी हुती अधि ष्ठाता, नर्मदानामे देवी हे ॥ स ॥ रूडे रूपें रमऊ म करती, कुसुम कुटुम्बे सुसेवी हे ॥ स ॥३॥ एकदा नर्मदा नदी उपकंठे, धर्मरुचि मुनिराया हे ॥ स० ॥ निर्मल मन मुनिरह्या काउसग्गे, कोमल कमल ज्यू काया हे ॥ स ॥४॥ लागे ताप तपननो तातो, बूटे अति परसेवो हे ॥स॥ एणीपरें वैराग्य दशायें, चाखे तपनो मेवो हे स॥५॥ ऊलो व्याई ध्याननी ताली, नासायें दृग स्थापी हे ॥सा मुनि सादात्पणे प्रतिनासे, उपशम रसना व्यापी हे ॥ स॥६॥ नर्मदा देवीये मुनिने दीगे, देखी रोष न राणी हे ॥ स ॥ चिंते माहरा तटने कंठे, कुण ए कुत्सित प्राणी हे ॥ स० ॥ ७॥ महेली काया वली मेले कपडे, मुफ तटिनी अजडावे दे ॥स ॥ एहने वेहवराईं वहेतां जलमां, दील मेचुरीसावी हे॥ स० ॥ ७॥ मुनिने दोजवा देवी विरचे, वाघ सिंह विकराल हे ॥ स० ॥ करी जंजा पुत्र उबाली, ते साहमी ये फाल हे ॥ स०॥ ए॥ थक्ष गज शुमा दं मे ग्रहीने, मुनिने उंचो उबाले हे॥ स ॥ पण मुनि अचल महाचलनी परें, ध्यानश्री मन नवि टाले दे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy