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________________ ( १४३ ) नमया श्रति हरखी हश्यामां, निसूणी वयण रसा ल ॥ मोहन विजयें रूडी नांखी, सुडतालीशमी ढाल ॥ १७ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा ॥ नमया तात ति समे, कर जोडी कहे एम ॥ मुक पुत्री नमया सती, थइ वियोगिणी केम ॥ १ ॥ पूरवजव एणें किस्यां कीधां कर्म अघोर ॥ जे एम इहां तहां रडवडी, गुंगी बूटे दोर ॥ पाठांतरे गिरि वन गुहिर कठोर ॥२॥ गुरु कहे देवाणुप्रिय, सांजलो कहुं विरतंत ॥ तु पुत्री बे महासती, गुण एहना नं ॥ ३ ॥ कां कर्म न बूटीयें, विणनोग व्ये कहाय, पूरव जव नमया तणो, सांगलजो हित लाय ॥ ४ ॥ ॥ ढाल अडतालीशमी ॥ वाधाराजा वनरी ॥ ए देशी ॥ गिरि वैताढ्य प चास जोयणनो, पोहलो तेह प्रमाण्यो हे ॥ ससनेही नमया पूरव जव उपदेशे, तेम उंचो पण वीश जोय नो, गम मांहि वखायो हे ॥ ससनेही० ॥ १ ॥ तास शिखरथी नर्मदा तटिनी, पसरी एह जलपूरी हे ॥ स० ॥ सायरपूर जली अवगणती, विमल कम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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