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________________ ( १४२ ) तणी गति एहवी, वली गति कर्मह केरी ॥ ७ ॥ काची काच घटी समकाया, कूडी शी तस माया ॥ पंथी परं विसामो जगमें, कुण दुर्बल कुण राया ॥ ॥ ८ ॥ बे संसार विचारी जोतां, बाजीगरनी बाजी क्षणभंगुर नित्य पदारथ, तो पण होवे राजी॥ए॥ जेम वंध्याए सुहणे दीठो, जाणे सुत मुज आयो ॥ दीधुं नाम विश्वंजर एहनुं, हालरुए हुलरायो ॥ १० जव सा जागी रोवा लागी, किहां गयो में दीगे ॥ ते जेम खोटुं तेम जग खोटो, पण विषया रस मीठो ॥ ११ ॥ इंद्र जाल विद्या रमनारा, रवि सेवक थर जूजे ॥ अंगकरंग घणाघण वीरुथा, जाए तो साधुं बूजे ॥ १२ ॥ नारी पति साथै पावकमां, पेसी वली सती थाये ॥ ए कूडुं तो नहीं केम साचुं, करीने कोथी गायें ॥ १३ ॥ पाणीना पर्पोटा जेहवी, जेम पाणी मांहे पतासो ॥ जेम काचो घट नीरें न रियो, तेवो देह तमासो ॥ १४ ॥ समकित विए ए जीव बिचारो, दोडे बे हा ढुंतो ॥ एणे एकेही नवि मूक्यो, एके ठाम तो ॥ १५ ॥ करशे धर्म ते सुखियां थाशे, दीधो एम उपदेश || रोमांचिंत सवि पर्षद हूई, थयो समकित उपवेश ॥ १६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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