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( १९५) वि कुल वक्षःस्थल, मंडन नूषण दिव्य जी॥ रूपवि जय पंडित सुपसायें, कीर्ति सुधा सम सेव्य जी ॥ न० ॥ २४ ॥ कृपा प्रसाद लहीने तेहनो, मोहनवि जयें उदास जी॥त्रेसठमी ढाले करी गायो, नर्मदा केरो रास जी ॥ न० ॥२५॥जे को नणशे गणशे सुणशे, ते लहेशे परमानंद जी ॥ मंगल प्राप्ति सदा घर अंगण, शोनशे शोजा वृंद जी ॥ नम् ॥ २६ ॥ घर घर लीला मंगल लही, प्रगटे पुण्य प्रकाश जी ॥ श्रोता जन श्रुतिधरजो सहु को, मोहन वचन वि लास जी॥ न० ॥ २७ ॥ इति श्री पंडित श्री मोहन विजय विरचित्त नर्मदा सुंदरीरास शीलविषये संपूर्णः ॥ शुनं नवतु ॥
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