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________________ (१७१) ध० ॥ १५ ॥ धनदत्तने सुर नांखे हो, सांजल्य हुँ ७ ताहरो, पूरव नवनो तात ॥ सुरपुरने सुरलीला हो, जोगवतां श्रवधि प्रयुंजीयो, दीग तुज अवदात ॥ध ॥ १३ ॥ पूरव नवने नेहें हो, तुऊ प्रति बोधन श्रावियो, सारथवाहने वेश ॥अहमांहे मणि कपटें हो नाखिने, तुऊ समजावियो अहो, हित शीख विशेष ॥ ध० ॥ १४ ॥ केम करीने चालीजें हो, बालूडा बूकें पारकी, कीजें मन अनुजाय । घणी घणी शी फेरी हो, जांखीजे तुजने शीखडी, तुजने कहुं बुं न्याय ॥ध ॥ १५॥ सुरवरने व चने हो, प्रतिबज्यो धनदत्त हियडे, दीगे तात सनेह ॥ देवें एक अनिमेषे हो, वनहुँती धनदत्त श्राणीयो, जीहां पूरव निज गेह ॥ध १६ ॥ गृह मांहे मणि माणिक हो, सोनुं ने रूपुंसामटुं, प्रग व्यो फाकफमाल ॥ उपन्नमी रतनाली हो, सुगुणीने हेतें ए कही, मोहनविजयें ढाल ॥ध ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥दोहा॥ . ते सुरवर धनदत्तने, सोंपी धण कण धाम ॥ प्रतिबोधी सुरपुर रमा, श्राजरणीकृत ताम ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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