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(४७) एक सदन शाकिनी पण बोडे, श्राणी संबंधनी ला ज ॥श्रा०॥५॥ चक्री पण तेम चक्र न मूके, बांध बताने जेम ॥ पोतार्नु वली पारकुं प्री, पशुउँ पण ए तेम ॥श्रा ॥ ६ ॥ तुमें जे पुरमांहि वसो हो साचुं कहो ससनेह, डे सघलां ए लोक धूतारां, के तुमारूं गेह ॥श्रा०॥ तुमा प्राप्ति अन्य व्यापि रे, शुं कांश नवि थाय ॥ जे एम मूसे लोक पराया, केम ए आवे दाय ॥आ॥॥॥ नीचे पानने सांजली बोल्यो, मामाजी महाराज ॥ ए जवेखो कांश श्रलेखे, श्रांगण श्राव्या श्राज ॥था ॥ ॥ए॥ एक जूंडे शुं सघलां जूंडां, जाणो बो देव दयाल ॥ आंगुलि पांचे होवे न सरखी, कोश् मोटी को बाल ॥ श्रा० ॥ तात सरीखो जात न जाणो, केश धनी के रंक ॥ रावण मंदिर पुंजतो वायु, हनुए लीधी लंक ॥ आ॥ ११॥ वसुदेवने कंस नरेशे, राख्यो कारागार ॥ काढ्यो तिहाथी पुत्र मुकुंदे, मातुल दीध प्रहार ॥श्रा ॥ १२॥ न होवे पुत्र में ताततणा गुण, मानी त्यो निर्धार ॥ दो जीहो विषयी जन पीडे, कीधो मणि उपकार॥श्राप ॥ १३॥ खारो पयोनिधि मानव जाणे, पुत्र शशी
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