SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४६) मायने, परणी जग प्रसिक ॥३॥ ते तो पुत्री तुक जणी, कहो सुत सोंपे केम ॥ तुज जननी ते शोकमें, चिंतातुर जे एम ॥४॥ पुत्र कहे हुँ तिहां जश, प रणीश करी प्रपंच ॥श्रम कुल एहिज रीत बे, तेह मांशी खलखंच ॥५॥शकट नरी बहु वस्तुथी, तुरत महेश्वरदत्त ॥ चाख्यो श्राव्यो अनुक्रमे, वर्षमान पुर ऊत्त ॥६॥मामाने दीधी खबर, जे श्राव्यो जा णेज ॥ ते निसुणी घर तेडियो, ईषत थाणी हेज॥७॥ ॥ ढाल पन्नरमी॥ श्राव्य धूतारा नंदनारे, तें धूत्युंगोकुल गाम ॥ ए देशी ॥ हिये थालिंगीने मल्या जी, मामो ने नाणे ज॥ केम कृपा करी पत्तन एणे, जी जांखो आंणी हेज ॥१॥आव्य धूतारा रुजना रे, तुं कुशल कहे वात ॥ एक वेला ताहरे तातें, देखाड्या पराक्रम ॥ तुमें पण जे गेहे पधास्या, शुंजी करशो तेम ॥२॥ अमे एकज वार धूताणा, हवे धूताशुं केम ॥ जाण्यो ग्रह पीडे नहिं क्यारे, उखाणो एम ॥३॥ ॥ पावक उपरे काठनी हांडी, चढे एकज वार, तारक बिंबे हंस लोलाणो, मोती न चूगे फेर ॥ आ॥४॥ हमणां तो आपणे बे सगाई, मया करो महाराज ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only __www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy