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(४५) प्रत्यक्ष पार, नावीनो संसार रे॥ मो॥ तमे मि थ्यात्वी हुं श्राविका, केम थयां स्त्री जरतार रे ॥ मो०॥ ले ॥ मो० ॥ १३ ॥ जे लख्या विधियें श्र दरा, ते कुण टाले जत्ति रे ॥ मो० ॥ एहवे रमतो श्रावीयो, पुत्र महेश्वर दत्त रे ॥ मो॥ ॥ मोक ॥ १४ ॥ कर जोडी कहे तातने, करो बो केहो वि चार रे ॥ मो० ॥ केम सचिंती मुक मावडी, कहो मुझने एणी वार रे॥ मो॥ ले० ॥ मो० ॥ १५ ॥ केणे पुहवी एवडी, के केणे दीधी गाल रे॥मो॥ हठ करी मांड्युं पूबवा, जननी उमनी नीहाल रे ॥ मो॥ ॥ मो० ॥ १६ ॥ नाखशे रुजदत्त बोल डा, सांजव्य सुत सुकुमाल रे॥ मो० ॥ नांखी मनो हर चौदमी, मोहन विजयें ढाल रे ॥ मो॥ ले० ॥मो० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा.
॥दोहा॥ - रे वत्स मामो ताहरो, नाम जलो सहदेव ॥ तस घर पुत्री नर्मदा, अ सयल गुण मेव ॥१॥ काने निसूणी नर्मदा, तव माताए आज ॥ तेहने तुफ प रणाववा, वां वे माताज ॥२॥ हुँ तिहां नवि जा ई शकुं, में तिहां कैतव कीध ॥ थश् श्रावक तुक
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