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________________ - ( ८६ ) दी से बे शीतल दीसतो रे, पण पावकथी पुरंत ॥ मा० ॥ मोलुं दही जेम पीवतां रे, जेम होय शीत लदंत ॥ मा० ॥ चां० ॥ ए ॥ कांक करुणता राखी यें रे, कठिण न थइए मामूर ॥ मा० ॥ तो जग दीश जलूं करे रे, साहिब हाजरा हजूर ॥ मा० ॥ चां०॥ १० ॥ कांइक कीजे संचारणं रे, कांश्क कीजे उपकार ॥ मा० ॥ दीजे जश्ने उलंजडो रे, जिहां होय मुऊ जरतार ॥ मा० ॥ चां० ॥ ११ ॥ मूंडा तुं अंबर संचरे रे, तुजने शी लागे वार ॥ मा० ॥ नाह कठोर मेहली गयोरे, जो तुं नयण उघाड ॥ मा० ॥ चां० ॥ १२ ॥ जे कोय वेरी करे नहीं रे, तेम करी नागे कंत ॥ मा० ॥ जो तुं मेलावो मे लवे रे, तुं मुक वीर महंत ॥ मा० ॥ चां० ॥ १३ ॥ एम विलपे ते व्याकुली रे, तेहवे विहाणी रातरे ॥ मा० ॥ चंद बूप्यो रवि ऊगम्यो रे, सुंदर हूर्ज प्रजा त ॥ मा० ॥ चां० ॥ १४ ॥ वल्ली थी नीकली रे, आव महोदधि तीर ॥ मा० ॥ निसासो जरती थ कीरे, त्यां कुण जाणे पीर ॥ मा० ॥ चां० ॥ १५ ॥ पियु पियु करी नमया रडे रे, नाद मलो एक वार ॥ मा० ॥ वली चित्तडाथी चिंतवे रे, किहां मले व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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