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(४ए) तुरत, हसी महेश्वरदत्त ॥ स्वामी तुम्म पसायथी, सघली डे संपत्त ॥३॥ जो करुणा पूरण करो, शनि त जो द्यो मूऊ ॥ तो ए नमया सुंदरी, परणावो कई गूज ॥४॥ एहज अर्थ हुं शहां, आव्योढुं महारा ज ॥ हवे जेम जाणो तेम करो, बांहि ग्रह्यानी लाज ॥५॥
॥ ढाल सोलमी॥ __ गश्ती पीयरीएने आविती रीसा ॥ ए देशी॥ वाणी सुणीने बोल्यो तिहां सहदेव, तुतो मिथ्यात्वी अमें श्रावक सुसेव ॥ महारा नाणेजा हो राज ए हेवू म बोल ॥१॥ तुळजनक गयो अमने नोलाय, ते उपरें पुत्री केम देवराय ॥ म ॥ एक वेला दा ऊयो उधश्री जेह, बास नणी फुकी पीये तेह मा॥ विषधरथी जे बीहिनो कोय, दोरडीये कर घाले जोय ॥ मा ॥२॥ विलखे वदने तव कहे नाणेज, एम एकाएक केम तजो हेन ॥ म० ॥ तुम नगिनी नु पयोधर खीर, में पीधुं थश्ने धीर ॥ म॥३॥ ते केम होश मिलादीह, पढें तो तुमे जो सु गुण गरिठ। म ॥ तुमे जाणो जे खरं अहो हित वान, गज केम श्रावे काल्यो कान ॥ म ॥४॥मा
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