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________________ (५०) तुलें नाणेजसुं चारु गंह, नर्मदासुंदरीनो कीधो वि वाह ॥ म०॥ परण्यो सयल मनोरथ सिफ, काचित दीवसे सीखडी लीध ॥ म॥ ५ ॥ नर्मदासुंदरी बेश संग, अनुक्रमे श्राव्यो निजपुर खंग ॥ म॥ मात पिताना प्रणम्या पाय, पगे लगाडी सा हित लाय ॥ म॥५॥ज्ञषिदत्ताए नमया बाल, दीठी सुपरें नयणें निहाल ॥मा०॥ कुशलप्रश्न प्रख्या तेपी वार, सज थ कह्यो सयल विचार ॥ म ॥७॥न मैदासुंदरी महेश्वरदत्त, नोगवे जोग विविध बहु जत्त ॥ म॥ दंपती प्रीति परस्पर लीन, - जेहवी प्रीति होवे जल मीन ॥ म०॥ ॥ एकदा नर्मदा विनवे शाह, स्वामी जैनधर्म वाह वाह ॥मोरा सहे जाहो नाह, कुमति निवार ॥ ए श्रांकणी ॥ जिनवर नक्ति करे निशदीव, दीवे मूरती सुप्रसन्न होय जीव ॥ म॥ ए॥ जिननी जक्ति रावण ऐकंत, ती थंकर पद प्राप्यु कहंत ॥ म०॥ जिनदरिसणथी हुये उकार, देश अनारजें श्रार्डकुमार ॥म ॥१० जिनपूजा फल अधिक अनंत, शिवसुख साधन ने एकंत ॥म ॥ जेणे जिननक्ति न कीधी सार, तो धिक तस मानव अवतार ॥ म० ॥११॥ तरण ता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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