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________________ ( ५१ ) रण प्रभु कहेवाय, सेवे सुर नर जेहना पाय ॥ म०॥ जिन दरिस बे शिव सोपान, जिनथी बीजा केहो मान ॥ ० ॥ १२ ॥ कुण ब्रह्मा कुण विष्णु महेश, वीतरागथी नहिं ते विशेष ॥ म० ॥ तुलसी पीपल पूजे लोक, खोटा प्रयास नियामक फोक ॥ म०॥ १३ जे देवताने प्रमदाथी प्रेम, केम ते तरशे वली ता रशे केम ॥ ० ॥ क्रोधादिक वर्जित महानाग, ते तो एक छठे वीतराग ॥ म० ॥ १४ ॥ निसुणी न र्मदासुंदरीनी वाण, कंतें जिनधर्म कीध प्रमाण || म० ॥ ऋषिदत्तादिक कुटुंब सकोय, जिनजक्तितें बेवगं होय ॥ म० १५ ॥ स्थापी जिनप्रतिमा सहु गेह, पूजे प्रतिदिन आणी नेह ॥ म० ॥ टल्युं मिथ्या त्वने प्रकाश्युं समकित श्रावक दुर्ज महेश्वरदत्त ॥ म० ॥ १६ ॥ करणी उत्तम करतां दिन जाय, धर्म थकी नित्य रुडुं थाय ॥ म० ॥ मोहनविजये य उजमाल, नांखी सुंदर शोलमी ढाल ॥ म० ॥ १७॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥ एकदिन नमया सुंदरी, बेटी निज वातायने, थइ आमायागार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only * > सोल सजी शणगार ॥ १ www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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