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________________ (५२) दर्पण लेई करकमल, निज श्रानन निरखंत ॥ सहि यर पण तस रूपने, पेखी अति पुलकंत ॥ २ ॥ तं बोलेकरी मुख जखुं, यति सुशोजित अंग ॥ वि चम चारु विलासयी, बेठी घरी उमंग ॥ ३ ॥ ए हवे रवि मंगल गयण, मध्ये श्राव्यो जाम ॥ मास खमण पारण मुनि, गोचरी पहोतो ताम ॥ ४॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए देशी ॥ पावक जेहवो रे श्रातप परजले, पूवी देवाय न पायोरे ॥ बादरकायारे तापें पराजव्यो, बायाए ते जायो रे ॥ १ ॥ गति कोइ अजिनवी, जगमें क र्मनी ॥ सवि चितहमें जाणेरे ॥ विषजोगवियां रे बूटे नहीं, कवियणे एम वखाणे रे ॥ ग० ॥ २ ॥ तेणे अवसरें पुरमें परवस्या, व्रतधर सुंदर एह रे ॥ खूला पयतल ऊन्ही वालुका, तो पण निश्चल नेह रे ॥ ग० ॥ ३ ॥ जग्न शकटपरे अस्थि खडद हे, काम उदर हग नीचे रे ॥ जयणायें करी हलूए पय ग्वे, प रसेवे जूंइ सिंचे रे ॥ ग० ॥ ४ ॥ धन्य धन्य एहवारे जगमें मुनिवर, जे परने हित वांबे रे, निज काया नेरे जाणे कारिमी, तप तापें तनु तीबे रे ॥ ग० ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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