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श्राशिष विख्यात ॥ सु० ॥ स० ॥ १५ ॥ आव्यो शा ह उतावलो ॥ ७० ॥ मेरे थई उजमाल ॥ सु० ॥ सं० ॥ एकही साडत्री शमी ॥ सा० ॥ मोहन विजयें ढाल ॥ ० ॥ ० ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ॥ दोहा ॥
व्यो नमयानो पिता, मेरामांहि जेवार ॥ न मया सुंदरी पुत्रिका, दीवी नहीं तेवार ॥ १ ॥ अर ही परही अंगजा, जोइ घणुं ए तेण ॥ पण नमया लाने नहीं, खबर न जाणी केण ॥ २ ॥ शाह करे आलोचना, कुण पदरी गयो एह || एमाण चिं ति किहां गई, हूंती पुत्री जेह ॥ ३ ॥ बब्बर कूलें घर घरे, जोई नमया तात ॥ पण नमयानी सोहणे, को इन जाणे वात ॥ ४ ॥ सेवकने लंगडा, देवे नमया तात ॥ राथी मुऊ अंगजा, किणें अपहरी कहो वात ॥ ५ ॥ शुं जाएं सेवक कहे, अमने न थइ व्य ति ॥ मानव तो कुणापहरे, थइ कोइ दैवी शक्ति ॥६॥ ॥ ढाल यात्री शमी ॥
फूलडी काजल सारे राज, देखो जमर नजारा मामारे राज ॥ मृग नयणी नागरी फूली ॥ ए देशी ॥ नमया तात विचारे राज, क्षण
में पुत्री संजा
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