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________________ (११५) रे राज, केम विसारे कहो ॥ गुणवंती ॥ ए आंक णी ॥ कर्म कठिन धीय केरां ॥ रा॥ केहवी करे घेरां ॥ रा० ॥ कि० ॥ १॥ एक तो पीयुडे मूकी॥ रा॥ वनमाहीथी विगर सलूकी ॥ रा० कि० ॥ हुँ तिहाथी लश्श्राव्यो॥रातो ते सूतो सिंह जगाव्यो ॥रा ॥ कि ॥२॥ अपहरी जे ले गयो कोश ॥रा० ॥ पुरमांहिंतो घणुंए जो ॥रा०॥ कि० ॥ पुत्री गश् वली हासो ॥ राण ॥ एतो कोश्क हुई त मासो ॥रा ॥ कि० ॥३॥दुःख धरतो ते व्यव हारी॥रा ॥ तिहां तेड्या ताम वेपारी॥राम्॥ कि० ॥ वेची करीयाणां सीधां॥ रा० ॥मुह माग्या पैसा लीधा ॥ रा ॥ कि० ॥ ४ ॥ प्रवहण सवि स ज कीधां ॥रा ॥ सवि साथ बेसारी लीधां ॥रा ॥ कि० ॥ बब्बर कूल निवारी ॥रा ॥ प्रवहण ते मेव्यां हकारी॥रा॥ कि० ॥ ५॥ अनुक्रमें जरु अच्च श्राव्या ॥रा ॥ सायर तटें पोत बीपाव्यां. ॥रा०॥ कि० ॥ नृगुकछमाही धर्मधारी ॥रा॥ जिनदास अडे व्यवहारी॥रा ॥ कि० ॥६॥ न मया तातनो तेही ॥ रा॥ परिपूरण अबेय स नेही. ॥रा ॥ कि० ॥ वाहणने श्राव्यां जाणी, Jain Educationa International www.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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