________________
(७०) तस दीरघदल बहु डोले हो ॥ कं० ॥ ढुंबी बी रहीयां, फल मोटो रस महम हियां हो ॥ कं० ॥५॥ महोटुं सर जले जे जरीयु, जेम नानकडो ए दरीयो ॥ कं० ॥ शीतल जूमी जे सूहावे, पंखीपण रमवा आवे हो ॥ कं० ॥६॥ ते सरपाले बेग, पियु प्र मदा बीहु एकेगं हो ॥ क० ॥ पीयुडे मांडी माया, पण कांशए न जाणे जाया हो ॥ कं० ॥ ॥ गूढ कपट कुण जाणे, ब्रह्मापण नविडं पीगणे हो ॥ कं० ॥ पडें प्रमदा पत्नणे, पियु पोढो जागीस हवे खांणे हो॥ कं० ॥७॥ कहे पीयु पोढो नारी, यहां बेगे बुं धीरज धारी हो ॥ कं० ॥ पोढी नाह जरो से, तेणे सुख निमा ग्रही होंशे हो ॥ कं०॥ ए॥ व निता सूती जाणी, चिंते पियु कपटनो खाणी हो॥ कं० ॥ जो हणुं एहने तेगें, तो पातक लागशे वेगें हो ॥ कं० ॥ १०॥ एह सूती के नारी, जो मुंकुं तो होये सारी हो ॥ कं० ॥ एहने यहां परिहरवी, यहां ढील न कांच करवी हो ॥ कं० ॥ ११॥ कर्म कहो केम चूके, जुढे प्रमदा प्रीतम मूके हो ॥ कं० ॥ नु जंगनी ब्रांते बाला, जूर्व नाह तजे सुकुमाला हो ॥ कं० ॥ १२ ॥ वनिता मूकी वनमें, कांश करुणा ना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org