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________________ (६ए) तें परवख्या, लोक सयण तिण उगम ॥ एहवे बल लाध्यो जलो, महेश्वरदत्तने ताम ॥३॥ कहे न मयाने हे प्रिये, जश्य वनह मकार ॥ तुरत फरी ने आवशुं, होशे जमण तैयार ॥४॥ देखशुं कि हां ए छीपने, फरी फरी नयणे तेह, जीव्याथी जो युं जलूं, मान वचन धरी नेह ॥५॥ अति जोली नमया सती, कपट न जाणे तास ॥ साथें थर प्राणे शने, श्रावी वनह निवास ॥६॥ ॥ ढाल वीशमी॥ देशी बिंदलीनी ॥ करथी कर ग्रही आडे, निज त्रियने वनह देखाडे हो ॥ कंत महाकपटी ॥रे प्र मदा तुमें देखो, ए सायरतट सुविशेषो हो ॥ कंग ॥१॥ तरु केहवा जंचा, जेम वासगमणीना ए पे खो पहोंचा हो ॥ कं० ॥ तरुथी वेलि वीटाणी, जे म अहिंसाधर्मथी जाणी हो ॥ कं० ॥२॥ ए सुर तरु मन मोहे, जगतीशिरबत्र ज्युं सोहे हो ॥कं०॥ केहबुं ने वन ए दीकुं, मुजने लाग्युं मी हो ॥ कं० ॥३॥ चालो तमें आगल नारी, तीहां होशे कौतु क जारी॥ कं० ॥ दंपती आघां चाल्यां, वर कदली वनमें माल्यां हो ॥ कं० ॥४॥रंजा पवनें को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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