________________
(७१) वी मनमें हो ॥ कं० ॥ दोड्यो बांधी मूठी, फरीन करे नजर अपूठी हो ॥ कं० ॥ १३॥ नारी उवेखी नाखी, जेम घृतमांथी मांखी हो ॥ कं० ॥ प्रवहणे दोड्यो आवे, जून केहवी बुझि उपावे हो ॥ कं०॥ १४ ॥ बोल्यो श्वासे नराणो, हलफलतो मांड खेदा णो हो ॥ कं० ॥ रे लोको सज था, एणे प्रवहणे दोडी जाउँ हो ॥ कं० ॥ १५ ॥ ताणो पट शुं विचा रो, जलनिधिमां पोत हंकारो हो ॥ कं०॥ नोज न वहाणमां करगुं, पण नऊ शहांथकी वलगुं हो ॥ कं० ॥ १६ ॥ ढील करो बो कांश, सज था वहे ला ना हो ॥ कं० ॥ एह त्रेवीशमी ढाल, कही मोहन विजयें रसाल हो ॥ कं० ॥१७॥ सर्व गाथा.
॥दोहा॥ पडतो धूजतो यको, कहे महेश्वरदत्त ॥ जून ए आवे अबे, रजनीचर के ऊत्त ॥१॥ दंतुर वली दीरघ अधर, कर आयुध विकराल ॥ केश विबूटे कांबरे, उ आवे ऊंघाल ॥२॥ ऊडे रज अंबरे, चरणे धमके नूर ॥ आवे उतावलो, जेम पयो निधि पूर ॥३॥ शुं बल कीजें एहथी, एह पुलिंद प्रचम ॥ मुऊ वनिताने पापीए, कीधी खंडो खंड।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org