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(१) रजले, तिहां नर केहो नूर ॥ दद्ये दावानल जिहां, तिहां केम होय अंकूर ॥४॥ मानव कवण सही श के, विरह नुयंगम जब॥ जाली जंडी नीकले, पण न लडं विरहास ॥५॥ विरह.वज्र वंचे कवण, विरह कुःख न सहाय ॥जाख लताश्री वीउडे, तेम तेम पुर्बल थाय ॥६॥
॥ ढाल सत्त्यावीशमी॥ शुक देव कहे रे उपाय, तुमें सांजलो परीद त राय ॥ ए देशी ॥ हवे नमया सुंदरी नार, मुके नयणथी आंसूधार ॥ पडी शोचना सरित मकार, विरहें थर व्याकुली रे ॥ कुण जाणे पराश् पीर ॥ जस वीचे ते सहेज शरीर, विरहीनो विरह गहीर॥ विण ॥१॥ फिरे वनमां मृगली जेम, जिहां विरह तिहां धीरज केम ॥जीहां प्रीत तिहां गति एम ॥ वि०॥२॥ करी प्रीति निवाहे कोय, करी एकं गो ताणे लोय॥पड़ी तेहनी एह गति होय ॥वि॥ ॥३॥ एकंगो पतंगने नेह, थई रसीयो ऊंपावे देह ॥ पण दीपक न गणे तेह ॥ वि०॥४॥ करी प्रीत निवाहे कोय, तेतो विरलो कोश्क होय ॥ तस पीजें पयतल धोय ॥ वि०॥॥ जे उत्तम जननी
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