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(ज) रे, हुर्बु जे लखीयु ललाट रे ॥ मुनिवरनुंजे लांख्यु तेह खलं थयुं रे, जल वही श्राव्युं वाट रे॥ नाग ॥ १३ ॥ दैवे जो पांखडली दीधी होत जो रे, तो जश् मलती कंत रे ॥ केम जश्ने मलीयें आडो सा यरु रे, सायरु तेम तदंत रे ॥ ना० ॥१४॥ पियुडा ने उलूंडी आवे मनमें रे, नारी निगमे केम दीह रे ॥ उपाडी नाखी विरहपयोधिमां रे, मी बोलतो केम जीह रे॥ ना ॥ १५॥ थानारूं ए लख्युं एह नाग्यमां रे, वालिम ताहरो विजोगरे ॥ इहां को कोश्नो वांक को नहीं रे, पूर्व कर्मनो जोग रे॥ ना॥ १६ ॥ जंगल में पण मंगलमाला होयशे रे, शील थकी सुविशाल रे॥ पत्नणी एमनमानी बबीश मी रे, मोहन विजयें रसाल रे॥ना॥१७॥ सर्व गाथा॥
॥दोहा ॥ ... नमया बेह देश गयो, नाह महेसरदत्त ॥ अब ला फूरे एकली, सायर तद संसत्त ॥१॥ विरह म होजो केहने, विरह उस्सह दीठ ॥ धरणी पण शत खंड हुवे, जल विरहे उकिछ॥२॥ वहद विरह थ थाह जल, थाह न लग्ने कोय॥ कां न हुईं ताहरु मि लण, जंगल नेटण होय ॥३॥ जिहां विरहानल प
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