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________________ (२३) सो हो ॥ रू० ॥ १० ॥ दणएक विलंबी साजन रु अदत्त बोल्यो, शाहजी अमें परदेशी हो ॥ रू० ॥ जाण्या विहूणा साजन पुत्री केम देशो, जू हृदय गवेषी हो ॥ रू० ॥ ११ ॥ सार्थपति नांखे साजन तुमने पिगण्या, डो साधर्मिक मोरा हो ॥ रू० ॥ रूप गुणे करी साजन जातिज जाणी, तेणेकरी क रीये लिए निहोरा हो ॥ रू० ॥ १२ ॥ कन्या वस्या विण तुमें किहां जाशो, नूलामणी नवि कीजे हो ॥ रू० ॥ कपटी पयंपें साजन वारु वरेशुं, केम तुम ने पुहवीजे हो ॥रूप॥ १३॥ हरख्यो सुणीने सार्थ प निज घरे श्राव्यो, कीधी सखर सजाई हो ॥ रू० ॥ लग्न बेवाये साजन चोरी बनाई, बहें, वीच वधाई हो ॥ रू० ॥१४॥ धवल मंगल साजन सखर सोहाये, सोहेलां सखरां गवाये हो ॥ रू०॥ गय वरघोडे साजन लीध जमा, तोरण मोतीडे वधा ई हो ॥रू॥ १५ ॥ होम हवन साजन तव निरमा २, हिजमुख वेद पढाई हो ॥ रू० ॥ चार मंगल साजन तिहां वरताई, अनिगत फेरा फराई हो ॥ रू० ॥ १६ ॥ कपट श्रावक साजन साहस हेजे, कृषिदत्ता परणाई हो ॥ रू० ॥ ढाल सुरंगी साजन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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