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________________ ( २४ ) सातमी जांखी मोहन वचन सवाई हो || रू०॥ १७ ॥ ॥ दोहा ॥ परणी कपटी श्रावकें, ऋषिदत्ता तेणीवार ॥ उ त्सव महोत्सव करी घणा, वरत्या जयजयकार ॥ ॥ १ ॥ धन बहु दीधुं दायजे, कापड भूषण कोडि ॥ रुद्रदत्त दंनी तणा, पहोंता सघला कोम ॥ २ ॥ दंजी सा कन्या वरी, गयो कुबेरदत्त पास ॥ वात कही सघली तिसे, आणी मन उल्लास ॥ ३ ॥ केद वि परणी कपटें करी श्रावक पुत्री आज ॥ बे मुजरो तुम मित्रने, अहो मित्र महाराज ॥ ४ ॥ कुबेर दत्त समरथ थर, दस्यो करतल प्रास्फाल ॥ कहे धन्य धन्य तु बुद्धिने, कपट सरोवर पाल ॥ ५ ॥ दिन केते कपटी हवे, हाथ करी निजदाम ॥ शीख हे ससराकने, विनय करीने ताम ॥ ६ ॥ ॥ ढाल आमी ॥ मारे गणेहो राज, बेला मारु वावडीजी ॥ ए देशी ॥ जो जो कपटी हो राज, कहे करजोडीने जी ॥ निज ससराने इसी तेह, गुणवंता जी ॥ मूज दीजें हो राज, सदन जणी शीखडी जी ॥ ए यांक णी ॥ इहां श्राव्यां हो राज, दिवस केइ थइ गया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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