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( २५ )
जी ॥ तुम साथै यो बहु नेह ॥ गु ॥ मू० ॥ १ ॥ माहरे मंदिर हो राज, जोतां दशे जे वाटडी जी ॥ वली श्रावशुं इण पुरमांदे ॥ गु० ॥ दिशि खाट्या बुं हो राज, इहां तुम शुं मलीजी ॥ घणुं जाणजो थोडा मांहि ॥ ० ॥ ॥ २॥ श्रम लायक हो राज, होय कारिज जि कोजी ॥ लखी मोकलजो तुम्हे ते ॥ ० ॥ श्रमयी अंतरहो राज, तुमे मत रा खजो जी, थें तो नवल निवाहो नेह ॥ गु० ॥ मू० ॥ ॥ ३ ॥ तिहां रह्या पण हो राज, में बुं तमारडा जी, तुमे कीधा महोटा श्रम्म ॥ गु० ॥ माहरे नयरे हो राज, किवारे पधारशो जी, जो न श्रावो तो तुमने सम्म ॥ गु० ॥ मू० ॥ ४ ॥ एणी पुरमांहे हो राज, श्रम सुखीया थया जी, रखे मूको कदीरे वी सार ॥ गु० ॥ तुम जहेवा हो राज, धर्म सनेही नवि मीले जी, कुंण मलशे श्रमयी एवार ॥ गु० ॥ मू० ॥ ५ ॥ जिनयात्रा हो राज, समयें संजारशुं जी ॥ तुमे साह जी सुगुण विश्राम ॥ गु० ॥ एम कपटी हो राज, करे लटपट घणीजी ॥ सुणी बो व्यो वृषनसेन ताम ॥ गु० ॥ मू० ॥ ६ ॥ किहां चा लशो हो राज, करी प्रीत एवडी जी ॥ मूखे कहो
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