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( १२० ) ॥ ढाल तालीशमी ॥
हुं तु वारुं कान जावा दे ॥ देश ॥ हुं तु वारुं गणिका जावा दे, माहरो सनेही वादलो रह्यो बे दूर रे ॥ मूक मारो केडलोने, रही बुं हजूर रे ॥ मुने जावा दे || हुं० ॥ कां नवि जाणे मूंडी, कारिमो संसाररे, रे रे तुं दाऊलाने कां दीये खार ॥ मू० ॥ हुं० ॥ १ ॥ जेहने सुहायें तेहने जांखीयें एह रे, सूणी हवी वातडीने कंपेबे देह ॥ मू० ॥ गणिकायें विचार एतो सीधी न विजोय रे, एहने देखाडुं जीति तो वश होय ॥ मू० ॥ हुं० ॥ २ ॥ जांडनी जेंस मांगे प्रासु तेह रे, तिलने पीव्याविना नव ये सनेह || मू० ॥ सीधी गलीए क्यारें, नवि नीकले क्षीर रे ॥ sai को बोडावा वे बे जीर ॥ मू० ॥ हुँ० ॥ ॥ ३ ॥ मादरे व प्रावी तें किहां जाय रे, एक वार पूढं एहने वातडी बनाय || मू० ॥ पेट पलुंसी शाने शूल उपाय रे ॥ कडुळं महोरुं जोतुं यतिमथ्युं थाय रे ॥ ० ॥ ० ॥ ४ ॥ जी जी करतां तुंतो थायबे शेर रे, कां हर एवडो तुंता बे फेर ॥ ० ॥ नहिंतो हुंए तुने चाबकानी ठगेर रे, घाली एपी कोटडीमां कूटी श जोर ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ५ ॥ एहवे गणिकानी कूखें
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