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( १३० )
उपन्युं शूल रे, जीवडलो मोंघो हूर्ज तस प्रतिकूल ॥ मू० ॥ शील सुरंगा केरो महिमा जगमांय रे, शील सखाइ तेहने केम दुःख थाय ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ६॥ गणिका तो पहोंती तिहांथकी कोइक गतिमांय रे, जे जे करे बे तेहने शी गति थाय ॥ ० ॥ उत्जी या लोचे नमया सुंदरी ताम रे, थोडेशे देतें ए तेणें श्यां कस्यां काम ॥ ० ॥ हुं० ॥ ७ ॥ जगमां जीव्यानो जनने एह विश्वास रे, मांडीने बेसे बे एवी झूठी जूठी आश, ॥ मू० ॥ दवणां ए बैठी हूंती होयने नाथरे, पण को सनेही एहने नवि दुई साथ ॥ मू० ॥ हुं० ॥ ७ ॥ ऐ ऐ केहवो बे एहवो जूठो संसार रे, मूकीने जोवंता गइ एहवां आगार ॥ मू० ॥ जूठानो जरुंसो एतो केटलो करायरे, साचा रेसनेही मोटा खोटा हूया जाय ॥ मू० ॥ हुंगाणा एहवी जूरेबे उनी नर्मदा नारी रे, गणिकानो रा जाने पहोतो संदेशो तेवार ॥ मू०॥ राजाए विचाखुं veg गणिकाकेरो माल रे, आव्यो बे अजाण्यो हाथ धातुं निहाल ॥ मू० ॥ हुं० ॥ १० ॥ जग मां जीव्यानो महोटो नेहो निर्धार रे, नहीं तो निःस्नेही सहूको क्षीणके मकार ॥ मू० ॥ सेवकने
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