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________________ (१७) रीवडो ॥ तेम धन तृष्णा माटे, अटे ए जीवडो ॥ जेणे जिमणे हाथे, करी धन वापसुं॥ तेणे सुरगति द्वार, सहि करी आचमु॥ १३ ॥ दान थकीज गृ हस्थ, करे शुचि आतमा ॥ पुष्कर तप तपि शुभ, इये महातमा ॥ समकित रत्न अमूल, तणो खप कीजीयें ॥ वली उपशमरस स्वाद, करीने पीजीये ॥ १४ ॥ एम निसुणी उपदेश, कहे रुरुदत्त हसी॥ अहो गुरु समकितवात, हवे चित्तमां वसी॥ पांच मी ढाल रसाल,आनंद उपजावती ॥ मोहन विजयें रंग, कही मन नावती ॥ १५ ॥ सर्व गाथा. ॥ दोहा॥ __ रुदत्त कर जोडीने, नांखे गुरुने हेव ॥ सूधो श्रावक मुजकरो, दीन दयालु देव ॥१॥ दिन एता जूलो जम्यो, पाम्यो हवे जिनधर्म ॥ शीखवो श्राव कनी क्रिया, दया करी गुरु हर्म ॥२॥ मूक्युं हवे मिथ्यात्वने, दीन पिता महाराज ॥ उदय थयो समकिततणो, अंतरंग दिनराज ॥३॥ सुगुरुये जाण्यु ए सुगुण,दिसे मानव कोयलाल वरं श्रावक करी, जेम लहुँ कर्मी होय ॥ ४ ॥ श्रावकधर्म तणी क्रिया, सयल शीखावी ताम ॥ रुदत्त हरख्यो हि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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