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( १८ )
ये, सफल हशे हवे काम ॥ ५ ॥ जेम करिवरें पी धी सुरा, जेम पाखस्यो मृगराज ॥ तेम कपटी बार्के चढ्यो, वरवाने ससमाज ॥ ६ ॥ ॥ ढाल बडी ॥
राजा जो मिले ॥ ए देशी ॥ रुद्रदत्त विषये थ यो लीन, मांस पेशीथी जेवोज मीन ॥ धिक् धिक् कामने ॥ जेणे धूत्यो अखिल संसार, धिक् धिक् का मने ॥ एांकणी ॥ नर सुर असुर अपर पण जाए, कामें तास मनावी आण ॥ध॥ १ ॥ कौशिक दिन कर वायस चंद, देखी न शके कहे कविवृंद ॥ धि० ॥ पण कामी जन रजनी दीस पेखे नहि नहिं ए जग दीश ॥ धि० ॥ २ ॥ पंचानन करिवर हि थोक, जीते जबली बहु लोक ॥ धि० ॥ जे जरा जीरु जीते घरी टेक, नर कोडीमां कोइक एक ॥ध॥३॥ परशस्त्र बेदे सूर सपराण, पण बेदे कोइ मनमथ बा
॥० ॥ कामे कुण कुण न कय काम, कामे न गंज्या तास प्रणाम ॥ धि० ॥ ४ ॥ हवे रुद्रदत्त कृषिसंग निवारि, हू कपट श्रावक तेणी वार ॥ धि० ॥ श्रव्यो वृषनसेन तो गेह, मिलियो कपटी आणी नेह ॥ धि० ॥ ५ ॥ नीपट घणी कीधी मनुहार,
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