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(१ए) दीवू श्रासन सार्थेशे तिवार॥धि॥ किहांथी श्राव्या जाशो किहां मित्र, नाम कहो तुम कवण पवित्र ॥ धिम् ॥६॥ण मंदिर करुणा करी केम, नांखो जेहथी जाणुं जेम ॥ धि० ॥ बोल्यो कपटी श्रावक तेय, अंबर बेहडो मुहडे देय ॥ धि० ॥७॥ नयर अमाझं ए संसार, लाख चोराशी योनि श्रागार ॥ धि ॥ जीव संसारी ते मूऊ, तुम्ह ते शुं राखी यें गुद्य ॥ धिम् ॥ ॥ अनुक्रमें जैन नगर में दीउ, चारित्रधर्म नृप नेटो ईच ॥ धि० ॥ सद्बोधनामा तास प्रधान, दी, मुजने छादश व्रत दान ॥ धिo ॥ ए॥परणाववा मांडी दश बाल, पण में मन न कर्यु ततकाल ॥ धिम् ॥ कीधो श्रावक मुऊने तेण, 'जिननक्तियुत परम गुणेण ॥ धि० ॥ १० ॥ श्म नीसुणी चिंते सार्थेश, पूरण से श्रावक सुविशेष धि० ॥ अहो अहो जिनधर्मी वडनाग, परणीते परण्यो ने कहेवो वैराग ॥ धिम् ॥ ११ ॥ धन धन एहने सवि सुख होय, नव्य प्राणी दीसे ने कोय धि० ॥ पुनरपि पू सार्थ एवाच,अहो धार्मिक तमें बोल्या साच ॥ धिम् ॥ १२ ॥ ए पुर घर नृप मंत्री जात, ए तो तमे कही ज्ञाननी वात ॥ धि० ॥ पण
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