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________________ ॥दोहा॥ सहदेवें श्राण्यो तुरत, देती शुमादंग ॥ हिमगि रिबांधव जाणीयें, के धराधरपिंड ॥१॥सोहे रदन रयणे जड्या, अति विस्तार अदीप ॥ मानुं गज दाढा उपरे, बप्पन्न अंतरछीप ॥२॥ ऊच्च कपोल थकी करे, वहे मदधारा नूर ॥ ऊलटयो पद्मजह थकी, सिंधू गंगापूर ॥३॥ करीकरी इंदीवरें, चि त्रित तनु उत्संग ॥ मार्नु लता विद्युम तणी, तरे प योधितरंग ॥ ४ ॥ गजने गले घंटावली, कीलती नीली फूल ॥ सरवर तट हरीयां वचें, दईर डहके अमूल ॥ ५॥ वीरसेन सा सुंदरी, बेठी गयंवर पी ॥ पाम्यो तंट ते नर्मदा, अति रमणीय ३ ॥६॥ ॥ढाल अग्यारमी॥ अमदावादना खेड्या रे, वालम वहेला आवजो रे॥ हारे मारी मीठडा बोली नार, काजल थोडे रो हो सार ॥ ए देशी ॥ नर्मदा नदीने तीरे रे, गयंवर वीफस्यो रे ॥ उंडा घनशुंगज गललो कस्यो रे॥ तेणे गजे धूएयुं धडहड अंग, करतो धूसर हो उतरंग ॥ अंकुशीयानी जीके रे, ते वश श्राणीयो रे॥१॥ अरहो परहो फेख्यो रे, गज तेहने तटें Jain Educationa wernational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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