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________________ (१४) सुख जोगव्य तुं मुफथी सुंदरी रे, यौवन कस्य तुं पवित्र ॥ कम्॥५॥ निग्यो धनवतीए तेहने जी, ते पण पाम्यो रोष॥ तेणे पुरमे कही कही शाकिनी जी, दीधो सतीने दोष ॥ क०॥६॥ न शके नयरी माहे फरी सतीजी, तिहां पण पीहर गश् परगाम ॥ते धनवती निजबंधू घरे वसे जी, जो जो कर्मनां काम ॥ क० ॥ ७॥ धनवती बंधू सुतने हुलरावती जी, ना खती निःश्वास ॥ तिहां पण प्रार्थे विषय सुख कार णे जी, निज सहोदरनो दास ॥ क० ॥ ७॥ तेहने पण सतीये निबियो जी, दास थयो विणप्रेम ॥ दासे बाल विणाश्यो क्रोधथी जी, सा हुलरावती जे म ॥क ॥ ए॥ प्रात थयो धनवतीये बालने जी, दीगे विनाश्यो जाम ॥ करी आक्रंद कुटुंब सवि मेलव्यु जी, श्राव्यो दास पण ताम ॥ का ॥ १० ॥ दास कहे सह लोको सांजलो जी, ए सतीनुं विरु क॥ कहो कूण सोंपे सुत शाकिनी कन्हे जी, जेम मांजारने दूध ॥ क० ॥ ११॥ शावस्ती बोकें मली. एहने जी, काढी वनह मकार ॥ कीहांथी श्रावी रंगा शाकिणी जी, बांधवने आगार ॥ कण् ॥ १॥ अति शरमाणी ते धनवती सती जी, परिहरी पी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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