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वचन उदारा रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ धर्मोद्यम करजो सह-प्राणी, एम कही दीधी शीखो रे ॥ नमयाने आशीष कहे एम, जीवजो कोडी वरीसो रे ॥ ज० ॥ १५ ॥ जनकादिक सह मंदिर श्राव्या, हवे सह गुरुउल्लासें रे, नमया साध्वीने हित श्राणी, सोंपी साधवी पासे रे ॥ ज० ॥ १६ ॥ साधु मारग शी खाव्यो वारु, करे जिन श्रगल साखी रे ॥ श्रा वनमी ढाल सलूणी, मोहन विजयें जांखीरे ॥ ज० ॥ ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥
॥ दोहा ॥
यह निश साध्वी नर्मदा, करे ज्ञान अभ्यास ॥चा रित्र चंद्र प्रद्योतथी, करे मन कुमुद विकास ॥ १ ॥ जयणा गंगा सुरसरी, जिहां हित प्रगटतरंग ॥ तीहां जीले यइ हंसली, करे पवित्र निज अंग ॥२॥ अंबर मुनि श्राचारनां, नक्ति तणो मुख कोश ॥ संवर केसर घोले बहु, विनय पखाले दोष ॥३॥ स्तवना कुसुम मनोहरु, समकित दीप उद्योत ॥ अक्षत अनुभव रूपना, ध्यान धूप सिद्धोत ॥ ४ ॥ एम पूजा जिनराजनी, साहसथी नितमेव ॥ रचे कर्म चकचूरवा, सा साध्वी नितमेव ॥ ५ ॥
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