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(१४ए ) वी साधु परानवें, निर्धन निगुण सरोग ॥ श्ह जव परजव ते लहे, वाहलातणो वियोग ॥२॥ सा धु अवज्ञा फल सुणी, कंपी सुरी अतीव ॥ पातक ए विण जोगव्यां, केम बूटशे जीव ॥३॥ सा न मया देवी चवि, मणुष लोग उपन्न ॥ नामे नमया सुंदरी, महासती धन्य धन्य ॥ ४ ॥ पूर्व कर्म थ की एणे, पाम्यो कंत वियोग ॥ विकल थई वन वन नमे, पुनरपि थई अशोग ॥ ५॥ नमया पूरव नव सुणी, थश्मूछाँगत एम ॥ दीगे पूरव जव न लो, सुगुरु जांख्यो जेम ॥६॥
॥ ढाल पचासमी॥ . कान्हजी मेहलोने कांबली रे ॥ ए देशी ॥ नम या श्रावी मंदिरें रे, मुनिनी सुणी वाणी ॥ मनश्री मांमी विचारणा रे, जो जो कर्म कहाणी ॥१॥ हूं बलिहारी सुगुरुनी रे ॥ जेह जन दरिसण पामे, रहे अलगा संसारथी रे ॥ विषय जालने सामे ॥ ९ ॥ ॥२॥ सदन संबंधि सहोदरा रे, तेहथी खोटी शी माया ॥ स्वारथनां सहु को सगां रे, नवि को एना कहेवाया ॥ ९॥ ३॥ वाहलाहूंती वाहलोरे, तेजो माहरो न हुवो ॥ बीजो तो कोण होयशेरे, कर्मनी
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