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(१५०) गति ए जुवो ॥ हुँ ॥४॥ दावानल जेम परजले रे, एह संसार असारो ॥ अलगो रहे ते ऊगरे, नहिं तो नहिं को आरो ॥ ९॥ ५॥ एहमां जो संजम आदलं रे, खलं एह जोतानुं ॥ श्राग ब वंतें पडे रे, निकल्युं ते पोतानुं ॥ हुं ॥६॥ ता तने नमया विनवे रे, द्यो मुझने आदेश ॥ जो अनु मति होय तुम तणी रे, तो ग्रहुं मुनिनो वेश ॥ हुँ॥ ॥७॥ तृप्त थ नव जोगवी रे, नथी हुँ अणतृप्ति ॥ पामि परीक्षा सहु तणीरे, एम वचनें प्रीवती ॥ हुँ॥॥ तात कहे नमया नणी रे, श्यो अवसर ताहरो॥ जेह तुं संयम आदरें रे, मोह बांमीने मा हरो ॥ हुँ॥ ए॥ संयम ने अति दोहिलो रे, नथी खेल हांसीनो ॥ जेम बेगे मणिधर रे, जेम अ तुल खजानो ॥ हुं०॥ १० ॥ को दांते मीणने रे, दोहचणा चावे ॥ संयम वेलु कवल जिस्यो रे, नीर सो कोने चावे ॥ हुँ ॥११॥ लेवो मणि वासुकी तणो रे, जरवी श्रानथी बाथ ॥ कोपातुर मृगपति तणा रे, मुखें घालवो हाथ ॥ हुँ ॥ १२ ॥ खड्गनी धारा उपर रे, होंशे कहो कोण चाले ॥ विफरिया वनगज जणी रे, पंगू नर किम काले रे ॥ हुँ॥१३॥
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