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________________ (५४) मुनिनी वाणी रे सुणी जणकारे, गोखतले तव जो युं रे॥ तव तिहां दीगे रे मुनि कोपांतरु, शाप दीयं तो पलोयुं रे ॥ गम् ॥ १४ ॥ हुं कीधुं रे में मुनि उहव्यो, कीधी अवज्ञा जारीरे ॥ फल कडवां रे जो गवतां दृश, हुं निगुणी को नारी रे ॥ग ॥१५॥ नाह वियोगणी होजोजे कयुं,ते केम फरशे वाचारे ॥ वाचा खोटी खोटा जनतणी, ए तो मुनिजन सा चा रे ॥गण॥१६॥ जश् खमाई रे मुफ अपराधने, वि नवं विनति विशाल रे ॥ मोहनविजये रे जांखी हेजथी, सुंदर सत्तरमी ढाल रे॥गण॥१७॥सर्व गाथा ॥दोहा॥ _ मेडीथी जे ऊतरी, आवी साधु समीप ॥ विधिद्यु वांदीने कहे, अहो नवसायर छीप ॥ १॥ हुँ जिन धर्मी श्राविका, मुनि उपरे अति प्रेम ॥ रोष तजो मुनिरायजी, शापो बो मुज केम ॥२॥ जीहांथी वहार जोशए, तिहांथी आवे धाड्य ॥ दीजे दोष ते केहने, जो फल खाशे वाड्य ॥३॥ए संसार असा रमें, ग्रहीए जस आधार ॥ ते जो विरूऊं वांडशे, किम ऊगे दिनकार ॥४॥ हुँ तमथी जेहवी करूं, . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003683
Book TitleNarmada Sundarino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages198
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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